जिसने धैर्य नहीं खोया

July 1996

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जार्ज बिसेल ने सामने खड़े हुए नवयुवक की ओर ध्यान से देखा। उसकी उम्र लगभग अठारह वर्ष होगी। सादे कपड़े , गौर वर्ण और चेहरे आत्मविश्वास भरी मुसकान। उसकी आँखें तो जैसे सम्मोहन का झरना थीं, इसके जादू से बिसेल भी न बच सके। उन्होंने अपनी टेबल की फाइलों को एक ओर खिसकाते हुए उसे सामने की कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

कुर्सी पर बैठते हुए युवक ने विनम्रतापूर्वक अभिवादन करते हुए अपना परिचय दिया- “मेरा नाम एडविन ड्रेक है। कुएँ खोदने में मुझे महारत हासिल है। सुना है आप आजकल तेल के कुएँ खुदवाने का काम करवा रहे हैं। इस काम में, मैं आपकी मदद कर सकता हूँ।”

बिसेल उसकी ओर देखता रह गया, युवक ड्रेक का एक- एक शब्द उसके आत्मविश्वास की गवाही दे रहा था। एक पल को वह हैरान भी हुए कि अठारह साल के नवयुवक में इतना मनोबल कहाँ से आया। फिर कुछ सोचते हुए वह एक हल्की-सी मुसकान के साथ बोले, लेकिन तुम्हें कैसे मालुम हुआ कि मैं तेल की तलाश में कुएँ खोदने की योजना बना रहा हूँ।

“बस यूँ ही”- एडविन हँसकर बोला। ऐसा करो, तुम कल प्रातः दस बजे आ जाना, आज मुझे रोडरिक से बात करनी है। उससे बातचीत करके ही कुछ निर्णय ले सकूँगा।

ठीक है सर, कहते हुए एडविन ने हलका-सा सिर झुकाया और दरवाजे से बाहर निकल गया, बिसेल पुनः अपने काम में खो गया।

एडविन एक बेरोजगार युवक था। वह न्यूयार्क शहर के उत्तर-पश्चिम स्थित मुहल्ले फ्लोरिडा में रहता था। उसकी माँ की मृत्यु उसके बचपन में ही हो गयी थी। अपनी माँ का वह इकलौता बेटा था। लेकिन माँ की मौत के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली। नई माँ उसे फूटी आँखों से भी नहीं देखना चाहती थी। बात-बात पर झिड़क देना, डाँटना और मार-पीट करना उसकी रोज की दिनचर्या का अनिवार्य अंग बन गया था। ईर्ष्यावश उसने एडविन का नाम स्कूल में भी नहीं लिखवाया, जिससे वह अनपढ़ ही रह गया।

उसके घर के पास ही राबिन नाम का एक ठेकेदार रहता था, जो कुओं की खुदाई करता था। घर की मारपीट और उपेक्षा से तंग आकर एडविन राबिन के साथ लग गया था। जिससे उसे कुएँ खोदने का अच्छा खासा अनुभव प्राप्त हो गया था।

उन दिनों अभी तक प्राकृतिक तेल नहीं खोजा जा सका था। जलाने के लिए लोग मधुमक्खी के छत्ते से मिली मोम, जानवरों की चर्बी और प्राकृतिक कोयले से प्राप्त तेल का प्रयोग करते थे। पर कोयले से तेल निकालने की विधि काफी महंगी थी।

उन्हीं दिनों जार्ज बिसेल जो पेशे से वकील था, की मुलाकात वैज्ञानिक रोडरिक से हुई। उसने बिसेल को धरती के अन्दर प्राकृतिक तेल सम्भावनाओं के बारे में बताते हुए कहा- “यह तेल काफी सस्ते दामों में उपलब्ध होगा। इसके व्यापार से तुम मालामाल हो जाओगे।”

लगभग पाँच बजे जब रोडरिक उसके आफिस पहुँचा, तो कमरे में घुसते ही बिसेल ने एडविन का जिक्र करते हुए सारी योजना पर विस्तार से चर्चा की।

अगले दिन बिसेल ने रोडरिक और एडविन के साथ जाकर जगह का मुआइना किया और कुएँ की खुदाई का काम शुरू हो गया। इस काम में बिसेल ने दस मजदूर लगाए थे। लगभग दस दिनों में 60 फुट गहरा कुआँ खोद लिया गया, लेकिन वहाँ तेल का नामोनिशान न था। इस असफलता ने बिसेल को बहुत दुःखी कर दिया था। इसमें उसके तकरीबन 500 डालर खर्च हो चुके थे।

उसने रोडरिक के लाख समझाने के बावजूद इस सम्बन्ध में आगे काम करने से मना कर दिया, पर एडविन लगनशील और आत्मविश्वासी था। अनपढ़ होने के बावजूद उसने रोडरिक से आवश्यक परामर्श किए और मन ही मन में एक निश्चय कर डाला।

लेकिन उसके पास रुपए न थे कि वह मजदूर इकट्ठे कर सकता। इसलिए उसने अकेले ही तेल ढूँढ़ने का निश्चय किया, जो काफी ऊँची थी। कुएँ की खुदाई में प्रयुक्त होने वाला सामान उसने बिसेल से उधार ले लिया था और अब वह अकेले ही कुआँ खोदने में जुट गया।

देखने वाले उसे सनकी कहकर मजाक उड़ाते। व्यंग्य की बौछारों, तानों की कड़वाहटों के बीच वह अपने काम में जुटा रहा। हर एक के लिए उसका एक ही जवाब था कि अगर व्यक्ति के पास लगन और मेहनत रूपी दो साथी हों, हृदय में ईश्वर-विश्वास की दीप शिखा प्रज्ज्वलित हो तो फिर दुनिया का कोई बड़ा से बड़ा तूफान उसकी राह नहीं रोक सकता।

सब कुछ भूल-भाल कर एडविन रात-दिन खुदाई में लगा रहता। उसके लिए जैसे दिन और रात का भेद ही समाप्त हो गया था। भूख-प्यास की भी सुधि उसे भूल चुकी थी। पास से गुजरने वाले उसे पागल, दीवाना और न जाने क्या-क्या कहते। लेकिन वह अपने काम में निमग्न था। उसके अन्दर ईश्वर विश्वास एवं आत्मविश्वास की उफनती नदी उसे पल प्रतिपल एक नयी ताजगी प्रदान करती है। इसी ताजगी की बदौलत वह अपनी सारी थकान भूल जाता और दुगुने उत्साह के साथ काम में लग जाता।

दिन-रात के श्रम से एडविन ने एक महीने में अकेले के बलबूते 60 फुट से भी गहरा कुआँ खोद डाला। वहाँ की जमीन कुछ ज्यादा तैलीय थी। उसे लगा कि यहाँ तेल जरूर मिलना चाहिए । उसने अपने कान जमीन पर लगा दिए और कुछ सुनने की कोशिश करने लगा। कुछ पलों में उसके चेहरे पर एक चमक उभर आयी। अब तो उसका मन बाँसों उछल रहा था। वह फिर चौगुने उत्साह के साथ अपने काम में जुट गया।

लगभग 69 फुट खोदे जाने के बाद एक जगह से फव्वारा और कुछ नहीं प्राकृतिक तेल ही था, जो अपनी प्राकृतिक अवस्था के कारण काला-काला लग रहा था।

उसे देखकर एडविन खुशी से चिल्ला उठा। उसका श्रम सार्थक हो चुका था। वह हाथ ऊपर करके प्रभु को श्रद्धाभाव से नमन कर रहा था। अपनी मेहनत और लगन के बलबूते एडविन ड्रेक ने 19वीं सदी की महानतम खोज कर डाली थी। एक ऐसी वस्तु की खोज, जिसने सारी दुनिया के स्वरूप को बदलकर रख दिया। हो भी क्यों न! लगन और मेहनत के दो हाथ असम्भव को सम्भव कर दिखाने में सर्वथा समर्थ हैं।


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