बर्बरता मिटायी शहादत से

July 1996

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टिकठी में जकड़े होने पर भी उसकी आँखों में वीरता की चमक थी, चेहरा आत्मबलिदान की आभा से प्रकाशित था। कोलोसियम के पैंतालीस हजार दर्शक उसे घेरे खड़े थे। सभी को मालुम था कि आज उसे मार दिया जायेगा। शायद इसी कारण चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया हुआ था। दर्शकों के चेहरों पर भय और सहानुभूति के मिल-जुले भाव तैर रहे थे। तभी वातावरण के सन्नाटे की चीरती हुई सम्राट जेमलियोस की आवाज उभरी-”स्पार्टाकस अगर तुम हमसे माफी माँग लो, तो हम तुम्हें माफ कर देंगे। तुम्हें ऊँचा दर्जा दिया जायेगा।”

उसके चेहरे पर व्यंग्य भरी मुसकान उभरी और सम्राट की ओर देखते हुए कहने लगा -”मुझे अगर उच्च दज् कही लालसा होती तो में ये कदम कदापि नहीं उठाता। जेमलियासे ! मैंने कोई गलती नहीं की जो, माफी माँगू। हम लोगों को छोटे से अपराध के लिए भी अमानवीय दण्ड दिए जाते हैं। हम रात-दिन कठिन परिश्रम करते रहते हैं, फिर भी हमारा बहिष्कार !” लम्बी साँस भरकर तीखी आवाज में वह बोला-’मुझे अपने वतन के लोगों के साथ जीना पसन्द है। रोम ने हमारे वतन पर कब्जा कर लिया तो क्या हुआ, हम अपने वतन के लिए हैं। मैं और तू तो एक ही देश के ही है रे! तूने तो अपने वतन के लोगों को ही मरवा डाला। उन्हीं को अभी तक दास बनाए हुई। शर्म आती है मुझे कि तू मेरे ही देश का शासक है।

स्पार्टाकस के शब्दों ने जैसे आगे में घी का काम किया। सम्राट जेमिलियोस गुस्से में अपना चिनला होठ काटते हुए बोला-”कोलोसियम खेल की तैयारी की जाए।” कोलोसियम रंगशा ईशा की प्रथम शताब्दी में बनवायी गयी थी। यहाँ जंगली जानवरों की खूनी लड़ाइयाँ लड़ी जाती थी। जो अपनी बर्बरता और लोमहर्षक एवं रोमाँचकता के कारण विश्वभर में ख्याति प्राप्त हो चुकी थीं।

स्पार्टाकस को जैसे जेमिलियोस के आदेश की कोई परवाह नहीं थी। उसने मौत की परवाह किए बिना आस-पास घेरे खड़े दर्शकों से कहना शुरू किया-”हे मेरे देशवासियों ! मैंने जब दासों के दुख-दर्द को जाना और जब मैंने जेमिलियोस को ऐसा करने से मना किया तो उसने मुझे भी दासों के बीच टिकठी में जकड़ दिया। मगर मैंने अपने देशवासियों को स्वतन्त्र कराने के लिए बराबर लड़ाई जारी रखी। अरे मेरे देश के रहने वालों। क्या तुम्हारे अन्दर बैठा इंसान नहीं जागा? देश विपन्नता में है और तुम सब कोलोसियम में मनोरंजन कर रहे हो। मैं तो कुछ ही पलों का मेहमान हूँ। मगर तुमको कह जाता हूँ कि कभी भी किसी के साथ अमानवीय व्यवहार न करना और न ही सहना।

स्पार्टाकस के सम्बोधन को सुन-कर जेमिलियोस बिफर पड़ा-”सिपाहियों ! बहुत चिल्ला लिया ये! कोलोसियम में जंगली भैंसा छोड़ दो।

स्पार्टाकस यद्यपि टिकठी से जकड़ा था, तो भी जंगली भैंसे लड़ने के लिए तैयार हो गया। भैंसे ने अंदर आते ही जोर से फुँकारते हुए स्पार्टाकस को भयंकर टक्कर मारी। वह लड़खड़ा कर एक ओर गिर पड़ा। दूसरी बार भैंसा जैसे ही उसकी ओर झपटा तो उसने स्वयं को बचाते हुए टिकठी भैंसे के सींग में फँसा दी। कुछ दूर तो वह टिकठी के कारण भैंसे के पीछे लटकता चला गया। इस क्रम में उसका दम घुटने लगा। तभी हाथों के आगे-पीछे होने से टिकठी चरमराकर टूट गयी। अब वह स्वतन्त्र था उसने अपने मजबूत हाथों से भैंसे के दोनोँ सींग पकड़ लिए। काफी देर तक तो भैंसा और वह दोनों आगे पीछे होते रहे। अन्त में, उसने टिकठी की नुकीली लड़की उठाकर भैंसे के गर्दन के आर-पार कर दी। भैंसा छटपटा कर मर गया।

इस घटना को देखकर एक बार तो जेमिलियोस सहम गया। लेकिन दूसरे ही क्षण उसने सैनिकों को ललकारा-पकड़ा लो स्पार्टाकस को । आदेश से बंधे सिपाही, उसे पकड़ने के लिए बढ़ें। यद्यपि उसे पकड़ना इतना आसान न था, तो भी सिपाहियों के नुकीले भालोँ ने उसे विवश कर दिया। फिर से जेमिलियोस ने एकबार पुनः युद्ध प्रारम्भ करने का हुक्म जारी किया। अबकी बार मैदान में दो सिंहों को छोड़ दिया गया था।

अब वह दोनोँ सिंहों के बीच था। दोनों ने एक साथ उस पर आक्रमण किया। बड़ी फुर्ती से वह बीच में से हट गया। दोनों शेर एक-दूसरे से बुरी तरह टकरा गए। इतने में छलाँग लगाकर उसने एक शेर को धर दबोचा, फिर उसका जबड़ा चीरने लगा। पीछे से दूसरा शेर उसका कन्धा खा रहा था। मगर उसने पहले शेर का जबड़ा, चीर ही डाला।

लेकिन इस बीच उसका कन्धा बुरी तरह जख्मी हो चुका था। उसने दूसरे शेर को एक झटके में दूर फेंक दिया। मगर अब वह खड़ा रहने की स्थित में नहीं था, वह बहुत घायल हो चुका था। लेकिन जब दूसरा शेर उसकी छाती पर चढ़कर उसे खाने लगा, तो न जाने कहाँ से उसमें अद्वितीय शक्ति का संचार हुआ और उसने अद्भुत शक्ति से जो अभी तक जख्मी होने से बचा था, इतने जोर में मारा कि शेर का पेट फाड़ गया और वहीं ढेर हो गया।

स्पार्टाकस ने घुटनों के बल बैठकर दर्शकों से एकबार फिर लड़खड़ाती आवाज में कहना शुरू किया। क्यों करते हो यह बर्बरता अमानुषिकता ? क्यों सहते हो गुलामी। इंसान हो अपने पिता परमेश्वर से अपने रिश्ते को अनुभव करो। तोड़ फेंको गुलामी, उखाड़ फेंको जड़ से इन अमानुषिक परम्पराओं को .....। कहते-कहते उसकी आवाज काँपने लगी। उसने अपने दोनों हाथ सूर्य भगवान को नमन करने के लिए उठाए और फिर वहीं शहीद हो गया।

स्पार्टाकस की शहादत ने दर्शकों की सोयी मानवता को बुरी तरह झकझोर डाला। स्पार्टाकस की भावनाओं की चिनगारी दावानल बनकर भड़क उठी। जिसमें कोलो-सियम में होने वाली खूनी लड़ाइयों की परम्पराएँ और दासों पर होने वाले अमानुषिक अत्याचारों के रिवाज दोनों ही भस्म हो गए।


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