पदार्थ विज्ञान अपने क्षेत्र में अपने पराक्रम के लिए गौरवान्वित हुआ है। अब अध्यात्म विज्ञान की बारी है कि वह जड़ की तुलना में असंख्य गुनी सामर्थ्य का भाण्डागार अपने में दबाये हुए चेतना तत्व का अनुसंधान करे वैसी उपलब्धियाँ हस्तगत करके दिखाये जैसी कि भौतिक के वैज्ञानिकों ने अपने पुरुषार्थ के बलबूते उपार्जित की है।
मनुष्य सामर्थ्य का पुँज है उसकी अपनी सत्ता का क्षेत्र परमाणु संरचना में किसी प्रकार कम अद्भुत नहीं है। अणु ऊर्जा की इन दिनों व्यापक चर्चा है और उसके उपयोग के सम्बन्ध में सुविस्तृत योजनाएँ बन रही हैं। अब जीवन तत्व की बारी है कि उसे समझा, खोजा, पकाया और उस रूप में लाया जाय जिसमें न केवल मानव समुदाय वरन् समूची सृष्टि व्यवस्था में सतयुगी परम्पराओं से पुनः लाभान्वित होने का अवसर मिल सके। उसमें अनहोनी कुछ नहीं है। प्राचीन काल में अपेक्षाकृत कम साधन रहते हुए भी जब आत्मिक क्षेत्र की महान उपलब्धियों, ऋषि−सिद्धियों के रूप में प्राप्त होती रही है तो कोई कारण नहीं कि इन दिनों वैज्ञानिक प्रगति के साथ−साथ बढ़े हुए ज्ञान और साधनों के सहारे उस क्षेत्र से कुछ बड़े अनुदान उपलब्ध न हो सकें। पौराणिक युग में देव और दानवों के मिलकर समुद्र मथा था और चौदह बहुमूल्य रत्न प्राप्त किया थे। अध्यात्म का देव और विज्ञान का दैत्य मिल−जुलकर चेतना के महासागर का मन्थन करेंगे तो निश्चय ही पहले की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण विभूतियाँ हस्तगत हो सकेगा।