(स्वामी श्री विवेकानंद जी)
जबकि वेदाँत की यह घोषणा है कि सभी प्राणियों में वही एक आत्मा विराजमान है, फिर स्त्रियों और पुरुषों के बीच इतना भेद क्यों रखा गया है, समझना कठिन है। स्मृतियाँ आदि को लिखकर कड़े नियमों का बंधन उन पर रखकर पुरुषों ने स्त्रियों को केवल संतानोत्पादक यंत्र बना रखा है। अवनति के युग में जबकि पुरोहित लोगों ने अन्य जातियों को वेदाध्ययन के लिए अयोग्य ठहराया, उसी समय उन्होंने स्त्रियों को अपने अधिकारों से वंचित कर दिया। वैदिक और औपनिषदिक युग में मैत्रेयी, गार्गी आदि पुण्य स्मृति महिलाओं ने ऋषियों का स्थान ले लिया था। सहस्रों वेदज्ञ ब्राह्मणों की सभा में गार्गी, याज्ञवलक्य को ब्रह्म विषय में शास्त्रार्थ के लिए ललकारती है।
सभी उन्नत राष्ट्रों ने स्त्रियों को समुचित सम्मान देकर ही महानता प्राप्त की है। जो देश और राष्ट्र स्त्रियों का आदर नहीं करते, वे कभी बड़े (उन्नत) नहीं हो पाये हैं और न भविष्य में ही कभी उन्नत होंगे।
यथार्थ शक्ति पूजक तो वही है जो जानता है कि ईश्वर विश्व में सर्वव्यापी शक्ति है और उसी शक्ति को वह स्त्रियों में प्रगट देखता है। अमेरिका में पुरुष अपनी महिलाओं को इसी दृष्टि से देखते हैं, और उनके साथ अत्युत्तम बर्ताव करते हैं, इसी कारण वे लोग सुसम्पन्न हैं, विद्वान हैं, इतने स्वतंत्र हैं और शक्तिशाली हैं। हमारा देश अवनत दशा को पहुँच गया है इसका मुख्य कारण शक्ति की इन सजीव प्रतिमाओं के लिए आदर बुद्धि न होना ही है। मनु महाराज का कहना है-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्त फलाः क्रियाः॥
अर्थ- जहाँ स्त्रियों का आदर होता है, वहीं देवता प्रसन्न रहते हैं और जहाँ उनका आदर नहीं होता वहाँ सभी कार्य और प्रयत्न निष्फल हो जाते हैं।
जहाँ ये स्त्रियाँ उदासी का जीवन व्यतीत करती हैं उस कुटुम्ब या देश की उन्नति की आशा नहीं हो सकती।
स्त्रियों की बहुतेरी कठिन समस्याएं हैं, पर उनमें एक भी ऐसी नहीं है जो उस जादू भरे शब्द “शिक्षा” के द्वारा हल न हो सके।
हमारे मनु महाराज की आज्ञा है? “पुत्रियों का पालन और उनकी शिक्षा पुत्रों के समान ध्यान और सावधानी के साथ होनी चाहिये।” जैसे पुत्रों का विवाह तीस वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात होना चाहिए। उसी प्रकार पुत्रियों को भी बीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। पर हम लोग यथार्थ में कर क्या रहे हैं? उन लोगों को सदैव निःसहाय अवस्था में रहने और दूसरों पर गुलाम के समान अवलम्बित रहने की शिक्षा दी जाती है। इसी कारण किंचित भी दुःख या भय का अवसर आने पर वे आँखों से आँसू बहाने के सिवाय और किसी योग्य नहीं रहतीं। स्त्रियों को ऐसी (परिस्थिति) अवस्था में रखना चाहिए कि वे अपनी समस्याओं को अपने ही तरीके से हल कर सकें। हमारी भारतीय स्त्रियाँ इसके लिए संसार की अन्य स्त्रियों के समान ही योग्य हैं।
स्त्रियों की शिक्षा का प्रसार-धर्म को केन्द्र बनाकर रखना चाहिए। अन्य सभी शिक्षाएं धर्म की अपेक्षणीय हैं। धार्मिक शिक्षा, चरित्र गठन, ब्रह्मचर्य पालन इनकी ओर ध्यान देना चाहिए। हमारी हिंदू स्त्रियाँ सतीत्व का अर्थ आसानी से समझती हैं क्योंकि यह उनका अनुवाँशिक गुण है। सर्वप्रथम तो उनमें यह आदर्श अन्य गुणों की अपेक्षा सुदृढ़ किया जाए जिससे कि उनका चारित्र्य सबल बने और उसी की शक्ति वे अपने जीवन की प्रत्येक अवस्था में चाहे विवाहित या अविवाहित (यदि वे अविवाहित रहना चाहें तो) बिल्कुल निडर होकर पवित्रता से रंच भर भी डिगने की अपेक्षा अपने प्राणों का समर्पण करने के लिए तैयार रहें।
इस युग की वर्तमान आवश्यकताओं का अध्ययन करने पर यह आवश्यक दीखता है कि उनमें से कुछ को वैराग्य के आदर्श की शिक्षा दी जाय, जिससे कि वे युगान्तर से अपने रक्त में संजात ब्रह्मचर्य रूप सद्गुण की शक्ति द्वारा प्रज्वलित होकर आजीवन कुमारीव्रत का पालन करें। हमारी जन्म भूमि को अपनी समुन्नति के लिए अपनी कुछ संतानों को विशुद्धात्मा ब्रह्मचर्य और ब्रह्मचारिणी बनाने की आवश्यकता है। यदि स्त्रियों में से एक भी ब्रह्मज्ञानी हो जाय तो उसके व्यक्तित्व के प्रकाश से सहस्रों स्त्रियाँ स्फूर्ति प्राप्त करेंगी और सत्य के प्रति जाग्रत हो जायेंगी। इससे देश और समाज का बड़ा उपकार होगा।
सुशिक्षित और सच्चरित्र बनी ब्रह्मचारिणी शिक्षा कार्य का भार अपने ऊपर लें। ग्रामों और शहरों में केन्द्र खोलकर स्त्री शिक्षा के प्रसार का प्रयत्न करें। ऐसे सच्चरित्र निष्ठावान उपदेशकों के द्वारा देश में स्त्री शिक्षा का यथार्थ प्रचार होगा। इतिहास और पुराण गृह व्यवस्था और कला कौशल, गृहस्थ जीवन के कर्त्तव्य और चरित्र गठन के सिद्धाँतों की शिक्षा देनी चाहिये और दूसरे-दूसरे विषय सीना-पिरोना, गृह कार्य-नियम, शिशुपालन आदि भी सिखाये जायं। जप, पूजा और ध्यान शिक्षा के आवश्यक अंग हों और दूसरे गुणों के साथ-साथ उन्हें शूरता और वीरता भाव भी प्राप्त करने चाहिए। आधुनिक युग में उनको आत्मरक्षा के उपाय भी सीख लेने की आवश्यकता है। झाँसी की रानी कैसी अपूर्व स्त्री थीं! इस प्रकार हम भारत वर्ष के कार्य के लिए संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीराबाई के आदर्शों को चरितार्थ करने वाली तथा अपनी पवित्रता, निर्भयता और ईश्वर के पाद स्पर्श द्वारा प्राप्त शक्ति के कारण वीर माता बनने योग्य महान निर्भय स्त्रियों को सामने लायेंगे। हमें यह भी करना होगा कि वे समय पर गृह की आदर्श माता बनें। जिन सद्गुणों के कारण हमारी ये मातायें प्रसिद्ध हैं। उनकी संतान इन सद्गुणों की और भी उन्नति करेंगी। शिक्षित और धार्मिक माताओं के ही घर में महापुरुष जन्म लिया करते हैं।
यदि महिलायें उन्नति प्राप्त कर लें तो उन की संतान अपने उदार कार्यों के द्वारा देश का नाम उज्ज्वल करेंगे, तब तो संस्कृति, ज्ञान, शक्ति और भक्ति देश में जागृत हो ही जायगी।