यज्ञेन हि देवा दिवंगताः यज्ञेनासुरानपानुदन्तः। योन द्विषन्तों मित्रा भवन्ति यज्ञेन सर्वं प्रतिश्ठितम् तसमाद्यज्ञं परमं बदन्ति।
यज्ञ से देवताओं ने स्वर्ग ने स्वर्ग को प्राप्त किया ओर असुरों को परास्त किया। यज्ञ से शत्रु भी मित्र बन जाते है। यज्ञ में सब प्रकार के गुण है। अतः श्रेष्ठजन यज्ञ को श्रेष्ठ कर्म कहते है। -महानारायणीयोपनिषद्।
अग्नौ प्रास्ताहुतिः समयगादित्यमुपितिष्ठते। आदित्याज्जायते वृष्टिवृष्टेरन्नं ततः प्रजाः॥
अग्नि में विधि -विधानपूर्वक दी हुई आहुति सूर्यदेव को प्राप्त होती है। पश्चात् उससे वृष्टि होती है। वृष्टि से अन्न होता है और अन्न से प्रजा की उत्पत्ति होती है। -मनुसमृति 3/73
यज्ञों विश्वस्य भूवनस्य नाभिः।
यज्ञ ही समस्त ब्रह्माण्ड को बाँधने वाला नाभि स्थान है। -अथर्ववेद 9/10/14
यज्ञाः कल्याणहतवः।
यह कल्याण के हेतु हैं। -विष्णु पुराण 6/9/8
यज्ञैश्चदेवानाप्नोति।
यज्ञ से देवताओं का अनुदान प्राप्त होता है। -अग्नि पुराण 180/9
यज्ञभागभुजःसर्वे।
सभी या-भाग के भागीदार होते है। -दुर्गा सप्तशती 13/34