जीवन लक्ष्य महान (kavita)

January 1960

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ओ बाधाओं! यह मत समझो मैं दुर्बल इन्सान

मेरे इस जर्जर तन में भी है चेतन भगवान

मैंने हार न अब तक मानी

मेरा साहस है अभिमानी

भीषण से भीषण चोटों को सहता शैल समान ॥1॥

ओ बाधाओं! यह मत समझो मैं दुर्बल इन्सान।

माना मेरे पथ में तम है

पाँवों में कुछ बल भी कम है

पर मेरा यह प्राण पथिक भी है अद्भुत बलवान् ॥2॥

ओ बाधाओं! यह मत समझो मैं दुर्बल इन्सान

तुम चाहे कितनी भी आओ

आ आकर के पंथ डिगाओ

चलने वाला कभी न रुकता जीवन पंथ महान ॥3॥

ओ बाधाओं! यह मत समझो मैं दुर्बल इन्सान

- त्रिलोकीनाथ व्रजबाल, पिलाना


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