चित्त की वृत्तियों को शुद्ध करने से ही आत्मा की प्राप्ति होती है, जिसका अन्तःकरण मल-विकारों से भरा है, उसे आत्मा का साक्षात्कार नहीं हो सकता। सत्कर्म के द्वारा भावना शुद्ध होती है और भावशुद्धि से ईश्वर मिल जाता है। जो अपने दोषों को नहीं देखता, उनके शमन और निराकरण का उपाय नहीं करता, उसकी सारी साधनाएँ आडंबरमात्र हैं। मन को निर्मल बनाए बिना न भक्ति प्राप्त होती है, न उपासना बन पड़ती है। जिस ज्ञान से आचार शुद्ध न हो, सद्गुण न बढ़े, वह निरर्थक भारवहनमात्र है। जिस कर्म के पीछे उच्च भावनाएँ न हों, वह बंधन में बाँधने वाला ही होता है। इसलिए ज्ञान, कर्म और भक्तियोग की साधना करके आत्मा की प्राप्ति करने के इच्छुकों को सबसे पहले अपने आचार और विचार शुद्ध करने चाहिए।
— भगवान कृष्ण