जो मनीषी हैं, वे स्तुति से न तो प्रसन्न होते और न निंदा से अप्रसन्न ही होते हैं। जो लोग उनके निंदक अथवा प्रशंसक होते हैं, वे ऐसों के आचार व्यवहारों को छिपाकर रखते हैं। वे पूछने पर भी अहितकर विषय के सम्बन्ध में हितकारी पुरुष से कुछ नहीं कहते और जो उनके ऊपर आघात करते हैं, उनसे वे बदला लेने की भी इच्छा नहीं रखते।
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ऐसे लोग अप्राप्त वस्तुओं के लिये दुःख न करके समय पर प्राप्त हुई वस्तु ही से काम चला लिया करते हैं बीती हुई बातों के लिये न तो वे दुःखी होते और न उनका स्मरण करते हैं।
-महात्मा भीष्म पितामह