आशा का उद्यान (kavita)

September 1977

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आने ही वाला है, मुस्कानों को लिये विहान॥1॥ बचे खुचे इस अन्धकार से मान न जाना हार।

आशा की किरणों से करते जाना सतत् प्रहार॥ उगने ही वाला है अब तो नवयुग का दिन मान।

मुरझाने मत दो, मन-माली आशा का उद्यान।

अन्धकार की गहन घुटन में धर कुछ क्षण धीर। नव प्रभाव का बहने ही वाला है स्वस्थ समीर॥

स्वयं प्रफुल्लित होंगे कलियों के, फूलों के प्राण। आने ही वाला है मुस्कानों को लिये विहान॥3॥

जीवन क्या? उल्लास, उमंगों का ही तो है नाम। उदासीनता और निराशा का इसमें क्या काम॥

जीने के शिव-संकल्पों को ही मिलता है अनुदान। मुरझाने मत दो, मन-माली आशा का उद्यान।

उगते हैं जीवन बगियों में श्रम, संयम के बीज फूलों का संसार संजोती, बीजों सी ना चीज॥

साहस ही सौरभ बिखराता, आशाएँ मुस्कान। आने ही वाला है मुस्कानों को लिये विहान॥5॥

तुम्हें लोक मंगल के पथ पर बिखराना है फूल। चुभें न गति को, घोर निराशाओं के नीरस-शूल

आशा और उमंग बनायें, जन जीवन गतिमान। मुरझाने मत दो, मन-माली आशा का उद्यान।

जीवन का हर फूल, सँवारे जन मंगल का थाल। जीवन सुमन सुशोभित कर दे मानवता का माल॥

हो समष्टि के लिये समर्पित, सहज व्यष्टि उत्थान। आने ही वाला है, मुस्कानों को लिये विहान॥7॥

-मंगल विजय

*समाप्त*


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