Quotation

January 1982

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अध्यात्म क्षेत्र के सम्बन्ध में एक बहुत बड़ी भ्रान्ति है–उपचार अनुष्ठानों को बाजीगरी स्तर की चमत्कारी प्रक्रिया माना और कुछ क्रिया−कृत्य करने के उपरान्त तरह−तरह के अद्भुत दृश्य देखने, ऋद्धि सिद्धियाँ टपक पड़ने की आशा लगाना। आमतौर से लोग मन्त्र−तन्त्र इन्हीं उद्देश्यों के लिये अपनाते हैं, जब वैसी कुछ बाजीगरी कौतुक−कौतूहल नहीं दीखते तो उछलते−मचलते तमाशे के लालच में इकट्ठे हुए बच्चे उदास मन से घर लौट पड़ते और उस मजमे को खरी−खोटी सुनाते हैं, आज यही स्थिति समूचे धर्मक्षेत्र की है, अध्यात्म इन्हीं भ्रान्तियों के गली−कूचों में भटक रहा है, अविश्वासों आक्षेप करें तो बात समझ में भी आती है, पर जब विश्वासी और प्रयोक्ता भी जी चुराने लगें, पीछा छुड़ाने लगें ओर अविश्वास असन्तोष व्यक्त करने लगें तो समझना चाहिए कहीं दाल में काला अवश्य है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles