“किसी धर्म को इसलिये स्वीकार मत करो कि वह सबसे प्राचीन है। प्राचीन होना ही सच्चे होने का प्रमाण नहीं होता। अनेक बार पुराने घरों को गिराना पड़ता है और पुराने वस्त्रों का बदलना तो आवश्यक होता है।”
“किसी धर्म को इसलिये स्वीकार न करो कि वह सबसे नया है। नई चीजें समय की कसौटी पर परखी न जाने के कारण सदा श्रेष्ठ नहीं होती।”
“किसी धर्म को इसलिये मत स्वीकार करो कि उस पर विपुल जन−संख्या का विश्वास है, क्योंकि विपुल जन−संख्या का विश्वास तो प्रायः अज्ञान मूलक धर्म पर होता है। एक समय था जबकि विपुल जन−संख्या दास प्रथा को सत्य मानती थी, पर इससे दास−प्रथा का औचित्य सिद्ध नहीं हो सकता।”
“किसी धर्म पर इसलिये श्रद्धा मत करो कि उसे इने-गिने थोड़े से लोगों ने स्वीकार किया है। कभी−कभी अल्प जन−संख्या किसी ऐसे धर्म को अंगीकार कर लेती है जो अन्धकारमय और भ्रांत होता है।”
“किसी धर्म को इसलिये अंगीकार मत करो कि वह किसी सर्वत्यागी महात्मा द्वारा चलाया गया है, क्योंकि हमें कई ऐसे त्यागी मिलते हैं जो सब कुछ त्याग देते हैं पर जानते कुछ भी नहीं। वे कट्टरपंथी होते हैं।”
—स्वामी रामतीर्थ