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January 1962

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“अन्य व्यक्ति को मारने के लिये तलवार ढाल आदि शस्त्रों की आवश्यकता पड़ती है, पर अपने को मारना हो तो एक नहन्नी (नाखून काटने वाली) ही काफी होती है। इसी प्रकार जन−समाज को उपदेश देने के लिये मनुष्य को अनेक शास्त्रों के अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है पर यदि स्वयं धर्म प्राप्त करना हो तो केवल एक ही धर्म−वाक्य के ऊपर विश्वास रखकर वैसा किया जा सकता है”

“संसार में रहकर जो ईश्वर की साधना कर सकते हैं वे ही सच्चे वीर कहे जा सकते हैं।”

“चकमक पत्थर चाहे सौ वर्ष तक जल में पड़ा रहे तो भी उसकी अग्नि नष्ट नहीं होती। उसे जल से निकालकर लोहे पर मारते ही चिनगारी निकलने लगती हैं। इसी प्रकार ईश्वर पर विश्वास रखने वाले व्यक्ति चाहे हजारों अपवित्र—संसारी लोगों के बीच में पड़े रहें तो भी उनकी श्रद्धा और भक्ति में किसी प्रकार की कमी नहीं पड़ सकती।”

—रामकृष्ण परमहंस


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