दो सहोदर भ्राता (kahani)

September 1977

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

दो सहोदर भ्राता। पर स्वभाव में जमीन आसमान का अन्तर। बड़ा भाई धार्मिक विचारों के प्रति निष्ठावान् और दूसरा दुर्व्यसनों का दास। दोनों ही एक मुनि के पास पहुँचे। मुनि थे भूत और भविष्य की जानकारी रखने वाले। मुनि को प्रणाम कर पास से बिछे आसन पर बैठ गये।

मुनि ने आशीर्वाद दिया और बताया कि एक माह बाद बड़े भाई को फाँसी की सजा मिलेगी और छोटे भाई को राज सिंहासन। यह तो दोनों ही जानते थे कि मुनि की वाणी कभी भी असत्य को स्पर्श नहीं करती। अतः बड़े भाई ने अपने जीवन के शेष दिन प्रभु चिंतन और शुभ कार्यों में लगाने का निश्चय किया। प्रत्येक क्षण का उपयोग बड़ी कृपणता के साथ करता।

छोटा भाई वेश्या गामी, शराबी और जुआरी था। उसने अपने हिस्से की सारी पूँजी इन दुर्व्यसनों में ही लगा दी थी। पत्नी और बच्चों के पालन पोषण की उसे तनिक भी चिन्ता नहीं थी। कभी वेश्या के कोठे पर दिखाई देता तो कभी मदिरालय में झूमता हुआ दिखता। उसने सोचा एक माह बाद तो राजसिंहासन मिल ही जायेगा। उस समय जनता के सम्मुख अपना आदर्श रखने के लिए यह सारी बुराइयाँ छोड़नी ही पड़ेंगी। अब थोड़ा समय है तो क्यों न ऐश और आराम से जिन्दगी बिताई जाए? महीने का अन्तिम दिन था। बड़ा भाई सुबह मन्दिर में पूजा करने गया हुआ था। जैसे ही मन्दिर की सीढ़ियों से नीचे उतरा कि उसके पैर में अचानक काँटा लग गया। पूजा की थाली उसने अलग रख दी और बैठकर काँटा निकालने लगा। काँटा काफी अन्दर घुस गया था। बड़ी कठिनाई से निकला, खून भी छलका आया। सोचने लगा अभी तो सन्ध्या दूर है। सबेरे ही यह शूल घुस गया।

छोटे भाई ने वह रात वेश्या के यहाँ ही बिताई थी। वह बड़ा प्रसन्न था कि आज तो राजसिंहासन मिलने का योग है। वह कोठे से जल्दी जल्दी उतर रहा था। जैसे ही सड़क पर आया उसे एक मैली कुचैली थैली दिखाई दी। उसमें एक सहस्र स्वर्ण मुद्रायें मिलीं।

शाम हो गई। बड़े भाई को न फाँसी की सजा मिली और न छोटे भाई को राजगद्दी। छोटा भाई झुँझला उठा। सुबह ही अपने बड़े भाई को लेकर वह जहाँ साधु ठहरे हुए थे, पहुँच गया।

मुनि को अभिवादन कर छोटे भाई ने कहा-महाराज सन्तों की वाणी कभी व्यर्थ नहीं जाती। एक माह का समय निकल गया न मुझे राजगद्दी मिली और न अग्रज को फाँसी? इसका क्या रहस्य है?’ मुनि बोले तुम दोनों ने एक माह की अवधि में पाप और पुण्य के फल को घटा दिया है। बड़े भाई ने अपना पूरा समय आत्म चिन्तन और लोक मंगल के कार्य में लगाया जिससे उसकी शूली शूल मात्र रह गई। और छोटे भाई ने दुष्कार्यों के परिणाम स्वरूप राजगद्दी के लाभ को सवर्ण मुद्राओं तक सीमित कर दिया’


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles