अभिशप्त सुवर्ण सम्पदाओं से जुड़े दुर्योग

December 1988

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सुख साधनों के उपभोग, अधिक और अधिक धन पाने की लिप्सा मनुष्य को कभी शान्त नहीं हुई। उचित या अनुचित किसी न किसी तरीके से वह अपनी यह इच्छा पूरी करने की क्षणमात्र में धन कुबेर बनने की पूरी कोशिश करता है। इसी ललक लिप्सा से रंगे हुए इतिहास के पन्ने बताते है कि कर्म का विधान ही धरित्री पर विद्यमान रहेगा। रातोंरात धनपति बनने का कोई शार्टकट विधाता की व्यवस्था में नहीं है। जो धन अनीति से उपार्जित होता भी है, वह वैसा ही नष्ट भी हो जाता है, उस व्यक्ति के जीवन को भी अभिशप्त बना जाता है। सौभाग्यों व दुर्भाग्यों का सूत्र संचालन किस केन्द्र में होता है, यह तो अभी तक पता नहीं चल पाया पर स्थानों व व्यक्तियों से जुड़ी कई घटनाएं बताती है कि अभिशप्त वस्तु को पाने का प्रयास ऐसे दुर्योगों को जन्म देता है, जिनका कोई अन्त नहीं है।

“द सर्च फॉर गोल्ड - एल्डोरेडो, लैण्ड ऑफ गोल्ड” (ए बेलेण्टान बुक पब्लिकेशन) नामक पुस्तक में इंका स्वर्ण साम्राज्य से जुड़े घटना क्रमों का बड़ा लोमहर्षक विवरण है 13 मार्च, 1932 को फ्रांसिस्को पिजारो नामक एक स्पेनिश व्यक्ति ने इंका की तत्कालीन राजधानी काजामारका की और प्रयाण किया। वैसे तो स्पेन, पुर्तगाल का इतिहास ही लुटेरों को गाथाओं से भरा पड़ा है। पूरा दक्षिण अमेरिका, वेस्टइंडीज, हाइटी, अमेरिका के पूर्वी तट उनके हमलों का सतत् शिकार होते रहे। पर फ्रांसिस्को एक लक्ष्य को लेकर चला था, किसी तरह इंका की राजधानी काजामारका तक पहुंचकर वहाँ चल रहे गृहयुद्ध लाभ उठाकर बहुमूल्य र्व्ण को हासिल करना। इसके लिये उसने खूंखार जलदस्यु साथ लिए व अपने गिरोह को लेकर दक्षिण अमेरिका के घनघोर जंगल में प्रवेश कर गया। से भनक लग चुकी थी कि अभी जो इंका राज्य का अधिपति है वह वहाँ के ग्यारहवें सम्राट एनाविल्हा की रखैल क्विटो से पैदा हुआ पुत्र अताहुअल्या है एवं उसमें तथा वास्तविक उत्तराधिकारी होईस्कूल में घनघोर पदार्थ चल रही है। अताहुअल्या ने षडयंत्र से न केवल हाईस्कर के पुत्रों पत्नियों व अन्य रिश्तेदारों को मरवा डाला, बल्कि उसका पक्ष लेने वाले सभी दरबारियों को खत्म करवा दिया था। इस तरह एक अनैतिक राजशाही का वहाँ अंकुश था। इसे एक सही मौका मानते हुए राज्य की सीमा पर पहुंचकर फ्राँसिस्को ने कूटनीति का आश्रय लेते हुए अपने भाई हरनाण्डो को राजा को आमंत्रित करने भेजा। हरनाण्डो ने बहुमूल्य भेंटें प्रस्तुत करते हुए राजा से बार बार उनके ठहरे हुए स्थान पर भोज के लिए चलने का नम्र निवेदन किया भेंटों से प्रसन्न व खुफिया सैनिकों से यह जानकारी पाकर कि विदेशियों की संख्या अधिक नहीं है, राजा ने हर्ष अनुमति दे दी व अगले दिन वह कुछ सैनिकों को साथ लेकर आया। फ्राँसिस्को ने आस पास अपने डाकू सहयोगियों को छिपा रखा था। स्वयं निःशस्त्र बाहर आते हुए उसने राजा से भी बिना अंगरक्षकों व शस्त्रों के, मैत्री भाव से अंदर आने की प्रार्थना की। भो के तुरन्त बाद तेवर बदलते हुए उसने राजा से ईसाई धर्म स्वीकार करने को कहा नहीं तो बन्दी बना लेने की धमकी दी। राजा ने कहा “ हमारा सूर्य भगवान जिन्दा है, हम ईसाई धर्म स्वीकार नहीं कर सकते।” इतना कह कर उसने अपने सैनिकों आवाज दी, पर तब तक तो उनकी मुश्कें बाँध दी गयी थी व अंगररक्षकों का वध कर दिया गया था। सम्राट की मुक्ति के लिये शर्त रखी गयी उस 22 फुट लम्बे, 20 चौड़े व 15 फीट ऊँचे कमरे में जितना स्वर्ण समा जाय, उतना मिलने पर सम्राट को आजाद कर दिया जायेगा। इंकावासियों ने स्वर्ण इकट्ठा कर पहुंचाया तो राजा को मृत पाया एवं उन्हें धमकी दी गयी कि जितना भी स्वर्ण उनके पास है, वह लगाकर दे। नहीं तो पूरे साम्राज्य को नष्ट कर दिया जायेगा।

राजा तो अवैध उत्तराधिकारी था ही अपनी मौत को वैसे ही प्राप्त हुआ। इंका वासियों ने भी अकर्मण्य बने रह विरोध न कर सारा स्वर्ण लाकर दे दिया व उधर गिने चुने स्पेनी लुटेरे उनके साम्राज्य को लूटते रहे आग लगाते हरे। जब वे लौटकर आए तो अपने सरदार को सारा सोना लदवाकर भागते हुए देखा, सभी लुटेरे आपस में लड़ कर वहाँ मर गए जिनमें फ्राँसिस्को भी था। एक ही व्यक्ति इसमें से जीवित बचा जो किसी तरह बचकर बिना कुछ लिए सब कुछ उबारकर इंका साम्राज्य को धूल धूसरित व सारे साथियों को खोकर वापस स्पेन लौटकर आया व यह सारी जानकारी दी। इस घटना से अन्दाज लगाया जा सकता है कि स्वर्ण चरीचिका किस प्रकार विनाश लाती है। कहते है कि इस सोने को आज तक कोई नहीं पा सका, आज उस स्वर्ण का मूल्य खरबों डॉलर होगा पर वह अविज्ञात खंडहरों में घन घोर जंगलों में लुप्त है एवं पंद्रहवीं सदी से लेकर अब तक अगणित व्यक्ति उसकी खोज में अपनी जान गंवा चुके है। इनका ही नहीं, ऐसे अवैध धन को हस्तगत करने का जिन जिन के प्रयास किया है, उन्हें काल का ग्रास बनना पड़ा है। दक्षिण अमेरिका में जो संस्कृति देखने में आती है, वह भारतीय संस्कृति से बहुत मेल खाती है। उनका रहन, सहन, पहनाव, उड़ावा, मंदिर महलों की बनावट को देखकर लगता है कि मय दानव का कभी यह क्षेत्र रहा होगा व यही भारत वर्ष से आकर बसे व्यक्तियों ने समृद्ध राज्य विकसित किया होगा। सोलहवीं सदी का एक प्रसंग है। इक्वेडोर जो पेरु से उत्तर में दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थिति है को स्पेनिश सरदार को जानकारी मिली कि पूर्व की और 2000 मील की दूरी पर एक राज्य है, जिसका राजा सुवर्ण की रेत से सतत् आवृत रहता है। यह रेत उस राज्य के मध्य से बहने वाली नदी के किनारे है जो सरोवर में समाप्त हो जाती है। सुवर्ण पुरुष को स्पेनिश भाषा में एल्डोरेडो कहते है। इस राजा को जिस पर रत्न निछावर होते ही देखने तथा समृद्ध प्रज्ञा को लूटने गोन्नालो क्वेस्डा नामक एवं यूरोपियन डाकू को साथ लेकर इम्बेडोर का वह स्पेनिश सरदार चल पड़ा। उन्होंने घाटी में पहाड़ काट कर चट्टानें नदी में डाल कर, राज्य व सरोवर के बीच का मार्ग बंद करने का प्रयास किया ही था कि चारों और से चट्टानें गिरने लगी व सभी लुटेरे उस स्वर्ण रेत में ही मृत्यु को प्राप्त हुए।

यह रक्त रंजित इतिहास दक्षिण अमेरिका के इस अपार स्वर्ण साम्राज्य से जुड़ा है जिसमें से बहुत-सा अभी तक अविज्ञात है। जो व्यक्ति लूटने की दृष्टि से गया, वह कभी लौट कर नहीं आया। पिछली एक शताब्दी में जो नृतत्वविज्ञानी, पुरातत्ववेत्ता सभ्यता की खोज में गए है, उन्हें स्वर्ण पात्र भी मिलते है व विनष्ट सभ्यता के अवशेष भी। परन्तु वे अक्षय स्वर्ण भण्डार तक अभी तक नहीं पहुंच पाये। इन्हीं से प्राप्त जानकारियों व संग्रहालयों में एकत्र स्वर्णपात्रों, आभूषणों से अनुमान लगाया जा सकता है कि कभी कोई अति समृद्ध संस्कृति वहाँ रही होगी।

समुद्रमंथन से चौदह रत्न प्राप्त हुए थे, यह सभी जानते हैं। इसमें सर्व प्रथम था काल कूट जहर जिसे नीलकंठ महादेव ने पिया था, फिर अन्याय रत्न मिले थे। जो भी व्यक्ति, रत्नों, हीरे के भांडागारों सुवर्ण सम्पदाओं को बिना पात्रता के लूटने खसोटने का कार्य करता है, उसका वही हाल होता है जो दक्षिणी अमेरिका में सोने की खोज में गए व्यक्तियों का हुआ। यह एक सनातन सत्य है व हमेशा रहेगा कि लोकहित के लिए ही किसी धन सम्पदा को प्राप्त किया जा सकना संभव है व वह प्रताप भामाशाह परंपरा की तरह सदैव मिलती रही रहेगी। छत्रसाल को महाप्रभु प्राणनाथ से पन्ना में हीरों से भरा भण्डार अनुदान रूप में प्रदत्त किया था ताकि वे यवनों से लड़ने हेतु सेना जुटा सके। उन्होंने वही किया व वे इतिहास में अमर बन गए। अनीति से अर्जित व अभिशप्त सम्पदा कष्ट कर मृत्यु लाती है एवं इस ललक लिप्सा में न जाने कितनी को अपनी गोदी में हमेशा के लिए सुला देती है। इस सनातन तथ्य को जानते हुए भी न जाने क्यों मनुष्य सही मार्ग पर नहीं चल पाता एवं अनीति का मार्ग ही खोजता हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles