क्षुद्र काया में छिपी अपरिमित गुणों की संपदा

March 2000

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कद से छोटा होने पर किसी को नगण्य मान बैठना भारी भूल के सिवा कुछ भी नहीं । क्योंकि पता नहीं उसके छोटेपन में गुणों का कितना बड़प्पन समाया हो । अब चींटी को ही लें, देखने में धरती का नन्हा-सा अकिंचन जीव, पर अनेकों विशेषताओं ने उसे विश्व का सबसे विलक्षण जीव बना दिया है । कर्मठता, बुद्धिमत्ता एवं सामूहिक जीवनपद्धति जैसे सद्गुणों के साथ अन्य अनेकों विचित्रताओं से भरी इसकी दुनिया को देखकर हतप्रभ होना पड़ता है ।

विश्वभर में चींटियों की लगभग साढ़े तीन हजार प्रजातियाँ पाई जाती है । सभी चींटियां आकार को छोड़कर लगभग एक जैसी होती है । आकार में ये न्यूनतम एक मिलीमीटर से चार सेंटीमीटर तक हो सकती है । हम जिनसे सबसे ज्यादा परिचित है, वे है काली चींटी, मकोड़ा, पेड़ों पर रहने वाली, काटने के लिए चर्चित लाल चींटी और छोटी काली चींटी जो गुड़ जैसी मीठी चीजों के प्रति अद्भुत आकर्षण रखती है । बहुत छोटा होने पर भी यदि इसे विश्व का सबसे ताकतवर प्राणी कहें तो अतिशयोक्ति न होगी, क्योंकि इसमें अपने शरीर के भार की अपेक्षा पचास गुना अधिक भार उठाने की क्षमता होती है । मनुष्य तो अपने भार दो गुना भार उठा ले यही बहुत है ।

चींटियों की सबसे ज्यादा खासियत इनका सामाजिक जीवन है । इसीलिए इसे सामाजिक प्राणी भी कहा जाता है । इनके समुदाय में पाँच लाख तक चींटियां रह सकती है । इनका सामूहिक घर कई प्रकार का होता है । और वह कहीं भी बनाया जा सकता है । मकानों की नींव में, दीवारों में, वृक्ष की छाल के पीछे, जमीन-पत्थर और पेड़ों की गिरी शाखाओं के नीचे । सुपरिचित लाल चींटियों अपना घर प्रायः किसी ऊँचे पेड़ पर बसाती है । चींटियों के डिंबकों द्वारा बनाए गए रेशम जैसे धागों की सहायता से चींटियां पास-पास स्थित पतों को चिपका देती है । अफ्रीका की दरजी चींटी भारत की लाल चींटी का ही एक वर्ग है, किन्तु उनके द्वारा बनाए गए घर वृक्षों की शाखाओं को जोड़ते हैं ।

वृक्षों पर रहने वाली काली चींटी टहनियों पर पगोड़ानुमा बड़े-बड़े घोंसले बनाती है । जिसकी ऊँचाई दस मीटर तक हो सकती है । ये दूर से देखने में रेत के बने लगते हैं, किन्तु वास्तव में ये पत्तों के बने होते हैं । ये चींटियां पत्तों की सतह पर अपने शरीर से एक तरल पदार्थ स्रवित करती है, जो इन्हें जलरोधक बना देता है । कठफोड़वे की एक जाति चींटियों के घोंसले में ही अपना नीड बनाती है । उसके अंडे-बच्चों को ये खूँखार चींटियां कोई नुकसान नहीं पहुँचाती है । ऐसा भी नहीं लगता कि इन पक्षियों के कारण चींटियों को कोई लाभ होता है । फिर भी ये क्यों इन पक्षियों को अपने घर में रहने देती है, यह एक पहेली बनी हुई है ।

वैज्ञानिकों के अनुसार चींटियां लगभग 10 करोड़ से भी अधिक वर्षों से दुनिया में है । आमतौर पर चींटियाँ भूमिगत बाँबियों में रहती है और एक बाँबी में हजारों-लाखों चींटियाँ रहती है । प्रत्येक बाँबी में तीन प्रकार की चींटियां रहती है, जिनकी अलग-अलग अपनी जिम्मेदारियाँ होती है । सबसे बड़ी को रानी चींटी कहते हैं । रानी चींटी का मुख्य काम हजारों की संख्या में अंडे देना होता है । दिए गए अंडों के फटने तक रानी चींटी कुछ भी नहीं खाती है । उसके शरीर में मौजूद चरबी और उड़नपेशियों के गलने से उसे पर्याप्त ऊर्जा मिलती है । उसका अधिकाँश समय अंडे देने में ही बीतता है, जिनमें नई रानी चींटियाँ, मादा श्रमिक चींटियाँ व नर चींटी उत्पन्न होती है ।

चींटियों की दुनिया में नर की भूमिका प्रजनन तक ही सीमित रहती है । उनका जीवनकाल भी अल्प ही होता है । प्रायः मादा के समागम के बाद उनकी मृत्यु हो जाती है । रानी चींटी हर वर्ष हजारों अंडे देती है । यदि इसी गति से अंडे दे और उनमें भी मादा उत्पन्न हों, तो इस विश्व में कदाचित चींटियाँ-ही-चींटियां नजर आएँ । किन्तु ऐसा होता नहीं है, क्योंकि रानी चींटी अन्य मादा चींटियों को बाँझ बना देती है । रानी चींटी के शरीर से एक गाढ़ा स्राव निकलता है, जिसे खाकर मादा चींटियां बाँझ हो जाती है । यह प्रकृति की व्यवस्था है ।

चींटी समाज में लालन-पालन से लेकर सुरक्षा-व्यवस्था एवं श्रमसेवा का सारा दारोमदार मादा श्रमिक चींटियों पर रहता है । इनमें कुछ तो इसी की देखभाल में लगी रहती है, तो कुछ घोंसले के रखरखाव का जिम्मा अपने ऊपर ले लेती है । जब रानी चींटी आहार ग्रहण करना आरंभ करती है, तो श्रमिक चींटियां एकत्र किए गए भोज्यपदार्थों में से सबसे स्वादिष्ट टुकड़े रानी को खिलाती है । श्रमिक चींटियों का प्रमुख कार्य भोजन की तलाश करना होता है और वे नन्ही चींटियों की देखभाल भी करती है। अंडे से निकलने के बाद लार्वा एवं प्यूपा अवस्था में जब ये चींटियाँ उनकी देखभाल करती है । श्रमिक चींटियों में कुछ बड़े सिर व मजबूत जबड़े वाली सैनिक चींटियाँ भी होती है, जो अपने घर की रखवाली करती है । ये श्रमिक चींटियों की मदद भी करती है, जैसे भोजन के बड़े टुकड़ों को छोटे टुकड़ों में तोड़ने में ।

चींटियों की बाँबी में अलग-अलग प्रकोष्ठ होते हैं । विशेष प्रकोष्ठ (रायल चेंबर) में रानी अंडे देती है । श्रमिक चींटी इन अंडों को पालन प्रकोष्ठ में ले जाती है । इनसे लार्वा निकलते हैं । लार्वा बढ़कर प्यूपा बनते हैं । तब श्रमिक चींटी इन्हें अलग प्रकोष्ठ भोजन संग्रह व कबाड़ रखने के काम आते हैं ।

अलग-अलग क्षेत्रों में पाई जाने वाली चींटियों में अपनी-अपनी तरह की विशेषताएँ पाई जाती है । यूरोप में पाई जाने वाली चींटियों को स्वभाव निराला होता है। आक्रामक स्वभाव की ये लाल चींटियाँ आसपास की काली चींटियों के बिलों पर धावा बोलकर उन्हें बंधक बना देती है । इसके अतिरिक्त कई चींटियों की मादाओं द्वारा दिए गए अंडों पर भी कब्जा जमाकर उनके बच्चे के निकल आने की प्रतीक्षा करती है । बच्चों के निकल आने पर लाल चींटियाँ उन्हें श्रमिकों के रूप में काम पर लगा देती है । वस्तुतः लाल चींटियों को यह सब मजबूरन अपनी आवश्यकता के अनुरूप ही करना पड़ता है । क्योंकि इनमें श्रमिक वर्ग अधिकाँशतः सैनिक होते हैं, जो न तो भोजन संग्रह कर पाते हैं और न ही नन्हें-मुन्नों का पालन-पोषण ।

आस्ट्रेलिया में पाई जाने वाली चींटी ‘मेलोशोकस’ फूलों के रस की शौकीन होती है । इसकी बुद्धिमत्ता देखने लायक होती है । यह भूख के समय रस का सेवन तो तुरंत कर लेती है और विपरित समय के लिए फ्रीज या कोल्ड स्टोरेज का आविष्कार भी कर लेती है । इस रस को यह चींटी एक विशेष कीड़े को पिलाती है और पिलाती ही जाती है । इसे यह रस इतना पिला देती है कि इसका पेट मटर के दाने जैसा हो जाता है । पारदर्शी रस भरे इस कीड़े को ये चींटियाँ उल्टा लटका देती है और भविष्य में उस रस का उपयोग अपनी क्षुधातृप्ति के लिए करती है ।

चींटियाँ गाय पालती है और बाग लगाती है । ये बातें सुनने में अटपटी लग सकती है । किन्तु कुछ चींटियां इन विलक्षण कारनामों को अपने ढंग से अंजाम देती है । चींटियों की एक प्रजाति ‘एपिडस’ नामक मक्खियों को पालती है और इसके शरीर से निकलने वाले हनी ड्यू नामक मीठे रस को बड़े चाव से पीती है । चींटियां ‘एपिडस’ को वैसे ही दुहती है जैसे किसान गाय को दुहता है ।

बाग लगाकर अपने भोजन की व्यवस्था करने वाली चींटियाँ अनिट्स दशईब अट्टीशी नामक जाति की होती है, जो अधिकाँशतः पश्चिमी गोलार्द्ध के गरम देशों में पाई जाती है । इनके बाग फफूँद के होते हैं, जो कि इनका भोजन होता है । श्रमिक चींटियाँ बाग में विशेष रूप से सेवा करती है । व पूरी लगन के साथ उस पर ध्यान देती है अपने बाग के लिए ये फूलों के परागकण, गली-सड़ी फूल-पत्तियों के टुकड़े आदि इकट्ठा करती है । और उनको बारीक काट-काटकर बाग में डाल देती है । इनसे उगने वाली फफूँद को ये लंबे समय तक अपने भोजन के रूप में प्रयुक्त करती है ।

इन नन्हें-से प्राणी की सूझबूझ बुद्धिमान कहे जाने वाले इनसान को भी दाँतों तले उँगली दबाने के लिए मजबूर करती है । ये अपनी बातों एक-दूसरे तक पहुँचाने के लिए भी समर्थ होती है । दीवार की पिछली तरफ से अपने पिछले भाग से खास अंदाज से थपकी देती है, जिससे बाकी चींटियां सतर्क होता है । दुश्मनों से सतर्क रहने के लिए भी कुछ खास संकेत इस्तेमाल किए जाते हैं । जब चींटियां एक-दूसरे से मिलती है, तो ये सिर के प्रमुख भाग एंटीना से सूँघकर पहचान लेती है ।

चींटियों की इस रोचक दुनिया का उल्लेख खतरनाक चींटियों की चर्चा किए बिना अधूरा ही रह जाएगा । एसिटान व डारिलस प्रजाति की ये चींटियां अन्य चींटियों की तरह न तो घर बनाती है और न ही बिल में रहती है । ये आजीवन भोजन की तलाश में घूमती रहती है। दक्षिणी अमेरिका व अफ्रीका में मिलने वाली इन चींटियों को अमेरिका में ‘सोल्जर आंट्स’ व अफ्रीका में ‘ड्राइवर आंट्स’ नाम दिया गया है । करोड़ों की संख्या में काफिला लेकर चलने वाली ये चींटियां शिकारी प्रवृत्ति की होती है । लाल व काले रंग की ये चींटियां चलते समय वर्षा पड़ने की-सी ध्वनि करती हुई चलती है और रास्ते में मिलने वाली हर वस्तु एवं प्राणी को चट कर जाती है ।

इन चींटियों में काफिले का मार्गदर्शन करने वाली चींटियों द्वारा कोई शिकार ढूँढ़ते ही पूरा काफिला उस पर टूट पड़ता है और कुछ ही देर में उस जीव का नामोनिशान मिट जाता है । हजारों-लाखों की संख्या में चींटियों का काफिला आता देखकर बड़े-से-बड़ा जानवर भी भाग खड़ा होता है । यदि जीव भागने में असफल रहा, तो ये चींटियां मच्छर से लेकर मगरमच्छ अथवा फिर स्वयं घायल सिंह ही क्यों न हो, उसे सफाचट कर जाती है । अफ्रीका के गाँवों के समीप जब यह काफ़िला गुजरता है, तो ग्रामीण आनन-फानन में घरों को छोड़कर गाँव से दूर किसी सुरक्षित स्थान की ओर अड़े होते हैं । जब इन चींटियों का काफिला चला जाता है, तो ग्रामीण घर आने पर पाते हैं कि घर की सभी खान की चीजों के साथ तिलचट्टे, छिपकली आदि भी लापता है, दुर्भाग्य से भागने की जल्दबाजी में कोई नवजात शिशु या असहाय व्यक्ति छूट जाए, तो उसे भी ये चींटियां अपना भोजन बना लेती है । कुछ कबीलेवासी वर्षा का सा शब्द सुनते ही बस्ती के आसपास आग लगा देते हैं, जिसकी वजह से ये चींटियां बस्ती के अंदर नहीं घुस पाती है ।

अमेरिकी उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली चींटी सेना केवल छोटी वस्तुओं का ही भोजन करती है । इन्हें लीजमरी चींटियाँ भी कहते हैं । ये मध्य व दक्षिण अमेरिका तथा दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका में पाई जाती है । जब ये हजारों की संख्या में कतार बनाकर चलती है, तो लोग इनके आगमन की सूचना पाते ही घर छोड़कर चले जाते हैं । ये चींटियाँ फिर घर में बचे चूहों, छिपकलियों व कीड़े-मकोड़ों को चट कर जाती है ।

अन्य चींटियां के समान इनकी रानी चींटी भी एक बार में लाखों अंडों देती है, जिनसे लाखों बच्चे निकलते हैं, जो जल्दी ही काफिले में शामिल हो जाते हैं । इनके वंश को चलाने वाली रानी चींटी के अंडे देने के समय ये अपने शरीर से एक शानदार जीवित घर का निर्माण करती है । लाखों की संख्या में ये चींटियाँ एक-दूसरे से जुड़कर किसी झुके हुए पत्थर के सहारे एक बड़ी गेंद के सदृश लटक जाती है । इस जीवित घर के अंदर गलियारा आदि भी बना होता है । जिसमें रानी चींटी शान से घूमती-फिरती है । मधुमक्खी के छत्ते के समान उल्टे लटके ये घर अंडों से बच्चों के निकलते ही उजड़ जाते हैं । अपने काफिले में लाखों की वृद्धि कर ये चींटियां फिर से अपने शिकार की तलाश में चल पड़ती है । यदि इनके मार्ग में कहीं कोई नदी पड़ जाए, तो ये चींटियां आसपास में गुंथकर बड़ी-बड़ी गेंदों का आकार ले लेती है ओर पानी के बहाव के साथ वही किनारे लग जाते हैं ।

चींटियों के दुश्मन भी कम नहीं है । मक्खियां, मेढ़क, टोड, छिपकली, चिड़ियों आदि तो इनके जानी दुश्मन, लेकिन चींटियों को अपने स्तर पर दुश्मनों से निपटना भी आता है । अपने बचाव के लिए वे काटती है या फिर एक खास तरह का एसिड छोड़ देती है । कुछ चींटियां दर्दनाक विष छोड़ने की भी क्षमता रखती है ।

सबसे अधिक महत्वपूर्ण है- चींटियों की कार्यक्षमता, लगन ओर मिलजुलकर काम करने की प्रवृत्ति, जो अपने को बुद्धिमान कहने वाले मनुष्य के लिए भी अनुकरणीय है । आपसी सहयोग की यह प्रवृत्ति चींटियों में जितनी अधिक है, उतनी शायद ही कहीं अन्य हो । एक भूखी चींटी जब दूसरी पेट भर खाई हुई चींटी के पास जाकर श्रृंगिका से इशारा करते हुए कुछ खान को माँगती है, तो दूसरी अपने शरीर से एक बूँद तरल पदार्थ देकर उसे तृप्त कर देती है ।

इस तरह नगण्य समझा जाने वाला यह छोटा-सा जीव मनुष्य को सभ्य एवं सुव्यवस्थित सामाजिक जीवन के न जाने कितने पाठ बिन बोले अपने आचरण से पढ़ा देता है । इसके अद्भुत रंग-रूप व कारनामे भी यही बताते हैं कि इनसान कितना ही दंभ क्यों न कर ले, पर परमेश्वर को वे भी कम प्यारे नहीं है, जिसे उसने क्षुद्र समझ रखा है । तभी तो इस क्षुद्रता में उसने न जाने कितनी क्षमताएँ सँजो रखी है । सच तो है कि सीखने की पहली शर्त विनम्रता को यदि हम अपना लें तो चींटियों से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है ।


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