वस्तुस्थिति को समझा (Kahani)

December 1988

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बहुत दिन कठोर साधना के बाद तीन सन्तों ने सिद्धि मार्ग में प्रवेश किया। एक ने पानी पर चलने की सिद्धि प्राप्त कर ली, दूसरे ने हवा में उड़ने की। तीसरा गड्ढा खोद कर उसमें बैठने और बिना हवा में जीवित रहने की कला सीख गया।

उनने अपने चमत्कार जनता को दिखाने, अचंभे में डालकर ख्याति प्राप्त करने की योजना बनाई। ख्याति प्राप्त होने पर भावुक लोगों से धन भी प्राप्त किया जा सकता था।

प्रदर्शन की घोषणा की गई। बड़ी संख्या में जनता भी एकत्र हुई। प्रदर्शन हुए और दर्शकों ने उन्हें कौतूहल भरी दृष्टि से देखा। आश्चर्यचकित लोगों ने प्रसन्नता भी की और उन सफल प्रदर्शनों से भाव विभोर लोगों ने तालियां बजाकर अपनी प्रसन्नता भी व्यक्त की।

आयोजन समाप्त हो जाने पर एक ज्ञानी ने तीनों को एकान्त में बुलाया। आप लोगों को यह क्षमता प्राप्त में कितना समय लगा। तीनों ने कहा- बारह-बारह वर्ष।

ज्ञानी ने कहा- तब फिर तुम लोग इतने ही कर पाये जो एक मछली, एक मक्खी और एक चुहिया निरन्तर कर दिखाती रहती है और उस सामान्य अभ्यास में अपनी कोई विशेषता नहीं मानती। यह कार्य तो नाविक, वायुयान - संचालक और पनडुब्बी में बैठने वाले भी सरलता पूर्वक करते रहते हैं। इसके लिए इतना श्रम करने और प्रदर्शन रोपने की क्या आवश्यकता थी?

सिद्ध पुरुषों ने वस्तुस्थिति को समझा। अपने चमत्कारों की बात को कौतूहल माना। गलती सुधारी और भविष्य में आत्मशोधन एवं लोक कल्याण का वह मार्ग अपनाया जिसे सच्चे अध्यात्म प्रेमी सदा से अपनाते रहे हैं।


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