साधना पुरुषार्थ एवं सूक्ष्मजगत का अनुकूलन

November 1992

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अश्वमेध यज्ञानुष्ठान एक दिव्य पुरुषार्थ है। कोई भी श्रेष्ठ पुरुषार्थ श्रेष्ठ भावना एवं श्रेष्ठ विचारणा के बिना सम्पन्न नहीं हो सकता। यज्ञीय पुरुषार्थ के लिये व्यापक स्तर पर यज्ञीय भावना का विकास विस्तार अनिवार्य होता है।

देव संस्कृति दिग्विजय अभियान भावभरी प्रेरणा है और देश के विभिन्न भागों में सम्पन्न होने वाले दशाश्वमेध यज्ञ उसके स्थूल कर्मकाण्ड मात्र है। यह भाव श्रद्धा महाकाल के प्रचण्ड संकल्प का प्रतीक है। विश्वास किया जाना चाहिये, उसके प्रतिफल भी अभूतपूर्व होंगे। इस श्रृंखला के संपन्न होने पर मिलने वाले देव अनुग्रह को लोग आश्चर्यचकित नेत्रों से देखेंगे, विश्वास नहीं कर पायेंगे कि प्रचण्ड राष्ट्रीय समर्थता का यह चमत्कार हो कैसे गया। राष्ट्रीय समर्थता का लाभ अन्ततः उसके नागरिकों को ही मिलता है साँसारिक सिद्धियों के रूप में भी अच्छी फसल प्राप्त करने के लिये खेत तैयार करने बीज बोने खाद−पानी एवं निराई गुड़ाई का पुरुषार्थ किया जाना भी अनिवार्य है किन्तु इन सबके साथ साथ ऋतु की अनुकूलता भी तो चाहिये। यदि वह न हो तो अकेला स्थूल पुरुषार्थ ही मनुष्य के अधिकार क्षेत्र में है। यों अगर यह पुरुषार्थ। इन दोनों से साधनात्मक पुरुषार्थ ही मनुष्य ही अधिकार क्षेत्र के अधिकार क्षेत्र में हैं यों अगर यह पुरुषार्थ व्यापक स्तर किया जाय तो देव अनुग्रह .....उसके साथ स्वभावतः जुड़ जाता है। इसलिये ..... प्रयोजनों के लिये स्थूल व्यवस्था से भी अधिक साधना पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है।

महाकाल के संकल्प के फलस्वरूप देवसंस्कृति दिग्विजय अभियान के साथ साथ अश्वमेध यज्ञों की श्रृंखला बन गयी। उसमें क्रमशः और अधिक वृद्धि भी स्वाभाविक है। घोषणा के साथ ही उस दिशा में तत्परतापूर्वक कार्य चल पड़े है। यज्ञशाला के वेद सम्मत स्वरूप और अनुशासनों का निर्धारण भी हो गया है। यज्ञ और देव पूजन का भव्य स्वरूप भी सुनिश्चित हो गया है। समूचे राष्ट्र में एक अश्वमेधीय लहर जाग्रत हो गयी है। सूत्रधार की इस महाशक्ति को पहचानने वाले गद् गद् अन्तःकरण से दिग्विजय प्रव्रज्या और आयोजन की तैयारियों में जुट गये है। इसे सफलता का शुभ सुकून माना जा सकता है। किंतु इन सब सफलताओं के बीच साधनात्मक पुरुषार्थ पर से ध्यान हटने नहीं दिया जा सकता। यज्ञ को फलित करने के लिये सूक्ष्म जगत में अनुकूल शक्ति प्रवाह उत्पन्न करने के लिये साधनात्मक प्रयोगों को व्यापक ओर प्रखर बनाया जान आवश्यक है। यज्ञ के समस्त उपकरण उपलब्ध हो पर अरणि मंथन न किया जाये तो यज्ञाग्नि प्रकट कैसे हों? गाड़ी एम्बैसउरी दो ढाई लाख की पर उसमें दस रुपये लीटर वाला पेट्रोल ईंधन न डाला जाये तो ऊर्जा कैसे पैदा हो? इतने बड़े यज्ञ कृत्य के रक्षा कवच के लिये शास्त्रकारों ने जिस ऊष्मा की आवश्यकता अनुभव की उसके लिये व्यापक सावित्री अर्थात् गायत्री उपासना और विशेष अनुष्ठानों प्रावधान किया गया है। इस निर्धारण को ध्यान में रखकर अधिकाधिक व्यक्तियों को यज्ञ के निमित्त गायत्री उपासना सविता साधना के लिये प्रेरित किया जा रहा है।

यह सर्वविदित है कि यज्ञ के फल का अंश जप तप साधना के अनुपात में मिलता है। जो साधकगण दिग्विजय अभियान अथवा यज्ञीय व्यवस्था क्रम में श्रम कर रहे है उनको इस तप साधना का लाभ स्वाभाविक रूप से मिलेगा ही भले वे जप साधना कम कर पायें। जो इस तप साधना में भागीदारी नहीं ले पा रहे है उन्हें जप साधना का लाभ स्वाभाविक रूप से मिलेगा ही भले ही वे जप साधना कम कर पाये जो इस साधना भागीदारी नहीं ले पा रहे है उन्हें जप साधना में अधिकाधिक मनोयोग एवं समय लगाने का प्रयास करने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये। सूक्ष्म जगत के शोधन अनुकूलन के लिये शास्त्रों ने गायत्री मंत्र को अत्यधिक प्रभावकारी माना। थियोसोफिकल सोसाइटी के सर्वमान्य दिव्यदृष्टि सम्पन्न आँकल्टिस्ट पादरी लैउलिटर का भी मत भारतीय शास्त्रों के अनुरूप ही है। उन्होंने सूक्ष्म जगत में होने वाली हलचलों का अध्ययन करके इस मंत्र को सर्वाधिक प्रभावशाली माना हैं। पाश्चात्य विद्वान आर्थरकोयस्लर ने तो इसे परमाणु शक्ति से भी अधिक प्रबल एवं प्रभावकारी कहा है।

पदार्थ परक तकनीक के आधार पर अंतरिक्ष में विचरण कर रहे यानों को पदार्थगत सूक्ष्म तरंगों से नियंत्रित किया जाता है।। मंत्रशक्ति के माध्यम से यज्ञीय भावना एवं चिन्तन को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है। यह विराट प्रकृति स्वयं यज्ञीय अनुशासन में रहकर प्राणिमात्र के कल्याण में संलग्न है उसी स्तर की यज्ञीय भावना एवं विचारणात्मक तरंगों से उसका तादात्म्य सहज ही हो जाता है। अभी भी लाखों नर नारी गायत्री उपासना में संलग्न है, इस अभियान से उनकी संख्या करोड़ों साधकों की एकनिष्ठ भावभरी साधना आसमान को हिला सकती है।

इस महान अनुष्ठान में भाग लेने से रोका किसी को नहीं जाना है प्रेरित हर भावनाशील को किया जा रहा हैं मानव मात्र के लिये उज्ज्वल भविष्य की कामना से परमात्मा से भावभरी प्रार्थना सभी को करनी चाहिये जो गायत्री मंत्र जप सकें वे कम से कम एक माला का जप नित्य करें उसे कम से कम अपने क्षेत्र में होने वाले अश्वमेध यज्ञ तो अवश्य चालू रखें। जो मंत्र जप न कर सके वे नित्य कम से कम 24 मंत्रों का लेखन करें वह भी न बन पड़े तो कम से कम गायत्री चालीसा का एक पाठ नित्य करें।

यह तो न्यूनतम साधना की बात हुई। नये जुड़ने

वाले नर नारियों के लिये इतना भी पर्याप्त है। किन्तु श्रद्धावान साधकों की भी इस इस देश में कमी नहीं है। जगह जगह नैष्ठिकों ने यज्ञार्थ छोटे बड़े गायत्री जप अनुष्ठान प्रारंभ कर दिये है। सवेरे से शाम तक अखण्ड जप के सामूहिक आयोजन गाँव गांव मुहल्ले मुहल्ले इसी निमित्त किये जाने लगे है। प्रत्येक अश्वमेध यज्ञ के लिये निर्धारित क्षेत्रों में प्राणवान परिजनों के द्वारा यह साधनात्मक लहर तीव्रतर की जा रही है।

शांतिकुंज में इस संदर्भ में विशेष अनुष्ठान सत्रों की श्रृंखला प्रारंभ की गयी है। इसे आश्वमेधिक अनुष्ठान श्रृंखला कहा गया है। जो इस श्रृंखला के किसी एक सत्र में अनुष्ठान संपन्न करेंगे, उन्हें अश्वमेध यज्ञ का प्रयोजक ऋत्विज् माना जायेगा। वे जिस अश्वमेध यज्ञ में यजन करना चाहेंगे उसके लिये उन्हें विशेष अनुमति पत्र दिया जायेगा। उनके लिये यज्ञशाला में विशिष्ट अभ्यागतों के अनुरूप ही विशेष स्थान सुरक्षित भी रखे जायेंगे।

प्राचीन काल में तो उस के लिये एक वर्ष का समय निर्धारित होता था। इस अनुष्ठान में पति पत्नि यदि है तो दोनों का भाग लेना आवश्यक था। वे एक वर्ष तक किन्हीं विशिष्ट तीर्थस्थलों में पर्णकुटीरों में रह कर ब्रह्मचर्यपूर्वक नियत अनुष्ठान सम्पन्न करते थे। आज लोगों में न तो वह मनोबल है और न शारीरिक क्षमता। व्यस्तता भी आज इस स्तर तक बढ़ गई है कि एक वर्ष या एक माह का समय निकाल पाना भी असंभव हो गया है। अतएव नौ नौ दिन के कुटी प्रवेश आश्वमेधिक अनुष्ठान की व्यवस्था की गयी है। यह पुरश्चरण आश्विन नवरात्रि से प्रारम्भ होंगे। और चैत्र नवरात्रि तक चलेंगे। इन साधकों को यहाँ से विधिवत् लघु प्रमाण पत्र दिया जायेगा, जिसे दिखाकर ही वे अपने यहाँ के अश्वमेध यज्ञ में प्रयोजक पद पर प्रतिष्ठित होकर आहुतियां प्रदान करेंगे। इस श्रृंखला को लगातार सन् 2000 तक इसी क्रम में आश्विन नवरात्रि से चैत्र नवरात्रि तक चलाया जाता रहेगा। इस वर्ष के सत्र इस प्रकार होंगे।

अश्विन नवरात्रि के बाद 11 अक्टूबर शरद पूर्णिमा से यह सत्र प्रारंभ होंगे। 11 से 19, 21 से 29 एवं 1 से 9 के क्रम से प्रतिमाह 19 मार्च तक लगातार चलेंगे।

ठन सत्रों में पहले से अनुमति लेकर ही शामिल हुआ जा सकता है। सीमित स्थान होने के कारण इच्छुक व्यक्तियों को क्रमशः स्थान देना ही संभव हो पाता है। जिन्हें भाग लेना हो वे सादा कागज पर अपना एवं अपने पति अथवा पत्नी का नाम शिक्षा योग्यता तथा पूरा पता लिखें। किस सत्र में आना चाहते है उसका उल्लेख करें यदि इच्छित सत्र पहले से भर चुका हो, तो विकल्प के रूप में किस सत्र की स्वीकृति चाहेंगे, यह भी लिखे। इस प्रकार आवेदन प्राप्त होने पर अनुमति भेज दी जाती है। अश्वमेध यज्ञ में भागीदारी के लिये जन जन को गायत्री साधना के लिये प्रेरित किया जा रहा है। उसी आधार पर याजक पंजीकृत भी किये जा रहे है सभी भावनाशीलों श्रद्धालुओं का इस हेतु सादर आमंत्रण है।


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