आत्म-परिष्कार का राजपथ- स्वप्नलोक

July 1981

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स्थूल दृष्टि से देखा जाये तो मानवी काया पंच-कलेवरों से विनिर्मित ही प्रतीत होती है। जब थोड़ा और गहराई में चिन्तन किया जाता है, तो उसके कण-कण में संव्याप्त चेतना के भी दर्शन होते हैं। पर बात यहीं तक सीमित नहीं है। चेतना विश्व ब्रह्माण्ड के विस्तार जितनी असीम है। अदृश्य जगत के वास्तविक दृश्य चलचित्र को हम चेतना जगत में परिभ्रमण कर स्वप्नों के माध्यम से देख सकते हैं। यही कारण है कि भारतीय मनीषी भौतिक जगत के विकास की अपेक्षा अतीन्द्रिय चेतना के विकास पर अधिक बल देते रहे हैं।

स्वप्नों का अपना स्वतंत्र विज्ञान है। इस तथ्य पर वैज्ञानिकों ने अब ध्यान दिया है एवं परामनोविज्ञान की अनेकानेक शोधों का केन्द्र उन्होंने इसी विषय की बनाया है। परोक्ष रूप से विज्ञान भी अब सूक्ष्म जगत की सत्ता, उसकी अलौकिकता को महत्व देने लगा है। स्वप्न वैज्ञानिकों की अवधारणा है कि कोई भी घटना अपने दृश्य रूप में आने से पूर्व अन्तरिक्ष जगत में विकसित होने लगती है। सूक्ष्म जगत में जो भी होने जा रहा है उसकी पृष्ठभूमि तैयार होने लगती है। मानवी अचेतन यदि थोड़ा भी परिष्कृत हो तो इन हलचलों को एवं परिणाम स्वरूप संभावित घटनाओं का पूर्वाभास कर भविष्यवाणी कर सकता है। यह तथ्य मन की अलौकिकता तथा पवित्र ,सात्विक, उच्चस्तरीय व्यक्तित्व की महता को उद्घाटित करता है। यदि रात्रि को आने वाले इन संदेशों का बुद्धिमतापूर्ण विश्लेषण किया जा सके तो दैनिक जीवन की अनेकानेक समस्याओं को सुलझाने की एक कुंजी हस्तगत हो सकती है। कार्लजुंग ने फ्रायडवादी मान्यताओं का खण्डन कर इसी तथ्य को प्रतिपादित किया है कि स्वप्न दमित वासनाओं के काल्पनिक चित्र नहीं, वरन् जीवन की गहराइयों से भरे सूत्र हैं। ये मन का विनोद नहीं, वरन् भूत और वर्तमान की विवेचना तथा भवितव्य के संकेतों की एक माइक्रो फिल्म हैं।

प्रसिद्ध मनःचिकित्सक एवं स्वप्न अनुसंधानकर्त्री डा. ऐन फैराडे अपनी पुस्तक ‘ड्रीमपॉवर’ में स्वप्नों को थ्री स्टेज प्रोसेस बनाती हैं। उनके अनुसार जागृतावस्था की अपेक्षा स्वप्नावस्था में हमारा मस्तिष्क प्रायः अधिक चतुर, बुद्धिमान एवं निर्णायक बुद्धि से सम्पन्न होता है। नोबेल पुरस्कार विजेता-प्रसिद्ध फिजियोलाजिस्ट डा. ओटोलो का उन्होंने उदाहरण देते हुए लिखा है कि एक रात्रि डा. ओटोलो को स्वप्न आया कि वे प्रयोगशाला में अपनी परिकल्पना के अनुसार प्रयोग कर रहे हैं। अचानक उनकी आँख खुल गयी। उस समय रात्रि के दो बजे थे। तुरन्त उठकर वे प्रयोगशाला गए और स्वप्न के निर्देशानुसार उपकरण लगाकर प्रयोग आरम्भ किया। रात्रिभर कार्यरत रहने के बाद सवेरे जब वे प्रयोगशाला से निकले, प्रसन्नचित्त थे। उनका प्रयोग सफल रहा। इसी सिद्धान्त ‘केमीकल ट्रांसमीशन आफ नर्व इम्पल्स’ पर उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला।

यही अनुभूति रसायनशास्त्री फ्रीडरिक कैकुले की भी है। बेन्जीन अणु की संरचना ज्ञात करने के लिए उनका अध्ययन अपनी चरम सीमा पर था। ऐसे ही व्यस्त दिनों में थके मांदे वे सो रहे थे कि उन्होंने स्वप्न में एक साँप को देखा जो अपनी पूँछ को मुँह में दबाकर गोलाकार हो गया था। बेन्जीन अणु की संरचना तब तक एक सीधी रेखा में ही बनाई जाती थी जो ठीक नहीं बैठती थी। इसी संकेत से डा. कैकुले ने बेंजीन की रिंग स्ट्रक्चर की परिकल्पना की घोषणा की जिसने कार्वनिक रसायन के क्षेत्र में एक क्रान्ति ला दी और आधुनिक रसायन विज्ञान की आधारशिला रखी।

स्वप्न द्वारा व्यक्ति के मन में छिपे भावों का रहस्योद्घाटन भी होता है। मन का अन्तर्द्वन्द्व स्वप्न के माध्यम से प्रकट होकर अपना हल ढूंढ़ता है। जो भी इन संकेतों को समक्ष लेता है, उसे मनोविकारों से छुट्टी मिल जाती है। साथ ही अपने व्यक्तित्व को समुन्नत परिष्कृत बनाने में सहायता मिलती है। डा. फैराडे स्वयं अपना उदाहरण देते हुए लिखती हैं कि “मैंने अपने स्वप्न में दो मकानों का दृश्य देखा। एक पहाड़ी पर आधुनिक मकान जो पूर्णतः शीशे का बना हुआ था तथा दूसरा समुद्र के किनारे बनी सुविधा सम्पन्न कुटिया। मुझे ऐसा संकेत मिला कि इनमें से किसी एक को मैं चुनूं।’’ विश्लेषण करने के बाद वे इस नतीजे पर पहुँचीं कि यह स्वप्न उनके मन की इस द्विधा को ही व्यक्त कर रहा था कि आधुनिक शाही जीवन अपनाना चाहिये या प्राकृतिक समरसता सौंदर्ययुक्त जीवन। आधुनिक वैभवशाली जीवन तो शीशे जैसा जल्दी टूटने वाला भी हो सकता है। समुद्र तट के प्राकृतिक जीवन में समुद्र के ज्वार भाटों का खतरा है। वे इसी निष्कर्ष पर अंततः पहुँचीं कि दैनिक जीवन के व्यवधानों (ज्वार-भाटों) से टकराकर ही जीने वाला प्राकृतिक सादगीपूर्ण जीवन इन्हें अपनाना चाहिए।

स्वप्न आते तो सभी को हैं, पर लम्बे समय तक याद बहुत कम को रह पाते हैं। जिस स्वप्न का अर्थ न लगाया जा सके, डा. फैराडे के अनुसार वह बन्द लिफाफे जैसा है। हमारा अचेतन मन प्रत्येक रात्रि कुछ न कुछ संदेश लेकर आता है। हम प्रयास करें तो अपनी समस्याओं का उनमें हल पा सकते हैं, भावी जीवन की घटनाओं का पूर्वाभास पा सकते हैं एवं अपने जीवन को सुसंस्कृत समग्रतापूर्ण बनाने के सूत्र उनमें ढूंढ़ सकते हैं।

आखिर स्वप्न जीवन में क्यों जरूरी हैं? इस प्रश्न पर जब वैज्ञानिकों ने स्थूल दृष्टि से विचार किया तो वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि स्वप्नमय निद्रा से यदि मानव को निरंतर जगाता रखा जाये तो वह शीघ्र पागल हो जावेगा। डा. क्लीटमैन ने इलेक्ट्रोन सेफेलोग्राफी द्वारा स्वप्न एवं निद्रा पर जो कार्य किया है, वह अब एक प्रामाणिक शोध प्रबन्ध माना जाता है। जब मनुष्य अर्ध-निद्रा से गहन निद्रा एवं फिर स्वप्नमय निद्रा की स्थिति में प्रवेश करता है तो उसकी मस्तिष्कीय विद्युत के परिवर्तन एवं आँख की गतिविधियाँ (रैपीड आई मूवमेण्ट्स) बाहर इसके संकेत दे देती हैं। रिकाडिंग करते वक्त यदि स्वप्नमय निद्रा में जाने के पहले ही व्यक्ति को जगा दिया जाये एवं ऐसा निरंतर किया जाता रहे तो शीघ्र ही वह चिड़चिड़ा, भ्रमित बुद्धि का एवं तनावग्रस्त हो जायेगा। यही स्थिति उसे पागलपन की ओर ले जा सकती है। ये प्रयोग इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि स्वप्नावस्था में ही मस्तिष्क अपना चेतनात्मक पोषण पाता है। अचेतन अवस्था जीवनी शक्ति का स्रोत है।

अक्सर एक ही स्वप्न, किसी को बार-बार दिखाई देता है। सी.जी. जुंग ने इसी आधार पर “यूनिवर्सल पैटर्न आव कलेक्टिव काशंसनेस” सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। उनकी मान्यता है कि स्वप्नों में किसी घटना की प्रतीक रूप में दूसरी घटनाऐं इतनी बारीकी के साथ आती रहती हैं कि सारा स्वप्न एक क्रम से चलते हुए अन्त हो जाता है। स्वप्नों का हर पक्ष हमारी सूक्ष्म से सूक्ष्म भावनाओं को पूरी कुशलता से उद्घाटित करता है।

आत्मोद्देश्य को समझने और निजी प्रेरणा प्राप्त करने के लिए स्वप्नों से अधिक अनुभवी सहायक कोई नहीं हो सकता। हमारी समस्याओं का हल स्वप्नों में से मिल सकता है। इस प्रक्रिया को जुंग इन्द्रियातीत क्रिया की संज्ञा देते हुए कहते हैं कि इसमें स्वप्न दृष्टा स्वयं को भी कल्पना चित्र के रूप में उपस्थित देखता है। अचेतन में से उभर कर कल्पनात्मक निर्देश देने वाली मानवी मन की इस अलौकिक क्षमता ने मानसिक कुण्ठाओं के निवारण तनावजन्य व्याधियों का उपचार के कई नये आयाम वैज्ञानिकों के समक्ष खोलकर रख दिए हैं। निद्रा के समय मस्तिष्क के सिरोटोनिन- मेलेटोनिन नामक एन्जाइम्स का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि तनाव नाशक औषधियाँ ‘रेम’ निद्रा अर्थात् स्वप्नावस्था की अवधि में कमी लाती है, जिसके दूरगामी परिणाम मानसिक क्षमताओं में कमी, मनोविकारों के बाहुल्य एवं व्यक्तित्व के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव के रूप में निकलते हैं। इससे स्वप्नों की आवश्यकता, महत्ता एवं बहुप्रचारित तनावनाशक औषधियों के वे घातक दुष्परिणामों की एक संक्षिप्त झांकी मिलती है।

मानव मन जितना शुद्ध और पवित्र है, उसके स्वप्न उतने ही स्पष्ट, सुखद और भविष्य के गूढ़ रहस्यों की भी स्पष्ट ध्वनि देने वाले होते हैं। जब मनुष्य शारीरिक दबाव, रोग, अपवित्रता की दृष्टि में स्वप्न देखता है तो वे भयानक और दुखान्त होते हैं। इससे यह प्रामाणित होता है कि चिदाकाश अर्थात् मूल चेतना नितान्त शुद्ध और पवित्र है। उसी का एक घटक यह आत्मा भी है, जिसे अध्यात्म मान्यतानुसार उतना ही शुद्ध होना भी चाहिये। इस शुद्धावस्था की एक क्षणिक झलक ही जब जीवन में किसी महत्वपूर्ण भाग का दृश्य दिखा सकती है तो अपना सारा जीवन नितान्त शुद्ध और भौतिक कामनाओं की ओर से हटाकर अपने आगामी जीवन की घटनाओं का पूर्वाभास पाया जा सकता है। शैशवावस्था, में बालकों के मुँह से निकली पूर्वाभास की कई घटनायें उनको निष्कलंक पवित्रात्मा होने के कारण ही सत्य सिद्ध होती देखी गई हैं।

डा. क्लीटमैन के अनुसार अस्त-व्यस्त स्वप्नों के कारण प्रायः भोजन की गड़बड़ी होती है। उत्तेजक पदार्थों का सेवन शरीर की स्थूल प्रकृति को भी उद्वेलित कर देता है। इसीलिए स्वप्न साफ दिखाई नहीं देते क्योंकि चेतना धूमिल हो जाती है। जैसे-जैसे चेतना गहराई में उतरती जाती है, सार्थक स्वप्नों का क्रम चल पड़ता है।

कल्पना में डूबा मन जो भी दृश्य देखता है, उन्हें स्वप्नों की संज्ञा नहीं दी जा सकती। ये कपोल कल्पित झूठे स्वप्न मात्र कौतुक ही होते हैं। जब यही मन सूक्ष्म सत्ता की ओर अभिमुख होता है तो स्वप्नों के झरोखों से उसे अदृश्य, अतीत या आगत के सही सच्चे घटनाक्रम दिखाई देते हैं। मन जितना सूक्ष्मग्राही, परिष्कृत, सात्विक एवं संयमी होगा सपने उतने ही सच्चे होंगे।

जिस प्रकार यह स्थूल जीवन अनेक प्रकार की जटिलताओं से भरा पड़ा है। उसी तरह हमारा सूक्ष्म जीवन- सूक्ष्म शरीर अनेकों रहस्यों से ओत-प्रोत है। स्वप्न जगत ऐसा ही जटिल उलझनों से पूर्ण है- जैसा कि स्थूल जीवन। जीवन की समस्याओं से निपटने हेतु हमें संसार क्षेत्र में विचरण करना होता है। उसी तरह अंतर्जगत की गुत्थियों का हल हमें स्वप्नों की भूल-भुलैयों में प्रवेश कर जानना, समझना सम्भव है। स्वप्नों को त्रिकाल दर्शन की विद्या कह सकते हैं। भूत की स्मृतियाँ, वर्तमान की परिस्थितियाँ एवं भावी संभावनायें सभी स्वप्न विश्लेषण से जानी जा सकती हैं।

स्वप्नं आत्म-चेतना की आँशिक अनुभूति हैं जो यह प्रामाणित करती हैं कि जीवात्मा अपना विकास करके अतीन्द्रिय लोक को पा सकती है। आत्म साक्षात्कार का मार्ग और भी सरल बना सकती है।

विराट् चेतना सर्वदर्शी, सर्वव्यापक, सर्वज्ञ है। उसी का एक अंश होने के नाते जीवात्मा भी यही गुण अपने अन्दर विकसित कर सकती है। डा. क्लीटमैन के अनुसार स्वप्न ही वह राजपथ है, जिस पर चलकर मनुष्य स्वयं को समग्र पूर्ण बना सकता है, मस्तिष्क को चेतना के पोषण द्वारा जीवनी शक्ति प्रदान कर व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकता है।


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