शहरी प्रदूषण का बस एक ही विकल्प

March 2000

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

समूची दुनिया प्रदूषण के भयावह दंश से व्यथित है। इसका सबसे खास कारण है- बढ़ते नाना प्रकार के वाहनों के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण। साधन और सुविधा के नाम पर ये वाहन रोज ही हमारी साँसों में जहर घोलते जा रहे हैं। यह सब है कि आज दुनिया की दूरियाँ सिमट गई हैं, परन्तु उसके दुष्परिणाम से आँखें कैसे बंद की जा सकती है। इन वाहनों से उत्पन्न वायुप्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण ने हमारे रोजमर्रा की जिंदगी की सुख-शाँति हरण कर ली है। इनकी बढ़ती तादात से प्राकृतिक ईंधन भंडार भी समाप्ति की और हैं। ऐसी परिस्थिति में साइकिल ही एक विकल्प है, क्योंकि यह सहज-सुगम एवं सस्ती होने के साथ-साथ प्रदूषणरहित भी है।

मोटरगाड़ियों की बढ़ोत्तरी के कारण इधर हाल में वायु एवं ध्वनिप्रदूषण बेतहाशा बढ़ा है। 1992 की विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट से जाहिर होता है कि संसार के आधे से अधिक सर्वाधिक प्रदूषण शहरों में भारत के भी अनेक शहरों के नाम आ जुड़ें हैं। इनमें दिल्ली, मुँबई, कलकत्ता, चैन्नई एवं कानपुर अग्रणी हैं। वर्तमान समय में दिल्ली पूरे विश्व का चौथा प्रदूषित महानगर है। ये महानगर ध्वनिप्रदूषण उत्पन्न करने में भी कम नहीं हैं। सन् 1989 में अपने देश में दुपहिया स्वचालित वाहनों की कुल संख्या 25 लाख थी। तक पहुँच गई। सन् 1991 में कुल वाहनों की संख्या 2 करोड़ 90 लाख से भी अधिक हो गई। इनमें दुपहिया वाहनों की संख्या 9 करोड़ 80 लाख, कार की संख्या 29 लाख और डीजल से चलने वाले भारी वाहन 17 लाख 80 हजार थे। इसके साथ ही प्रतिवर्ष इन वाहनों की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत की दस से वृद्धि हो रही है।

अकेले दिल्ली में स्वचालित वाहनों से पैदा होने वाले प्रदूषण में प्रतिदिन 649 टन कार्बन मोनो आक्साइड, 289.47 टन हाइड्रोकार्बन, 926.46 टन नाइट्रोजन आक्साइड, 6.16 टन सल्फर-डाइ-आक्साइड तथा 10.30 टन कण हैं। इस तरह दिल्ली में प्रतिदिन 1046.60 टन प्रदूषण पैदा होता है। यह आँकड़ा मुँबई में 649 47 टन, बैंगलोर में 304.47 टन, कलकत्ता में 293.71 टन, अहमदाबाद में 292.73 टन, पुणे में 243.31 टन, चैन्नई, 227.24 टन, हैदराबाद में 202.84 टन, जयपुर में 88.11 टन, कानपुर में 83.17 टन, लखनऊ में 63.81 टन तथा नागपुर में 47.37 टन है। इन महानगरों में जो भी वायुप्रदूषण होता है, उसका 70 से 75 प्रतिशत यंत्रचालित वाहनों से होता है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि इन वाहनों की वृद्धिदर इसी स्तर पर होती रही तो कुछ समय बाद वाहनों से ब्व्डडडडडडडडडडडडडडडडडड की मात्रा में तीन गुना, हाइड्रोकार्बन और नाइट्रो कार्बन और नाइट्रोजन आक्साइड में चार गुना वृद्धि हो जाएगी।

इस प्रदूषण से सड़क के किनारे लगी फसलों में 70 से 75 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। अपने देश में ही वायुप्रदूषण से 40 से 60 हजार लोगों की मौतें हो चुकी हैं। ऑटोमोबाइल और डीजल इंजन से निकले धुएँ में सीसा होता है। यह कैंसर का जनक है। शहरों की सड़कों की धूल-मिट्टी में 2 ग्राम सीसा प्रति किलों धूल में पाया जाता है। इससे भी ज्यादा कारों से निकला धुआँ साँस के द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश कर जाता है और आसानी से मस्तिष्क, लीवर, गुरदे एवं रक्त में अवशोषित हो जाता है। यह धीरे-धीरे संचयी बिंब बनकर दिमाग की कमजोरी, लकवा और मृत्यु का कारण बनता है। इसका सर्वाधिक प्रभाव बच्चों और किशोरों पर होता है।

प्रदूषण के अतिरिक्त जो दूसरा पहलू उससे जुड़ा हुआ है। वह पेट्रोलियम पदार्थों का उत्पादन और खपत। जिस दर से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन चल रहा है उससे पता चलता है कि निकट भविष्य में सारा संसार इससे वंचित हो जाएगा। उत्पादन के अनुपात में खपत में भारी वृद्धि हो रही है। 1970-71 में 104 लाख टन खनिज तेल का उत्पादन हुआ था। सन् 1990 तक यह आँकड़ा 386 लाख टन तक जा पहुँचा। इसके साथ ही खपत एवं माँग भी अतिशय बढ़ी। जहाँ 1971 में कुल 960 लाख पेट्रोलियम पदार्थों की खपत थी, वही 1990 में 436 लाख टन हो गई। देश के नियोजक, भविष्य में दुगनी से पाँच गुनी खपत के आँकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं। कुल पेट्रोल का 60 प्रतिशत से अधिक व्यय इन वाहनों पर होता है।

इस प्रदूषण एवं आर्थिक व्यय के महासंकट ने एक नया विकल्प तलाशने पर मजबूर किया है। जो प्रदूषण मुक्त हो एवं आर्थिक रूप से सस्ता भी हो। इस क्रम में सबका ध्यान साइकिल को वाहन के रूप में उपयोग में लाने के लिए आकर्षित हुआ है। इसका मुख्य कारण है प्रदूषण मुक्ति, आर्थिक सुगमता, ग्रामीण जीवन से लेकर व्यस्त शहरी जीवन में उपयोगी होना, शारीरिक स्वास्थ्य में वृद्धि करना एवं पार्किंग में सुविधाजनक होना है। इन्हीं विशेषताओं के कारण आज केक तकनीकी विशेषज्ञों ने साइकिल को इक्कीसवीं सदी का वाहन माना है। उनके अनुसार आवागमन को सुगम एवं सुचारु बनाने के लिए साइकिल ही एकमात्र विकल्प हो सकता है। संसार में साइकिलों की संख्या अन्य किसी वाहन की अपेक्षा हमेशा ज्यादा रही है। आज दुनिया में फिर से साइकिल की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साइकिल के बारे में कहा है कि यह सबसे सस्ता, प्रदूषणरहित, सुगमता एवं सरलतापूर्वक पार्क किया जाने वाला वाहन है।

इक्कीसवीं सदी के मान्य वाहन के रूप में उभर रही इस साइकिल का इतिहास भी बड़ा रोचक है। इसका आविष्कार स्काटलैंड के लोहार किलपेट्रिक मैकमिलन ने सन् 1630 में किया था। सन् 1890 में साइकिल का पहिया हिन्दुस्तान की धरती पर घूमा। उस समय भारी-भरकम साइकिल की कीमत 85 रुपए थी। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इसकी कीमत में भारी वृद्धि हुई और यह 500 रुपए में बिकने लगी, परंतु युद्ध के पश्चात् यह घटकर 34 रुपए हो गई। इसका कारण था भारत में इंग्लैण्ड से निर्मित साइकिलों का आयात होना। जापान से आयातित साइकिलों का मूल्य उस समय सिर्फ 14 रुपए था। भारत में साइकिल बनाने का पहला कारखाना सन् 1936 में मुँबई में स्थापित हुआ। अब तो भारत, साइकिल उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है एवं सर्वाधिक उत्पादन भी करता है। सबसे अधिक साइकिलें बनाने का विश्व रिकॉर्ड भी एक भारतीय कंपनी के नाम है।

सन् 1996 में साइकिल में साइकिल का सालाना उत्पादन मोटर वाहनों के 20 लाख की तुलना में पाँच गुणा अधिक था। इसमें अभी भी सात प्रतिशत की दर से तादाद पाँच करोड़ से ऊपर आँकी गई है। इसमें से 74 प्रतिशत साइकिलें ग्रामीण क्षेत्रों में प्रयुक्त की जाती हैं। 20 प्रतिशत साइकिलें शौक एवं मनोरंजन हेतु निर्मित होती हैं। भारत में दो प्रकार की साइकिलों का उत्पादन होता है। एक तो मजबूत फ्रेम वाली पारंपरिक साइकिलें और दूसरी फैंसी व सुँदर साइकिलें। पहले प्रकार का उपयोग वाहन एवं दूसरे तरह की साइकिलों का उपयोग मनोरंजन एवं खेल के लिए किया जाता है। फैंसी साइकिलों का फैशन सन् 1970 के दशक से प्रारम्भ हुआ। आज यह बच्चों तथा नवयुवकों के बीच जबरदस्त लोकप्रिय है।

एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्राँसपोर्ट डेवलपमेंट के सीनियर फेलो डॉ. वाई. पी. आनंद ने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में दर्शाया है कि साइकिल पर्यावरण हितैषी है। एवं कुछ सालों से इसका प्रचलन बढ़ा है। इस रिपोर्ट में साइकिल रिक्शा को भी महत्व देने का प्रस्ताव किया गया है। नई दिल्ली स्थित नेशनल कौंसिल का एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा 10 गाँवों में और विकास केंद्रों में किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि साइकिल ओर रिक्शा आय के बहुत बड़े साधन हैं। यह प्रदूषण रहित परिवहन के उत्तम साधन हैं।

साइकिल-रिक्शा का आविष्कार अमेरिका के एक पादरी जोनाथन ग्लोबल ने पिछली सदी के मध्य में किया और इसे नाम दिया ‘जिन राकीशा’ अर्थात् मनुष्य की शक्ति से चलने वाला वाहन। रिक्शा उसी का परिवर्तित नाम है। परिवहन हेतु रिक्शा का प्रचलन सन् 1930 में भारतवर्ष में हुआ और यह जल्दी ही लोकप्रिय हो गया। आज देश में रिक्शाचालकों की संख्या 50 लाख के आस-पास है। गाँवों और कस्बों में तो यह सार्वजनिक परिवहन और मालवाहन का प्रमुख साधन है। चैन्नई, कलकत्ता और दिल्ली जैसे महानगरों में भी इसका अस्तित्व अभी भी है। वैसे विश्व में रिक्शे का प्रयोग बंगलादेश की राजधानी ढाका में सर्वाधिक होता है। यहाँ पर विश्व में सबसे अधिक रिक्शे हैं। इसकी नई तकनीक विकसित करने के लिए भी प्रयास जारी हैं। इस क्रम में मुम्बई आई. आई. टी. के औद्योगिक डिजाइन केन्द्र के प्रोफेसर बी. बी. बापट ने साइकिल रिक्शे का एक नया डिजाइन विकसित किया है।

विश्व के अन्य देशों में भी साइकिल का काफी प्रचलन है। इस दिशा में चीन सबसे आगे है। इस समय पूरी दुनिया में साइकिल को सबसे ज्यादा महत्त्व और सम्मान चीन में दिया जाता है। यहाँ साइकिलों की संख्या सर्वाधिक है। चीन में तकरीबन 27 करोड़ साइकिलें हैं। चीन की राजधानी बीजिंग में ही 70 लाख साइकिलें हैं। चीन में मोटरकार और साइकिल का अनुपात एक और ढाई सौ का है। शहरी क्षेत्र में तो प्रति हजार आबादी पर पाँच सौ साइकिलें हैं। अर्थात् प्रति दो व्यक्तियों में से एक के पास साइकिल उपलब्ध है। नगरों का 50 से 90 फीसदी परिवहन साइकिल चलाने के लिए अलग ट्रैक की व्यवस्था है। वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट के निदेशक सुश्री मार्शियालों के अनुसार चीन में सन् 1984 में तीन करोड़ साइकिलें थी। ये आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि यहाँ साइकिल की लोकप्रियता बढ़ी है।

जापान और नीदरलैंड जैसे औद्योगिक देशों में साइकिल को रेल परिवहन से जोड़ने की भी व्यवस्था है। जापान में लोग छोटी दूरी साइकिलों से और लम्बी दूरी रेलों से तय करते हैं। यहाँ की 95 प्रतिशत जनसंख्या साइकिल का उपयोग करती है। इस दिनों जापान में पौने सात करोड़ साइकिलें हैं अर्थात् प्रति एक हजार आबादी पर 434 साइकिलें। इंग्लैण्ड में भी साइकिल के प्रति लोकप्रियता बढ़ रही है। जर्मनी, हंगरी, यूगोस्लाविया, पोलैंड आदि देशों में भी साइकिल के प्रति रुझान बढ़ा है। जर्मनी में साइकिल चलाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद माना जाता है। यहाँ साइकिलों को कार की डिक्की में रखने लायक बनाया जाता है, ताकि कभी इसका उपयोग किया जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय साइकिल रेसों के लिए फ्राँस सारे संसार में विख्यात है। फिनलैंड की 50 लाख आबादी में 32 लाख साइकिलें हैं। नीदरलैंड की डेढ़ करोड़ जनसंख्या में 10 प्रतिशत लोगों के पास साइकिलें हैं। यहाँ इनकी संख्या 9 करोड़ 80 लाख है, जबकि मोटर वाहनों की संख्या 44 लाख है। नीदरलैण्ड में साइकिल के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए साइकिल मास्टर प्लान बनाया गया है। अमेरिका में प्रति हजार जनसंख्या में 75 साइकिलें हैं। इसका अधिकतर उपयोग वहाँ कालोनी के अंदर या पार्किंग प्लाट तक किया जाता है। वहाँ इसे और लोकप्रिय बनाने हेतु एक अधिनियम बनाए जाने का प्रस्ताव है। पर्यावरण के प्रति सजग एवं संवेदनशील नगर जैसे टोरंटो, बैंकूवर, सीटल आदि में साइकिलों के इस्तेमाल में भारी वृद्धि हो रही है।

इटली में साइकिल को काफी सम्मानजनक वाहन माना जाता है। वहाँ राष्ट्राध्यक्ष से लेकर साधारण जनता तक सभी साइकिलों का उपयोग करते हैं। अमेरिका में पुलिस विभाग के पास सैकड़ों वाइक स्क्वेड (साइकिल दल) हैं, जिससे अपराधी को पकड़ने का काम लिया जाता है। यही नहीं यहाँ 5 में से एक व्यक्ति साइकिल को पसंद करता है।

बात इतने तक सीमित नहीं है, साइकिल और साइकिल रिक्शे का परिवहन-अर्थशास्त्र में योगदान चौंकाने वाला है। इसमें यदि सवारी ढोने की लागत 40 पैसे सवारी प्रति किलोमीटर मानी जाए तो इसका योगदान 101.40 अरब रुपये प्रतिवर्ष होता है। इस अनुपात के आधार पर साइकिल एवं रिक्शा प्रतिवर्ष 203 अरब रुपये की कमाई करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि 90 मील से कम 90 प्रतिशत यात्रा साइकिल से तय की जाए तो अपने देश में प्रतिवर्ष 9.5 करोड़ बैरल पेट्रोल की बचत हो सकती है। इसके अलावा साइकिल उद्योग 50000 परिवारों की आय का साधन जुटाता है। इतना ही नहीं शरीर की स्वास्थ्य-क्षमता भी इसके उपयोग से बढ़ती है। ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रति सप्ताह 32 किमी. साइकिल चलाने से दिल की बीमारी होने की संभावना में 50 फीसदी की कमी आती है।

स्वास्थ्य में प्रगति हो या प्रदूषण के विषदंश से उबरने की बात, साइकिल की उपयोगिता हर दृष्टि से अधिक है। आज की इस विषम वेला में इसके उपयोग से प्रदूषण के दावानल से झुलसते राष्ट्र एवं विश्व को बचाया जा सकता है। यह कहना और मानना किसी भी तरह अतिशयोक्ति न होगी कि इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर खड़ी दुनिया में स्वचालित वाहनों के उपयोग में कमी करके साइकिल का इस्तेमाल करना मानवीय एवं सामाजिक कर्त्तव्य है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles