आन्तरिक वरिष्ठता (Kahani)

September 1995

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

व्यक्ति धर्मोपदेशक हों अथवा विद्वान्-मनीषी वह अपने आपको कितना तपा सका, इस पर उसकी आन्तरिक वरिष्ठता निर्भर है।

सन्त राबिया जंगल में तप कर रही थीं। पशु-पक्षी उसके इर्द-गिर्द बैठे हँस-खेल रहे थे।

हसन उधर से निकले, उन्हें भी पहुँचा हुआ सन्त माना जाता था।

हसन जैसे ही राबिया के नजदीक पहुँचे, सारे पशु-पक्षी उन्हें देखते ही भाग खड़े हुए।

उन्हें अचम्भा हुआ और राबिया से पूछा-जानवर परिन्दे तुमसे लिपटे रहते है और मुझे देखकर भागते है, इसकी वजह?

राबिया ने पूछा-आप खाते क्या है?

हसन ने कहा-आमतौर से गोश्त ही खाने को मिलता है।

राबिया हँस पड़ी। लोग आपको जो भी समझे उनकी मर्जी। पर आपका दिल कैसा है, उसे यह नासमझ जानवर अच्छी तरह जानते है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles