औरों में अच्छाइयाँ देखने से ही आत्मविकास संभव

September 1995

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यह भी कोई बात हुई कि अपने-अपने बारे में सोचना-देखना ही छोड़ ----- सोचिए यदि किसी का सहारा आपको अनुचित प्रतीत होता है तो यह मानने के पहले कि सारा --- उसी का है आप अपने बारे में ---- कर लें। इस तरह दूसरों ---- करने का आधा कारण ---- आप खत्म हो जाएगा। कई --- होता है कि किसी की ---- भूल या अस्त-व्यस्तता पर ----- पूर्वक कुछ उपहास कर देते ---- इससे तो सामने वाले व्यक्ति ----- पर चोट लगना ---- अपनी प्रशंसा सबको प्यारी लगती है। कोई नहीं चाहता कि --- लोग उसका उपहास करें, --- अब यदि आपके -----व्यवहार के कारण यदि औरों ----- कटुता या तिरस्कार --- तो उस अकेले का ही दोष ---- की भावना बनाने के ---- अपना भी दोष दर्शन कर ---- तो अकारण उत्पन्न होने --- झगड़े क्यों हों?

अगर किसी को अपनी बात समझानी ही है अथवा यह पूरी तरह से --- लिया गया है कि अमुक कार्य में इस व्यक्ति का हित है, तो भी अशिष्ट या --- व्यवहार का आश्रय लेना ठीक ---- वह व्यक्ति आपके तर्क या ----- नहीं मानता तो आप उसे --- मूर्ख या दुष्ट समझने लगते हैं --------- ही ऐसा कुछ कह या ----- जो उसे बुरा लगे। इससे ----को चोट लगती है --------- प्रतिक्रिया भी कटु होती है ------ की ही सम्भावना अधिक --------

इसी बात को स्नेह और --- पूर्वक कहें तो सम्बन्ध भी --- रहते हैं और बात भी मान -- है। ऐसे समय किन्हीं व्यक्तियों या घटनाओं के उदाहरण प्रस्तुत करें तो प्रभाव और भी परिपुष्ट होगा, लेकिन यह ध्यान बना रहे कि बात पूर्ण आत्मीयता से कहीं जा रही है। इतने पर भी शत-प्रतिशत यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि वह आपकी बात मान ही ले, क्योंकि उसकी अपनी धारणा भी तो किसी आधार पर टिकी होती है। उसके सिद्धान्त में बल है अथवा नहीं-यह अलग बात है। बात सिर्फ मान्यता की है। ऐसे समय उसे दुष्ट मानने की अपेक्षा यह देखना अधिक श्रेयस्कर है कि उसके ज्ञान या अनुभव में कमी है, या उसे प्रभावित करवाने की क्षमता का आप में अभाव है। इस प्रकार के विचार से आप उत्तेजित भी नहीं होते, क्रोध भी नहीं आता और प्रतिशोध या बदला लेने की भावना भी नहीं बनती। आपके सम्बन्ध भी ज्यों के त्यों बने रहते हैं। उनमें भी किसी प्रकार का तनाव पैदा नहीं होता।

मनुष्य को सम्मान उसकी योग्यता, गुरुता, कार्य क्षमता और उपयोगिता के आधार पर मिलता है। पात्रता के अभाव में किसी को सम्मान मिलने की आशा नहीं बाँधनी चाहिए। अहंकारवश कई व्यक्ति पात्रता न होते हुए भी दूसरों से भारी सम्मान की आशा करते हैं और जब वह नहीं मिलता है तो दूसरों को दोष देने लगते हैं। उन्हें अपना विरोधी, शत्रु या ईर्ष्यालु मानने लगते हैं। कई व्यक्ति इसी अहंकार वश अनावश्यक शेखी खोरी करते रहते हैं और जो उनसे सहमत नहीं होता उससे क्षुब्ध होते हैं। ऐसी झूठी शेखी जताने से आपका सम्मान गिर जाएगा और दूसरों से प्रतिष्ठा पाने की आपने जो आशा की थी, उससे भी वंचित बने रहेंगे।

यह भी देखिए कि ऐसी ही अपेक्षा दूसरे भी आपसे रखते हैं। जिस प्रकार आपको प्रशंसा प्रिय है, वैसे ही दूसरों को भी। आप दूसरों से सहयोग और सहानुभूति चाहते हैं वैसे ही आपके मित्र, बन्धु, पड़ोसी भी आपसे ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं। स्वयं औरों से सेवा लेकर दूसरों को अँगूठा दिखाने का संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाने से आप औरों की नजर में गिर जाएँगे। यदि चाहते हैं कि आड़े वक्त आपकी कोई मदद करे तो औरों के दुःख में हाथ बँटाइए और सहानुभूति प्रकट कीजिए, औरों के साथ उदारता- पूर्वक व्यवहार करने से ही उनका हृदय जीत सकते हैं- सहयोग और सहानुभूति प्राप्त कर सकते हैं। इस संसार में सर्वत्र क्रिया की ही प्रतिक्रिया चलती है। “ दो तो मिलेगा” की ही नीति सच्ची और व्यावहारिक है।

मनीषी मैक्स जेमर अपने मनोवैज्ञानिक अध्ययन “ आबजर्ब योर ओन सेल्फ “ में बताते हैं कई बार ऐसा होता है कि कोई बात आप भूल जाते हैं। कोई बात आपकी स्मरण शक्ति से उतर जाती है। इसका दण्ड आप अपने घर वालों, बच्चों और प्रियजनों को देने लगते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आप यह मान बैठते हैं कि मैंने बच्चे को अमुक वस्तु लाने के लिए कह दिया था, जबकि वस्तुतः आपने कहा ही नहीं था। यदा-कदा अस्पष्ट या अधूरे आदेशों को दूसरा ठीक प्रकार समझ नहीं पाता और आप यह समझ बैठते हैं कि हमारी अवज्ञा की गयी है। जिसे आदेश दिया था वह अपनी असमर्थता प्रकट करता है तो इसे उसकी गलती मानकर झिड़कते और भला-बुरा कहते हैं। भूल जाने की बात मानवीय है। आपकी ही तरह दूसरा भी मानसिक कमजोरी के कारण भूल कर सकता है। आप यही मान लें कि भूल हमसे या दूसरों से हो सकती है तो क्यों दुर्भाव पैदा करेंगे। मानसिक सन्तुलन बनाए रखने के लिए इस प्रकार करना ही अच्छा होता है।

मनोवैज्ञानिक अब्राहम मैस्लो मोटिवेशन एण्ड पर्सनैल्टी” में कहते है कि गलतियाँ जल्दबाजी करने से भी होती हैं। इसलिए कोई समस्या आने से उस पर पूर्ण रूपी से विचार कर लेने के बाद ही कोई कदम उठाना अच्छा होता है। आप ढूँढ़े तो हर परेशानी का -------- कारण तो अपने में ही मिल ---- है। यहाँ यह नहीं कहा जा रहा कि गलती हर बार आप ही करते हैं, सुचित रूप से किसी को अकारण -------- न मिले, इसलिए प्रत्येक अवस्था अपनी भूल ढूँढ़नी चाहिए। यह --- है कि दूसरा व्यक्ति भूल-भ्रम या ----- आपकी इच्छा पूरी न ----- सका हो। ऐसी दशा में उस पर ----- का आरोपण कर बैठना अन्याय -- कहा जाएगा। किसी के प्रति ---- पूर्ण धारणा बना लेने से बुरी --- उत्पन्न होती है। इसलिए --- पर दोषारोपण करने से पूर्व शान्त --- से यह देखना चाहिए कि आपकी ---या दूसरे की विवशता के कारण तो ऐसा अप्रिय प्रसंग नहीं बन पड़ा आपको क्षुब्ध बनाए हुए है।

जो लोग प्रत्येक कार्य में अपने ---- सर्वथा सही मानकर दूसरों को --- मानते हैं वे भूल करते हैं। इससे ---- दब जाती है और मनोमालिन्य झंझट बढ़ने लगते हैं। ---- ए. सी ब्लिस अपने ग्रन्थ- --- ऑफ बिहेवियर” में बताते हैं कि संसार के सभी व्यक्ति भिन्न-भिन्न व प्रकृति के होते हैं। दो सगे --- तक की आदतों में बड़ा अन्तर --- जा सकता है, फिर सभी आपकी --- मान्यता या अभिरुचि का --- करें ऐसा सम्भव नहीं। --- चावल पसन्द है, किसी को --प्रिय है। इतना अन्तर तो प्रायः ----- है। इस तथ्य को समझते हुए ---- दोषी ठहराने न ठहराने की ---- समाधान करने में अपने --- पिछली पंक्ति में खड़ा करना ---- समन्वय से काम चल जाय तो बात है, किन्तु कदाचित् ऐसा --- होता तो भी अपनी रुचि भिन्नता ---- में रखते हुए दूसरों की इच्छा सहन करनी चाहिए। दूसरों की इच्छा के लिए यदि आप अपनी अभिरुचि का दमन कर देते हैं तो सामने वाले पर आपकी इस सद्भावना का असर जरूर पड़ेगा। दूसरे क्षण वह आपकी इच्छाओं को प्राथमिकता देगा घरेलू वातावरण में सद्भावना का वातावरण बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक वस्तु का चुनाव करते समय आप यह मान लीजिए कि इसके दोषी आप भी हो सकते हैं तो आए दिन होने वाले झगड़ों में से बहुत से तो स्वतः ही मिट जाएँगे।

प्रिय दर्शन मनुष्य का श्रेष्ठ गुण है। औरों में अच्छाइयाँ देखने से अपने सद्गुणों का विकास होता है। यह कहना कि दूसरे ही निरे दोषी हैं, अनुचित बात है। संसार में हर किसी में कोई न कोई सद्गुण जरूर होता है। किसी में सच्चाई अधिक है, कोई ईमानदार है, कोई अच्छा वक्ता है, कोई संगीतज्ञ है। आत्मीयता, उदारता, साहस, नैतिकता, श्रमशीलता जैसे सदाचारों में से कोई न कोई सम्पत्ति किसी के पास मिलेगी। इन्हें ढूँढ़ने का प्रयास करें, उनके सत्परिणामों पर ध्यान दें तो अपना भी जी करता है कि हम भी वैसा ही करे। आत्म विकास का क्रम यही है। स्वयं के व्यक्तित्व को श्रेष्ठतर, श्रेष्ठतम बनाने की पद्धति यही है कि छिद्रान्वेषण के स्वभाव को त्याग कर प्रत्येक व्यक्ति में जो अच्छाइयाँ दिखाई दें उनकी प्रशंसा करें और स्वयं भी वैसा ही बनने की कोशिश करें।

जिस तरह हम दूसरे व्यक्तियों के सद्गुणों से प्रेरणा लेते हैं, उसी प्रकार अपने दोष दुर्गुणों को ढूँढ़ने और निकाल कर बाहर कर देने से आत्म शोधन की प्रक्रिया और भी तीव्र होती है। मनीषी बी. एफ. स्किनर अपने शोधग्रंथ “ बिहेवियरि पत्र” में कहते हैं कि हरेक की अपनी अलग-अलग कठिनाइयाँ होती हैं। हो सकता है कोई अधीर हो, कोई चिड़चिड़ा हो, कोई ईर्ष्यालु अथवा अर्थ-लोलुप हो। अब इन कठिनाइयों, विकारों की खोजबीन कर लें तो उन पर शान्तिपूर्वक नियन्त्रण का प्रयास ---- चाहिए। मान लीजिए ---------- चिड़चिड़ा पन अधिक है------- उत्तेजित हो जाता है -- समझता भी है पर यह ------- कि यह दोष उसके स्वभाव ------ है। यह उसके छूट------ ऐसी निराशा सर्वथा अनुपयुक्त----- मनुष्य चाहे तो अपने स्वभाव ------ प्रयत्न करके आसानी से ----- है। हमें अपना स्वभाव और ---- संघर्षमय न बनाकर ------ चाहिए। सड़क पर चलते हैं तो ----- चुभेंगे ही, लेकिन पैरों में जूते ------ से चलते रहने की क्रिया में ------ नहीं पड़ता और आत्म रक्षा ----- जाती है। इसी प्रकार चिड़चिड़ा ------- प्रतिद्वन्द्वी मनोभाव धैर्य और ------ को अपना लेने से भी ------ से रक्षा की जा सकती है।

दूसरों को उजड्ड ------- बताने की अपेक्षा यह अच्छा है----- आप स्वयं अपने आपको ही ------ बनाए। औरों में दोष देखने ------ करें। साथ ही अपनी ----- दूरदर्शिता, सहनशीलता जैसे ----- का विकास करते रहें। इस --- पूर्ण मार्ग पर चलने से ही यह ---कि दूसरे लोग आपका सम्मान करें----- आपकी बात मानें। ---- सहानुभूति का व्यवहार करे। ---- कोई व्यक्ति स्वेच्छा से बुरा नहीं ----- अतः मनुष्य को यह सोचने की ----- विचारों के अनुसार जो लोग ---- करते हैं वे हमें परेशान करने के ---- से ऐसा करते हैं। इस प्रकार --- कल्पनाओं से सावधान रहें ताकि ---- के साथ अन्याय न हो जाय। ---- कारण अपने स्वभाव की छोटी---- त्रुटियाँ भी हो सकती हैं। जिन्हें ---- नगण्य मानते रहे हैं। इसलिए दूसरों ------- सामञ्जस्य, सौहार्द, सौजन्यता, ---- आत्मीयता बनाए रखने के लिए ---- उचित है कि जब भी कोई ---- परिस्थिति उठती दिखाई -----7 दोषों को देख लिया करे,---- में सोच लिया करें।


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