ओ बाधाओं! यह मत समझो मैं दुर्बल इन्सान
मेरे इस जर्जर तन में भी है चेतन भगवान
मैंने हार न अब तक मानी
मेरा साहस है अभिमानी
भीषण से भीषण चोटों को सहता शैल समान ॥1॥
ओ बाधाओं! यह मत समझो मैं दुर्बल इन्सान।
माना मेरे पथ में तम है
पाँवों में कुछ बल भी कम है
पर मेरा यह प्राण पथिक भी है अद्भुत बलवान् ॥2॥
ओ बाधाओं! यह मत समझो मैं दुर्बल इन्सान
तुम चाहे कितनी भी आओ
आ आकर के पंथ डिगाओ
चलने वाला कभी न रुकता जीवन पंथ महान ॥3॥
ओ बाधाओं! यह मत समझो मैं दुर्बल इन्सान
- त्रिलोकीनाथ व्रजबाल, पिलाना