गायत्री तीर्थ का स्वरूप और कार्यक्रम

July 1981

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शान्तिकुंज गायत्री नगर को गायत्री तीर्थ में परिणित करने की प्रक्रिया इस वर्ष दिनांक 12 जून को गायत्री जयन्ती महापर्व के दिन से ही चल पड़ी। उस दिन तीर्थ के कीर्ति स्तम्भ की स्थापना का समारोह हुआ। एक हजार से अधिक प्रज्ञापुत्रों ने उसका शिलान्यास भूमि पूजन किया। शान्ति-कुंज का बोर्ड हटाकर उसके स्थान पर जो ‘गायत्री-तीर्थ’ घोषणा पत्र लगाया जाना है, उस पर इन सभी ने पुष्पांजलि चढ़ाई। यह क्रम गायत्री जयंती के उपरान्त वाले जून मास में सम्पन्न हुए, अन्य सत्रों में भी चला। इस प्रकार प्रायः चार हजार प्रज्ञा परिजनों के हाथ से यह स्थापना उपचार शास्त्रीय विधि-विधान के साथ चलता रहा। इस अवसर पर उपस्थित लोगों को मौखिक रूप से और ‘अखण्ड-ज्योति’ ‘प्रज्ञा-अभियान’ के पाठकों को मुद्रित रूप से इस स्थापना की जानकारी पहुँचा दी गई है।

इमारत में कुछ सामान्य से हेर-फेर इस आधार पर जुलाई, अगस्त, सितम्बर के तीन महीनों में ही सम्पन्न कर लिए जाने हैं जिनसे उसका स्वरूप मात्र शिक्षण विद्यालय भर का न रहकर तीर्थों का दर्शनीय और साधनापरक भी बन सके। इस प्रकार की सुविधाएं विनिर्मित की जा रही हैं जो अब तक नहीं थीं। इस परिवर्तन एवं नवीन संस्थान में कई प्रकार के महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गये हैं। जो कार्य एक वर्ष में निपटना चाहिए था, उसे तीन महीने में निपटाने के लिए जो कुछ सम्भव था वह पूरी तत्परता के साथ करने के लिए समूची कार्य क्षमता एवं मुट्ठी की साधन-सामग्री को झोंक दिया गया है। आश्विन नवरात्रि से निर्धारित कार्य पद्धति विधिवत् चल पड़ेगी। इस बीच आवश्यक निर्माण पूरा हो चुकने की आशा है।

निर्माण में कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं-

(1) आरम्भिक प्रवचन हाल को अब देवात्मा हिमालय का मन्दिर बनाया जा रहा है। इसमें तीस फुट लम्बी छः फुट ऊंची चार फुट मोटी प्रतिमा स्थापित की जा रही है। जिस भाग को हिमालय का हृदय कहते हैं, वही प्राचीनकाल में धरती का स्वर्ग कहा जाता था। उसी में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री नाम से प्रख्यात हिमालय के चारों धाम आते हैं। इसके अतिरिक्त इसी में रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग, उत्तरकाशी जैसे प्रमुख तीर्थ हैं। व्यास और गणेश द्वारा संयुक्त रूप से जहाँ महाभारत लिखा गया था, वह व्यास गुफा, पाण्डवों के सशरीर स्वर्ग प्रयाण वाला स्थल स्वर्गारोहण, देवताओं का स्वर्ण पर्वत सुमेरु, गंगा का मूल उद्गम शिवलिंग, नन्दनवन, गोमुख आदि उस क्षेत्र में आते हैं। जहां साधारण मनुष्यों की पहुंच नहीं हो पाती इसके अतिरिक्त सातों ऋषियों की तपोभूमियां भी उसी क्षेत्र में है। गंगा अकेले नहीं निकली, उसकी सात सहेलियाँ भी साथ ही निकलीं और कुछ-कुछ दूर पर जाकर देर-सबेर गले मिलती चली गईं। भागीरथी, जाह्नवी, मन्दाकिनी, अलकनंदा आदि सातों सहेलियों के दर्शन भी इसी प्रतिमा में हैं। उन सबका दिव्य-दर्शन इस देवात्मा हिमालय में एक ही स्थान पर किया जा सकेगा, यह अद्भुत एवं अनुपम प्रतिमा है। जिस प्रकार विराट् ब्रह्म के दिव्य दर्शन में समस्त ब्रह्माण्ड की, समस्त देवताओं की झांकी हो जाती है, उसी प्रकार इस ‘देवात्मा-हिमालय’ का दर्शन करने वाले तीर्थ यात्री उस समूचे क्षेत्र की प्रतिमा को अपनी पहुँच के एक ही स्थान पर देखकर नेत्रों को धन्य बना सकेंगे। राम-नाम के अक्षर लिखकर उसकी, परिक्रमा करने वाले गणेश ने जिस प्रकार पृथ्वी की परिक्रमा का पुण्यफल प्राप्त कर लिया था, उसी प्रकार इस देव दर्शन को भी कुछ समय उपरान्त सरल उपाय से भाव श्रद्धा उभारने वाला माध्यम माना जाने लगेगा। इसका निर्माण कार्य तत्काल हाथ में ले लिया गया है।

(2) भारत भूमि में अवस्थित समस्त प्रमुख तीर्थों के, उनकी प्रतिमाओं के विशालकाय रंगीन चित्र बनाये जा रहे हैं। उन्हें सुसज्जित रूप से स्थापित करने वह अवसर उपस्थित किया जा रहा है कि आगन्तुकों को इस पुण्य तीर्थ में बने हुये सभी प्रमुख तीर्थों के भाव दर्शन सम्भव हो सकें। उन समस्त तीर्थों का इतिहास, उद्देश्य एवं प्रेरणा प्रकाश भी आगन्तुकों को मिल सकेगा, जिसे भीड़ में धक्के खाते फिरते रहने वाले यात्री कहीं भी उपलब्ध नहीं कर पाते।

(3) शांतिकुंज में स्थापित गायत्री मन्दिर के ठीक सामने एक साधना कक्ष बनाया जा रहा है, जिसमें चौबीस साधक एक साथ बैठकर अखण्ड जप की वह संयुक्त साधना चलाते रह सकेंगे जिससे इस गायत्री तीर्थ का समूचा वातावरण उच्चस्तरीय प्राण प्रेरणा से निरन्तर अनुप्राणित बना रह सके।

(4) गायत्री तीर्थ का समूचा उद्यान अब दिव्य औषधियों, अलभ्य जड़ी बूटियों से लहलहाया करेगा। रुद्राक्ष, श्वेत चन्दन, लाल चन्दन, अक्षय वट जैसे देववृक्ष और सोमवल्ली, संजीवनी, अरुन्धती, सर्पगन्धा, बला, अतिबला, मेधा, महामेधा जैसी अलभ्य जड़ी-बूटियाँ यहाँ प्रयत्नपूर्वक उगाई जा रही हैं। यज्ञोपैथी के अनुसंधान में इन सभी जड़ी-बूटियों का प्रयोग होता रहेगा। साथ ही कष्ट साध्य रोगी भी इस प्रत्यक्ष अमृत का लाभ उठाते रह सकेंगे।

(5) देश भर के प्रज्ञा संस्थानों में लगाने के लिये ऐसी बारह जड़ी-बूटियाँ ढूंढ़ी गई हैं जिनके द्वारा सरलतापूर्वक सामान्य रोगों का उपचार संभव हो सके। इन बारह जड़ी-बूटियों का एक विशेष कक्ष नर्सरी के रूप में विनिर्मित किया जा रहा है। इनकी पौध सभी प्रज्ञापीठों को यहाँ से उपलब्ध होती रहेगी। साथ ही उनके परिपोषण तथा उपचार की विधि-व्यवस्था भी सिखाई जायेगी। अभी यह व्यवस्था मात्र उन प्रज्ञापीठों के लिये सोची गई है जिनके पास अपनी भूमि है। पीछे इसे अन्य लोक सेवी संस्थाओं के लिये भी उपलब्ध किया जायेगा।

(6) प्रज्ञा अभियान की योजनाओं एवं गतिविधियों की झाँकी करने वाली एक चित्र प्रदर्शनी बनाई जा रही है जिससे मिशन के उद्देश्य, स्वरूप, कार्यक्रम एवं फलितार्थ सरलतापूर्वक समझें और अपनाये जा सकें। निरुपयोगी दर्शन, झाँकियों की तुलना में समय की मांग और उसके समाधान दर्शाने वाली यह चित्र कक्षा विचारशीलों को कही अधिक प्रेरणाप्रद एवं उपयोगी प्रतीत होगी।

(7) अपनी पृथ्वी समूचे ब्रह्माण्ड शरीर की एक छोटी इकाई है। जिसकी भली-बुरी स्थिति में अन्तरिक्षीय प्रवाहों का महत्वपूर्ण स्थान है। इन प्रवाहों की उपयोगी शक्तियाँ खींचने और अनुपयोगी रोकने की एक विशेष विद्या है जिसे दिव्यदर्शियों ने ज्योतिर्विज्ञान के नाम से जाना है। भूमि से, जलाशयों से, वायुमण्डल से जिस प्रकार बहुत कुछ पाया जाता है। उसी प्रकार अन्तरिक्ष की भी रहस्यमयी उपलब्धियों से मनुष्य का वैभव वर्चस्व अनेक गुना बढ़ सकता है। इस तथ्य को आप्तजन जानते थे पर अब तो वह सब कुछ एक प्रकार से विस्मृत जैसा होता चला जा रहा है।

गायत्री तीर्थ में ग्रह-नक्षत्रों की पुरातन स्तर की वेधशाला तो कुछ समय पहले ही बन चुकी थी। अब उसमें नवीनतम अन्तरिक्षदर्शी यन्त्र उपकरणों को भी जोड़ा जा रहा है। साथ ही अन्तरिक्ष की रहस्यमयी जानकारियां देने वाली प्रदर्शनी भी बनाई जा रही है, जिसके सहारे इस विज्ञान की उपयोगी जानकारी भी सर्वसाधारण को उपलब्ध हो सके। उसी विभाग के अंतर्गत अगले वर्ष से एक ऐसा पंचांग भी प्रकाशित करने की योजना है जिसमें प्रख्यात नवग्रहों के अतिरिक्त नई शोधों से प्राप्त सौर-मण्डल के तीन नये सदस्य नैप्च्यून, प्लूटो, यूरेनस को भी सम्मिलित करके उनका ग्रह गणित भी जोड़ा गया हो।

(8) नित्य यज्ञ वाली यज्ञशाला में अब अखण्ड अग्नि की स्थापना की गई है। साथ ही ऐसा प्रबन्ध किया गया है कि प्रज्ञा परिवार के परिजनों को अपने संस्कार कराने की व्यवस्था रह सके। बच्चों के नाम करण, अन्नप्राशन, मुण्डन, विद्यारम्भ, यज्ञोपवीत संस्कार यहाँ बिना किसी खर्च के पूर्ण शास्त्रोक्त रीति से होते रहेंगे। अपने विशालकाय परिवार के लड़के-लड़कियों की विवाह-शादी भी बिना दहेज या प्रदर्शन के परम सात्विक वातावरण में होते रहें, इसकी विशेष व्यवस्था बनाई जा रही है। अधेड़ों को वानप्रस्थ दिये जाया करेंगे। पूर्वजों के श्राद्धतर्पण भी यहां होते रहेंगे। इस प्रकार षोडश संस्कारों की सरल शास्त्री य परम्परा व्यवस्था का लाभ यहां सभी प्रज्ञा परिजनो को मिलता रहेगा।

(9) स्वभावतः उपरोक्त स्थापनाओं को देखने के लिये श्रद्धालु और बुद्धिवादी दोनों ही स्तर के लोग यहाँ पहुँचा करेंगे। उनके लिये बाजार से की अधिक सस्ते दाम पर शुद्ध, सात्विक स्तर की भोजन सामग्री उपलब्ध होती रहे, ऐसे भोजनालय का स्वतन्त्र प्रबन्ध किया गया है।

(10) गायत्री परिवार के प्रायःपच्चीस लाख सदस्य हैं और वे तथा उनके परिजन इन दिनों के प्रमुख तीर्थ उत्तराखण्ड को देखने आते रहते हैं। उन सभी के ठहरने के लिये धर्मशाला स्तर की व्यवस्था यहाँ नहीं हो सकेगी। परन्तु वे जब इधर आयेंगे तो निश्चित ही गायत्री तीर्थ के दर्शन करके जायेंगे ही।

उपरोक्त दस व्यवस्थाएं यहाँ ऐसी हैं जो गायत्री तीर्थ का आकर्षण बढ़ाती हैं और वहां पहुँचकर स्वल्प श्रम समय में अधिक प्रेरणा प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करती हैं। अभी देश में एक भी तीर्थ ऐसा नहीं है जहाँ यात्री बिना जेब कटाये, बिना धक्के खाये वापिस लौटता हो। अब कम से कम एक तो ऐसा मिलेगा जहाँ स्नेह, सम्मान, स्वागत, सहयोग का भावभरा वातावरण दिखे। कुछ जानने, सीखने को मिले। यह एक ऐसा प्रयास है जिसका अनुकरण देर-सबेर में अन्य तीर्थों को लोकमानस के दबाव से विवश होकर करना पड़ेगा।

शान्तिकुँज, गायत्री नगर की वर्तमान इमारतों में थोड़ा-बहुत हेर-फेर संवर्धन इस दृष्टि से किया जा रहा है कि वह अब तक के विद्यालय स्वरूप से भिन्न प्रकार का तीर्थ स्तर का दिखने लगे।

ब्रह्मवर्चस अपने ढंग का तीर्थ है। उसमें स्थापित गायत्री माता की चौबीस प्रतिमाएं कितनी भव्य और कितनी प्रेरणाप्रद हैं। इसे वे सभी जानते हैं जिनने उसे देखा है। अब वहाँ की शोभा, सज्जा एवं प्रभाव, प्रेरणा के लिये कुछ नये तथ्यों का समावेश किया जा रहा है।

अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय, यज्ञ चिकित्सा के माध्यम से शारीरिक, मानसिक रोगों के उपचार का अनुसंधान एक ऐसा प्रयोग है जिसके माध्यम से संव्याप्त दुर्बलता, रुग्णता एवं उद्विग्नता, विपन्नता का चिरस्थायी निराकरण सम्भव हो सके। अध्यात्म और विज्ञान के मध्य बनी हुई खाई को पाटने और दोनों के समन्वय से उज्ज्वल भविष्य की संरचना का आधार बनने की जो संभावना ब्रह्मवर्चसम् शोध संस्थान के माध्यम से बन रही है उसे अनुपम अभूतपूर्व ही कहा जा सकता है। इस प्रयोग एवं प्रयास को देखकर अध्यात्मवादी एवं बुद्धिवादी समान रूप से आशान्वित हैं।

कहना न होगा कि ब्रह्मवर्चस्, शान्तिकुँज, गायत्री नगर यह तीनों प्रयोगशालाएं एक ही गायत्री परिवार ट्रस्ट के अंतर्गत चलती हैं। इन सभी को वर्गीकरण की दृष्टि से उन पुराने नामों से भी जाना जाता रहेगा, पर वस्तुतः यह पूरा तन्त्र गायत्री तीर्थ ही बनने जा रहा है। अब तक के तीन नामों को शिर, धड़, हाथ-पैर की तरह तीन हिस्सों में बाँटा तो जाता रहेगा, पर वे सभी एक ही गायत्री तीर्थ शरीर के अवयवों के रूप में देखे जाने जाते रहेंगे। तीनों का संयुक्त प्रयास ही समग्र गायत्री तीर्थ की वर्गीकृत गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ होंगी।प्रयत्न यह भी किया जा रहा है कि दर्शकों को दो स्थानों पर बने हुए इन आश्रमों के मध्य की दूरी रहते हुये उन्हें देखने में किसी विशेष कठिनाई का सामना न करना पड़े। दोनों को देखकर ही समग्र जानकारी का लाभ ले सकेंगे।

ऊपर की पंक्तियों में तीर्थ के दर्शनीय एवं व्यवस्था परक पक्ष की चर्चा हुई है। इन कलेवर समझा जा सकता है। प्राण-प्रेरणा वह है जो यहाँ निवास करके साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा की चतुर्विध तीर्थ सेवन के रूप में उपलब्ध की जानी है। उसकी विस्तृत चर्चा तो अगले अंक में पढ़ी जा सकेगी। पर संक्षेप में इतना जाना जा सकता है कि एक महीने का सत्र तीर्थ सेवन सत्र होगा एवं पांच दिन का सत्र तीर्थ यात्रा सत्र, यह बात स्मरण रखने योग्य है कि जो भी आवें, लिखित स्वीकृति के बिना न आवें। न ही अपना कोई परिजन ऐसा पत्र लेकर बिना पूर्व अनुमति के किसी को भेजें।

तीर्थ सेवन व्रत धारण करके तीर्थवास करने के लिये प्रज्ञा परिजन आते रहेंगे और उन सभी लाभों का रसास्वादन करते रहेंगे जो पूर्वकाल में तीर्थ सेवन करने वालों को हस्तगत होते रहते थे। इस अभिनव स्थापना को भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान का अरुणोदय कहा जाय तो उसमें तनिक भी अत्युक्ति न होगी।


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