देव संस्कृति दिग्विजय का विदेशी मोर्चा

November 1992

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

वर्ष 1994 तक के लिए भारतवर्ष में बारह अश्वमेधों की घोषणा हो चुकी है। इसी तरह लंदन (इंग्लैंड) लॉसएंजेल्स (अमेरिका) नैरोबी (केन्या-पूर्व अफ्रीका) तथा शिकागो (अमेरिका) इन चार स्थानों पर भी व्यक्तिगत संपर्क अथवा पत्राचार के माध्यम से अश्वमेध आयोजन निर्धारित हो चुके है।

दिनाँक 6 सितम्बर 92 रविवार को लिस्टर (यू.के.) में संपन्न 108 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में लंदन में संपन्न होने वाले अश्वमेध यज्ञ की घोषणा तुमुल हर्ष ध्वनि के साथ की गयी। इस अवसर पर उपस्थित दस हजार व्यक्तियों के समुदाय ने देव संस्कृति की रक्षा के नारे लगाये और भागीदारी संकल्प पत्र भरने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया। बड़ी संख्या में गोरे लोग भी इस अवसर पर उपस्थित थे। देव संस्कृति की परिभाषा से वे सब न केवल उल्लास भरे थे अपितु उन्होंने उसके लिए अपनी सेवाएं प्रदान करने की विधिवत घोषणा भी की।

चौबीस-चौबीस हजार गायत्री महामंत्र जप के चार अनुष्ठान और 24 हजार गायत्री मंत्र लेखन करने वाले साधक गण इस अश्वमेध में भाग लेंगे। उसके लिए आवश्यक उत्तरदायित्वों का वितरण कर दिया गया है। गायत्री उपासना की व्यापक जानकारी और महत्व पर प्रकाश डालने वाली पुस्तकों के व्यापक प्रसार की व्यवस्था की जा रही है। हिंदी में प्रकाशित उपासना के दो चरण जप और ध्यान का अंग्रेजी अनुवाद “रिसाइटेशन एंड मेडीटेशन-दि टू स्टेजेज ऑफ वरशिप” तथा दि ग्रेट साइंस ऑफ गायत्री नामक पुस्तकें इस संबंध में सहायक और मार्गदर्शक सिद्ध हुई हैं उनकी भाग माँग को पूरा किया जा रहा है।

जिस समय डॉ. प्रणव पंड्या और शाँतिकुँज से गई टोली की उपस्थिति में लिस्टर में इस अश्वमेध की घोषणा हो रही थी ठीक उन्हीं क्षणों में इसी आशय का आयोजन अमेरिका के शिकागो नगर में हो रहा था। उन्हें फोन से सारे निर्देश दे दिये गये थे। उसी आधार पर वहीं उपस्थित जन समुदाय ने अपने यहाँ अश्वमेध आयोजन की घोषणा की। उपस्थित जन समूह इससे आह्लादित हो उठा। सभी ने हर्षध्वनि की ओर हाथ उठाकर इस कार्यक्रम का समर्थन किया।

यह एक मौन स्वीकृत है, कि जिस देव संस्कृति के विस्तार के लिए भारतवर्ष में प्रयास करना पड़ रहा है उसी के लिए अमेरिका और इंग्लैण्ड की धरती से वहाँ के मूल निवासियों द्वारा भूख जताई जा रही है। वे अब पदार्थवादी भौतिक संस्कृति से ऊब चुके हैं और भावना संपन्न श्रद्धा संस्कृति से जुड़कर परम शाँति और प्रसन्नता अनुभव कर रहे हैं। दवायें लेकर भी जिन्हें नींद नहीं आती उन्हें आत्मा देवता की गोद में सारी थकावट मिटा देने वाली नींद आ रही है उनकी साहित्यिक भूख मिटाने के लिए वहाँ की परिस्थितियों के अनुरूप साहित्य भेजने की व्यवस्था की जा रही है।

अश्वमेध साहित्य भेज दिया गया है। पर्चे, पोस्टर्स भी भेज दिये गये हैं, उससे भारतवर्ष की तरह ही वहाँ भी व्यापक प्रक्रिया प्रारंभ होने जा रही है। प्रारंभिक कदम जितना बुलंद है उसी से उसके प्रतिफल विश्वव्यापी होने की संभावना को सुनिश्चित समझा जा सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles