“किसी धर्म से उच्च होने की कसौटी यह नहीं हो सकती कि वह किसी ऐसे मनुष्य का चलाया है, जिसका चरित्र अत्यन्त उच्च था। अधिकाँश उत्तम चरित्र वाले लोग तत्त्वज्ञान के निरूपण में असफल रहे है। जैसे किसी मनुष्य की पाचनशक्ति असाधारण रूप से प्रबल हो, तथापि उसे पाचनक्रिया का कुछ भी ज्ञान न हो।”
“जब तक आप स्वयं अपने हृदयस्थ अन्धकार के दूर करने के लिये उद्यत नहीं होते, तब तक संसार में चाहे तीन सौ तेंतीत कोटि मुक्ति दाता आ जावें, तो भी आपका कोई भला नहीं हो सकता। धर्म का सारतत्त्व है अपने ऊपर से पर्दे को हटाना अर्थात् अपने आपका रहस्य जानना।”