Quotation

September 1977

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बड़प्पन पाने की वितृष्णा में कुछ काम मैं ऐसे कर रहा था जो सम्भवतः सामयिक सफलता तो दे सके होंगे, पर रहा बहुत घाटे में। इन प्रयासों में मेरी आत्मा मुझे क्षुद्रता अपनाने और आत्म गौरव गँवाने का दोषी ठहराती रही। ऐसे अवसर सात प्रकार के थे। जैसे-

-जब मैं दरिद्रता ओढ़े दूसरों की अनुकम्पा पाने के लिए इस आशा से गिड़गिड़ाते हुए पहुँचा कि किसी की कृपा पाकर मैं निहाल हो सकूँगा।

-जब मैंने निर्बलों के सामने अपना बड़प्पन और गर्व इस प्रकार प्रदर्शित किया मानों मेरी शक्ति विकास का एक भाग न होकर दुर्बलों से स्पर्धा करने के लिए ही मिली हो।

-जब कठिनाइयों से भरी कर्मठता और सरलता से मिलने वाली विलासिता में से मैंने कठिनता से मुँह मोड़ा और सस्ते सुख पर टूट पड़ा।

-जब मैंने अपराध तो किया किन्तु पश्चाताप की आवश्यकता न समझ परिमार्जन के बदले मैंने पाप का समर्थन किया और कहा कि ऐसा तो चलता ही रहता है। दूसरे भी तो वैसा करते हैं।

-जब मैंने अपनी दुर्बलताओं से समझौता कर लिया और उन्हें बनाये रहने तथा छिपाये रहने की योजना बनाई।

-जब मैंने कुरूपों से घृणा की किन्तु यह नहीं जाना कि घृणा भी तो कुरूपता ही है।

-जब मैंने दूसरों के मुँह से प्रशंसा उगलवाने की तरकीब सोची, इतना ही नहीं प्रशंसा और अच्छाई को एक मान लेने की नासमझी भी अपनाई।

-खलील जिव्रान


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118