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January 1960

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3-प्रेम! प्रेम!! प्रेम!!! प्रेम ही एक अति उत्तम भोजन है। यही एक श्रेष्ठ तथा स्वादिष्ट पदार्थ है। इसे उदारता के वस्त्र में बाँध ले। यदि जान बूझकर खा ले तो भी तेरा भला। यदि किसी को खिला दे तो भी तेरा भला। यदि कोई लूटकर या चोरी से तेरी गठरी में से खा ले तो भी तेरा भला ही होगा।

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20- संकुचित विचार वाला मनुष्य कभी विशाल हृदय और स्वतन्त्र विचार रखने वाला नहीं बन सकता। प्रेम के सौदे में भार नहीं, वह बहुत हल्का है, परन्तु उसका विस्तार इतना है कि किसी भी संकुचित हृदय में उसकी समाई नहीं हो सकती।

-प्रभुआश्रित


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