उठो चेतना के नये गीत गाओ (kavita)

July 1981

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उठो चेतना के नये गीत गाओ। न हम हार जायें, न तुम हार जाओ॥

अभी तम निगलते हुये दीप जागे, अभी आँख मलते हुये गीत जागे, अभी फूल खिलते हुये मीत जागे,

अभी भोर की गुनगुनी धूप लाओ। न हम हार जायें, न तुम हार जाओ॥

अभी रात वाली उदासी भरी है। अभी प्यार की आँख, प्यासी भरी है, मनुजता देखी है, रूंवासी डरी है,

उठो प्राण फूंको, प्रभाती सुनाओ। न हम हार जायें, न तुम हार जाओ॥

अभी आत्मघाती, पतन से लड़े हैं, समर आसुरी आचरण से लड़े हैं, अभी देव-परिवार, उजड़े पड़े हैं,

अभी दिव्यता को बसाओ, हँसाओ। न हम हार जायें, न तुम हार जाओ॥

अभी क्रान्ति-अभियान जारी रहेगा, अभी शान्ति-संग्राम जारी रहेगा, अभी प्राण-अनुदान जारी रहेगा,

अभी ज्योति से विश्व को जगमगाओ। न हम हार जायें, न तुम हार जाओ॥

अभी आदमी का परिष्कार होगा, अभी प्यार का दिव्य अवसर होगा, अभी विश्व ही, एक परिवार होगा,

जलाके दिये, आरती को सजाओ। न हम हार जायें, न तुम हार जाओ॥

*समाप्त*


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