ईश्वर का भक्त अपने ईश्वर के लिये सब सुखों तथा सब वस्तुओं का परित्याग कर देता है। जैसे कि चींटी चीनी के ढेर में मर जाती है, परन्तु पीछे नहीं लौटती है।
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जो प्रलोभनों के बीच में रह कर मन को वश में करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करता है, वही सच्चा शूरमा है।
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जिस तरह एक भिखारी एक हाथ से सितार एक हाथ से ढोलक साथ ही मुँह से गाता जाता है, उसी तरह संसारी जीवों तुम भी साँसारिक कर्म करो, परन्तु ईश्वर के नाम को न भूल कर उसका भी ध्यान करते रहो।
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कुतुबनुमा की सुई हमेशा उत्तर की ओर रहती है, इसी से समुद्र में जहाजों को अड़चन नहीं पहुँचती। इसी तरह जिसका ध्यान ईश्वर की तरफ है, वह संसार रूपी समुद्र में नहीं मटक सकता है।
-स्वामी रामकृष्ण परमहंस