राजस्थान में एक हजार स्वयं सेवकों द्वारा कूच कराने की योजना

January 1960

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्रीराम शर्मा आचार्य)

हिन्दू धर्म का मूलभूत तत्वज्ञान इतना महान है कि उसके प्रत्येक सिद्धान्त एवं विधान में विश्व कल्याण की -मानवता के चरम उत्थान की संभावनाएं ही सन्निहित हैं। देवताओं और ऋषियों ने इस महान धर्म का ढाँचा इतने उच्च कोटि के आदर्शों द्वारा विनिर्मित किया है कि उसके व्यवहार का परिणाम स्वर्गीय वातावरण का निर्माण ही हो सकता है। परन्तु दुःख की बात है कि पिछले अज्ञानान्धकार युग में उसमें जहाँ तहाँ अनैतिक और अहितकर मान्यताओं और रूढ़ियों का भी समावेश होने लगा और आज जो रूप हिन्दू धर्म का हमारे सामने है उससे कई चीजें बहुत खटकने वाली ही नहीं, उन भावनाओं के सर्वथा प्रतिकूल भी हैं जिनको लेकर ऋषियों ने इस महान धर्म की रचना की थी।

ऐसी विकृतियों में पशु बलि को सर्वोपरि कलंकी प्रथा कहा जा सकता है। मूक पशु पक्षियों को देवी देवताओं के नाम पर कत्ल किया जाना उन देवताओं की महिमा को समाप्त करके सारे सभ्य समाज के सामने उन्हें घृणित, निंदित, नीच, क्रूर एवं हत्यारा सिद्ध करता है। जिस देवता को प्रसन्न करने के लिये बलि चढ़ाई जाती है वस्तुतः उन्हें असीम कष्ट और असीम लज्जा इस कुकृत्य से होती है। क्योंकि देवता शब्द ही दिव्य तत्व, दया, करुणा, दान, उदारता, सेवा, सहायता, आदि सत्प्रवृत्तियों का द्योतक है, जिसमें यह गुण न हों- उलटे नन्हें मुन्ने बेबस और बेबस प्राणियों का खून पीने की इच्छा हो उन्हें देवता कौन कहेगा? वे तो असुर एवं पिशाच ही गिने जायेंगे। देवताओं के महान गौरव को नष्ट कर उन्हें दुनिया के सभ्य समाज के सम्मुख इस बुरे रूप में उपस्थित करना वस्तुतः उनके साथ दुश्मनी करना है, उन्हें कलंकित करने का प्रयत्न करने वाले के प्रति वे प्रसन्न होंगे, इसकी आशा कदापि नहीं की जा सकती। परिणामस्वरूप जो लोग पशुबलि करते हैं उनसे उलटे रोग, शोक, अज्ञान आदि क्लेश कलह, दुष्टता, दुर्बुद्धि आदि अनेक दुखों की ही वृद्धि होती है। पशुबलि करने वाले लोगों में से फलते फूलते कोई विरला ही देखा जाता है अन्यथा उन्हें निर्दोष जीवों की हत्या तथा देवता को कलंकित करके उनके क्रोध एवं शाप के फलस्वरूप नाना प्रकार के कष्ट ही मिलते हैं।

पशुबलि प्रथा से देवताओं का भारी अपयश होता है, हत्या का नृशंस पाप लगता है और बलि करने कराने वालों के पाप का निश्चित परिणाम भुगतने के लिये इस लोक में नाना प्रकार के दुःखों एवं परलोक में नारकीय यंत्रणाओं का भागी बनना पड़ता है। यह कुप्रथा निश्चित रूप से हिन्दू धर्म पर एक भारी कलंक है। जिस धर्म का मूल ही दया और अहिंसा हो उसमें इस प्रकार के कुकृत्यों को किसी भी प्रकार धर्मानुकूल नहीं कहा जा सकता।

धर्म के नाम पर अधार्मिक कृत्यों का प्रचलन प्रत्येक धर्म प्रेमी को एक मार्मिक पीड़ा पहुँचाने वाली बात है। कोई खाने की दृष्टि से माँस खावे तो उसकी व्यक्तिगत स्वार्थपरता ही मानी जायेगी इससे सारा समाज या सारा धर्म कलंकित नहीं होता पर पशुबलि सरीखे कृत्यों से तो हमारे अहिंसा, सत्य, प्रेम और दया मूलक धर्म की मूल मान्यताओं पर ही कुठाराघात होता है इसे देखकर सच्चे धर्म प्रेमी यदि चिन्तित खिन्न, और विहल हो तो यह सर्वथा उचित ही है।

इस विपन्न स्थिति को आखिर कब तक चलने दिया जाय? यह विचारणीय प्रश्न है। पिछले कुछ दिनों से हिन्दू धर्म की महानता को कलंकित करने वाली यह बातें अपनी जड़े जमायें बैठी हैं क्या आगे भी इनको ऐसे रूप में बैठें रहने दिया जाय? इस नवयुग की जागरण बेला में जबकि आत्म निरीक्षण, आत्म संशोधन और भविष्य निर्माण के लिए प्रयत्न चल रहा है तो यह भी उचित एवं आवश्यक है कि पशु बलि जैसी कलंकी कुप्रथाओं का उन्मूलन किया जाय।

गायत्री परिवार हिन्दू धर्म के शुद्ध स्वरूप को परिष्कृत एवं विकसित करने के लिये अपने जन्म काल से कटिबद्ध रहा है। अब तक विचार निर्माण एवं संगठनात्मक कार्यक्रमों को ही अपनाया गया था। अब समय आ गया है कि हिन्दू संस्कृति को कलंकित करने वाली विकृतियों के विरुद्ध कुछ संघर्षात्मक कदम भी उठायें जायें। अत्यंत सस्ता धार्मिक साहित्य लाखों करोड़ों लोगों तक पहुँचा कर धर्म के विशुद्ध स्वरूप से जन साधारण को अवगत कराने का प्रयत्न किया जाता रहा है। साप्ताहिक सत्संगों, गोष्ठियों, पर्व और संस्कारों के धर्मोत्सवों, शिक्षण शिविरों, यज्ञानुष्ठानों सम्मेलन और समाजों के माध्यम से वाणी द्वारा देश व्यापी लोक शिक्षण का भारी कार्य हुआ है पर इतने मात्र से ही कार्य न चलेगा अब नैतिक दुष्प्रवृत्तियों एवं सामाजिक कुरीतियों को रोकने के लिए प्रबल लोकमत जागृत करने एवं प्रतिरोधी मोर्चा खड़ा करने की आवश्यकता को भी पूरा करना पड़ेगा।

व्यक्तिगत जीवन में माँसाहार, नशेबाजी, व्यभिचार, चोरी, बेईमानी, असंयम, आलस्य, गंदगी, ईर्ष्या, द्वेष, उद्दंडता, स्वार्थपरता आदि कितनी ही दुष्प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं। हमारे सामाजिक जीवन में पशुबलि, दहेज, मृतकभोज, बालविवाह, फिजूल खर्ची, फैशनपरस्ती, अन्धविश्वास, नीच-ऊंच आदि अनेकों कुरीतियाँ पनप रही हैं। इन सभी के विरुद्ध किसी न किसी रूप में ऐसा प्रतिरोधी मोर्चा खड़ा करना होगा कि इन सत्यानाशी सड़कों पर दौड़ने वाले जनसमाज को रोका जा सके।

यद्यपि ऐसा प्रतिरोधी मोर्चा एवं वातावरण बनाना बहुत कठिन है जो बिना कोई तीव्र कटुता या झगड़ा फसाद खड़ा किये अपने उद्देश्य में सफल हो सकें, फिर भी इसके लिए प्रयत्न तो करना ही होगा। युग की चुनौती हमें हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने नहीं देगी। अपने महान धर्म की, अपनी महान जाति की शान को विश्व के सम्मुख उज्ज्वल करने के लिए हमें कुछ प्रयत्न करना ही होगा, गायत्री परिवार ने युग निर्माण का जो उत्तरदायित्व अपने कन्धे पर लिया है, उसे पूरा करने के लिए उसे कदम आगे बढ़ाने ही होंगे। अब उसका श्रीगणेश होना ही है, वह किया भी जा रहा है।

व्यापक असुरता के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए आरम्भ में एक मोर्चा चुनना ही युद्ध विद्या के अनुसार उचित माना जाता है। महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ करते हुए सर्व प्रथम नमक सत्याग्रह आरम्भ किया था। यों देखने में वह छोटा और कम महत्वपूर्ण था फिर भी आरम्भ की दृष्टि से वही उपयुक्त था अन्ततः उसकी प्रतिक्रिया व्यापक हुई और वह लड़ाई अनेक मोर्चों पर फैल गई। हमारे अनैतिकता विरोधी अभियान को भी यह गतिविधि अपनानी होगी। आरम्भ में व्यक्तिगत सुधार में माँसाहार, खान पान को आरम्भिक बात मानकर नशा विशेष और झूठन न छोड़ने का अभियान आरम्भ किया गया। हर्ष की बात है कि गत एक वर्ष में लगभग 80-82 हजार मनुष्य इन बुराइयों को छोड़ने की प्रतिज्ञा धर्म वेदियों पर ईश्वर को साक्षी देकर संकल्प पूर्वक कर चुके हैं और इन्हें दृढ़ता पूर्वक निबाह भी रहे हैं। सामाजिक जीवन दहेज और मृत्यु भोज सम्बन्धी प्रतिज्ञा आन्दोलन तेजी से चल रहा है। करीब 10 हजार अभिभावकों ने यह प्रतिज्ञाएं ली हैं कि वे अपने बच्चों के विवाह में न दहेज देंगे न लेंगे। इसी प्रकार लगभग 17 हजार कुमारियों ने यह धर्म प्रतिज्ञाएं की हैं यदि उनके अभिभावक दहेज के बिना उनका विवाह कर सकने में सफल न हुए तो वे आजीवन अविवाहित रहने को तैयार हैं। मृतक न भोजन करने और न खाने के लिए लगभग 1॥ लाख व्यक्ति अब तक प्रतिज्ञाएं ले चुके हैं। अन्य वैयक्तिक परिवार का प्रतिज्ञा आन्दोलन तेजी से चल रहा है। आगे यह और भी तीव्र होगा। इसके लिये अत्यन्त सस्ते 20 ट्रैक्ट लाखों की संख्या से प्रचारित किये गये है। प्रवचनों और प्रचार के लिए भारी प्रयत्न हो रहा है।

अब कुछ संघर्षात्मक कदम उठाने का भी श्री गणेश किया जा रहा है। इसके लिए ‘पशुबलि’ को प्रथम मोर्चा चुना गया है। यह बुराई न्यूनाधिक मात्रा में सभी प्रदेशों में मौजूद है। पर पहाड़ी प्रान्त, बंगाल एवं राजस्थान इस बुराई में अग्रणी हैं। अकेले राजस्थान को ही लीजिए वहाँ अब तक की जानकारी के अनुसार 183 स्थान ऐसे हैं जहाँ कम से कम एक सौ से लेकर कई हजार तक पशुबलि चढ़ जाते हैं। वह हत्याएं बेचारी काली माता को कलंकित करने के लिए की जाती है। गायत्री परिवार सत्य सनातन धर्म को मानने वाला होने के कारण अन्य देवताओं की भाँति काली माता के प्रति भी श्रद्धा रखने वाला है। वह अपनी आराध्य माता को इस कलंक से बचाने के लिए बड़े कष्ट उठाने और बड़े से बड़ा त्याग करने को भी प्रस्तुत हो गया है।

निश्चय यह किया गया है कि पशुबलि विरोधी मोर्चा मथुरा के समीपवर्ती प्रान्त पहले राजस्थान प्रान्त से आरम्भ किया जाय। धीरे-धीरे उसे अन्य प्रान्तों में भी विस्तृत किया जायेगा। आगामी जून से एक हजार धर्मप्रेमी स्वयंसेवक राजस्थान में पशुबलि विरोधी आन्दोलन करने रवाना होंगे।

(1) प्रचार द्वारा जन साधारण को इस कुप्रथा की हानियाँ समझाना (2) शास्त्रों की संख्या में प्रचार पत्र पुस्तिकाएं ट्रैक्ट वितरण करना, पोस्टर चिपकाना, दीवारों पर वाक्य लिखना, प्रवचन, मौलिक लालटैनों में स्लाइड चित्र दिखाना, संगीत भजन, जुलूस, सभा आदि उपायों का इसके लिये अवलंबन करना, गाँव गाँव पंचायतें, पशुबलि न करने के सामूहिक फैसले कराना (3) जिन मन्दिरों में बलि होती है उनके पुजारियों, संचालकों एवं प्रबन्धकों को इसे बन्द करने का निर्णय कराना और (4) जहाँ आवश्यकता हो वहाँ पशुबलि के स्थान पर अपनी गर्दनें अड़ा देना भी इस प्रचार जत्थे का काम होगा। इस चतुर्मुखी कार्यक्रमों को लेकर यह एक हजार धर्म सेवकों की सेना जून 60 के प्रथम सप्ताह में रवाना होगी। इस सेना के सेनापति श्री शंभू सिंह जी कौशिक नियुक्त किये गये हैं। आत्मदानी रामूसिंह जी की लगन, निष्ठा, सच्चाई, वीरता एवं धर्म के लिए शरीर को हथेली पर लिये फिरने की सीख से सारा गायत्री परिवार परिचित है। उनके नेतृत्व में जाने वाला यह जत्था पहाड़ जैसी कठिन दीखने वाली मंजिल को भी सरल बना सकता है। इस पर हर कोई सहज ही विश्वास कर सकता है। करना या मरना जिसका जीवन व्रत रहा हो वह क्या नहीं कर सकता?

कई कमजोर तबियत के व्यक्ति सोचते हैं कि कही कोई उपद्रव या अशान्ति इस आन्दोलन के कारण खड़े न हो जायें ऐसे लोगों को हम पूर्ण आश्वस्त कर देना चाहते हैं कि हमारे प्रत्येक आन्दोलन में पूर्ण अहिंसा, शिष्टता, मधुरता, सहनशीलता का समावेश रहेगा। स्वयं कष्ट उठाने के अतिरिक्त किसी विरोधी को कोई हानि न पहुँचने दी जायेगी। कानून और व्यवस्था की प्रत्येक मर्यादा का पूरा ध्यान रखा जायेगा और जहाँ की उपद्रव रोकने में सारी शक्ति लगा दी जायगी। देश का हर उत्तरदायी व्यक्ति जानता है कि चीन आक्रमण तथा देश के सम्मुख उपस्थित अनेक आन्तरिक समस्याओं को देखते हुए यह नितान्त आवश्यक है कि कोई फूट न पड़े। गायत्री परिवार के संचालक भी अपनी जिम्मेदारी को एक देश भक्त नागरिक की तरह भली प्रकार समझते हैं और हर शंका शंकित मन को आश्वस्त करना चाहते हैं कि हम अपने लक्ष तक भले ही देर से पहुँचें पर कोई अशान्ति या उपद्रव की स्थिति कहीं भी न आने देंगे।

पशुबलि विरोधी आन्दोलन के लिए एक हजार धर्म सैनिकों की आवश्यकता है। प्रत्येक सैनिक को कम से कम तीन महीने का समय लेकर आना चाहिए। पीछे उनके वापिस जाने पर दूसरे स्वयं सेवक उनका स्थान ग्रहण करते रहेंगे इस प्रकार यह कार्य चलता रहेगा। जिन्हें इस आन्दोलन में भाग लेने की तीव्र इच्छा है पर समय का बहुत अभाव है वे कम से कम एक महीने के लिए भी आ सकते हैं। भोजन का प्रबन्ध संस्था करेगी पर अन्य किसी आर्थिक सहायता की आशा स्वयं सैनिकों को कर लेनी चाहिए। शरीर को स्वस्थ, शिक्षित, सद्गुणी, मिष्ठाभाषी, कष्ट सहिष्णु होना आवश्यक है। जो इस धर्म सेवा में शामिल होना चाहें वे अभी से अपना नाम भेज कर स्वीकृति प्राप्त कर लें। गायत्री परिवार की तीन हजार शाखाओं में कई लाख सदस्य हैं। इनमें से एक हजार स्वयं सेवकों की संख्या पूरी हो जाना कुछ अधिक कठिन नहीं है। समय से पूर्व ही यह संख्या पूरी हो जायेगी।

गायत्री परिवार की यह नैतिक एवं साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना का सुव्यवस्थिति कार्यक्रम बहुत दिनों से ठोस एवं रचनात्मक ढंग से सुव्यवस्थित क्रम से चल रहा है पर संघर्षात्मक कार्यक्रम में यह पशुबलि विरोधी आन्दोलन हमारा प्रथम प्रयास है। यह कदम पशुबलि तक ही सीमित नहीं है वरन् आगे दहेज, मृतक भोज आदि अनेकों सामाजिक कुरीतियों एवं वैयक्तिक अनैतिकताओं के विरुद्ध भी उठाया जायगा। इस आन्दोलन को सफल बनाने में हार्दिक आशीर्वाद, सद्भाव, सहयोग एवं मार्ग दर्शन की प्रत्येक धर्म प्रेमी से करबद्ध प्रार्थना है। आन्दोलन के पीछे सच्ची धर्म भावना के अतिरिक्त जन साधारण का, विशेषतया विज्ञ विचारशील सज्जनों का आशीर्वाद एवं मार्ग दर्शन ही वह तत्व है जिसके आधार पर किसी उल्लेखनीय सफलता की आशा की जा सकती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles