ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान अपूर्ण न रहने पावे।

March 1957

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ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की प्रगति संतोषजनक रीति से चल रही है। सन् 57 भर प्रतिदिन 24 लख जप, 24 हजार मंत्रलेखन, 24 हजार गायत्री चालीसा पाठ, 24 हजार आहुतियाँ प्रतिदिन किये जाने का संकल्प है। यह कार्य 24 हजार व्यक्तियों द्वारा किया जाना है यह संकल्प वस्तुतः बहुत भारी है। यदि कोई व्यक्ति या संस्था वेतन भोगी लोगों द्वारा अपने कंधे पर व्यय व्यवस्था लेकर कार्य करे तो इसमें वस्तुओं का तथा श्रम का जोड़ लगभग एक लाख रुपया मासिक बैठ सकता है। पर गायत्री परिवार के प्रत्येक संकल्प की पूर्ति आत्मदान, श्रमदान, भावदान आदि की सच्ची सम्पदा द्वारा होती है, इसलिए वे कार्य बिना किसी प्रकार की अर्थ व्यवस्था किये ही उच्च आत्मिक सद्भावनाओं के आधार पर चल पड़ते हैं और अनेक अड़चनों बाधाओं को पार करते हुए सफल हो जाते हैं। ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान भी इसी प्रकार सफल होना है।

गत तीन मास के प्रयत्न से निर्धारित संकल्प के लगभग आधे भाग की पूर्ति होने लगी है। अभी इतना ही कार्य प्रतिदिन और होने लगे तब संकल्प पूर्ण हो। इसके लिए अभी इतना ही प्रयत्न और करना है जितना गत तीन महीनों में किया गया है। परिवार के सक्रिय सहयोगी, कर्मठ आत्माएं, श्रद्धावान चैतन्य सदस्य, व्रतधारी कर्मनिष्ठ कार्यकर्त्ताओं के परिश्रम और सहयोग के ऊपर ही यह सब निर्भर है। क्योंकि साधारण जनता की एक तो वैसे ही इन कार्यों में रुचि नहीं होती, फिर यदि कोई प्रेरणा करे भी तो कुछ ही दिनों में लोगों का उत्साह ठंडा पड़ जाता है। जिन लोगों ने कुछ उपासना करने की बात स्वीकार कर ली-फार्म भर दिया है- उन्हें बार-बार पूछते रहने, कोंचते रहने, रिपोर्ट देने के बहाने बार-बार मिलते रहने, प्रेरणा देते रहने से ही यह आशा की जा सकती है कि वे किसी प्रकार गिरते पड़ते संकल्प को निभा सकेंगे। नये उपासक पैदा करना भी इस युग में काफी कठिन है। बीमा-कम्पनी का एजेंट जिस परिश्रम और प्रयत्न से किसी व्यक्ति को बीमा कराने के लिए तैयार करता है- अनेकों बार घर पर चक्कर लगाता है। बार-बार उपेक्षा और तिरस्कार सहता है- तब कहीं किसी को बीमा कराने को तैयार करके अपना कमीशन सीधा करता है। ठीक उतना ही कठिन कार्य किसी को धर्म-कर्म में लगाने का है। इस युग में धर्म भावना, श्रद्धा, आस्तिकता का एक प्रकार लोप हो चला है। स्वयं आत्म स्फुरण तो किसी बिरले के ही मन में होती है अन्यथा टूटी मोटर को धकेलने की तरह धर्म-धारणा को भी कोई सत्पुरुष प्रेरणा दे देकर आगे बढ़ाते रहते हैं। आज धर्म पंगु है। वह किसी के सहारे से ही खड़ा हो पाता है। सहारा देने वाले न मिले तो वह बैठ जाता है।

ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के बारे में भी यही बात है। यद्यपि वह इस युग की एक महान आवश्यक साधना है- उसके साथ समस्त विश्व का ही नहीं- साधक का साँसारिक और आध्यात्मिक लाभ भी जुड़ा हुआ है। फिर भी उतनी दूर तक देखना कोई नहीं चाहता। सब को पास की चीज दिखाई देती है, तुरन्त लाभ देखते हैं। ऐसी स्थिति में साधारण जनता की उपेक्षा पर कुछ भी खेद करना उचित नहीं। यह समय का प्रभाव है। जिम्मेदारी जागृत आत्माओं की है। कर्मवीर पुरुषार्थी लोग-युग पलटते हैं, सोते हुए विश्व को जगाते हैं, अपना रक्तदान देकर सूखते हुए धर्म तरु को सींचते हैं। इस ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के मेरुदण्ड वे व्रतधारी सत्पुरुष ही हैं, जो अपना काम हर्ज करते हुए दर पर धर्म-फेरी लगाते हैं और बदले में उपहास, उपेक्षा, तिरस्कार सहते हुए भी निराश नहीं होते- जो दस बार प्रयत्न करने पर नौ जगह असफलता और एक जगह सफलता मिलने को ही बहुत बड़ी विजय मान लेते हैं।

इस अंक में अन्यत्र धर्म की पंगुता संबंधी लेख छपा है। धर्म की टूटी मोटर को आगे धकेलने के लिए घुटनों-घुटनों कीचड़ में घुस कर अपनी दुर्गति कराने वाले मनस्वी पुरुषों की भाँति जिस में साहस एवं उत्साह है उन्हीं के सहयोग से यह कार्य पूरा होने वाला है। अभी आधा कार्य और होना बाकी है। उपासक बढ़ाने का कार्य करने वाले-धर्म स्तंभ व्रत धारी- अपने उत्साह में तनिक भी कमी न आने दें। अपना प्रयत्न अब से भी अधिक उत्साह के साथ जारी रखें।

ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान और गायत्री परिवार-संगठन एक ही कार्य है। संगठन से ही इस अनुष्ठान की पूर्ति संभव है। जहाँ संगठन बन चुके हैं वहाँ साप्ताहिक सत्संगों के क्रम पर पूरा जोर दिया जाय। क्योंकि परस्पर मिलते रहने से ही कुछ प्रगति होती है। धर्म फेरी के लिए समय देने वाले कार्यकर्त्ता तैयार किये जायं। जिस संगठन के पास समय देने वाले जितने कार्यकर्ता हैं वह उतना ही सजीव है हर गायत्री परिवार अपने में इस सजीवता एवं जीवनी शक्ति के लिए प्रयत्नशील रहे। ऐसे लोग ढूँढ़ें या उत्पन्न करें जो केवल अपना जप करके ही चुप न बैठे रहें वरन् पंगु धर्म को कंधे का सहारा देने के लिए कुछ समय और श्रम भी धर्म प्रसार के लिए देने को तैयार हों।

‘धर्म फेरी’ गायत्री परिवारों की अनेकों शाखाओं द्वारा बड़े उत्साह से हो रही है। पर कई ने अभी कार्य आरम्भ नहीं किया है जहाँ प्रगति हो रही है वहाँ और भी अधिक उत्साह से कार्य करने की प्रार्थना है और जहाँ अभी फेरी नहीं हो रही है वहाँ अब शीघ्र ही इस पुनीत प्रक्रिया के चालू किये जाने की आशा है। सर्वत्र अधिकाधिक गायत्री उपासक बनाने और गायत्री परिवारों के संगठन बढ़ाने नई शाखाएं स्थापित करने, चलती हुई शाखाओं को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है; तभी यह इतना बड़ा संकल्प पूर्ण हो सकेगा। अन्यथा अपूर्ण, अधूरा और असफल हो जाने पर हम लोगों के लिए एक अशोभनीय लज्जा की बात हो जायगी। गायत्री परिवार के हर सच्चे कर्मनिष्ठ सदस्य को इस तथ्य का ध्यान रखना है।

चैत्र की नवरात्रि

नवरात्रि गायत्री उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ समय है। वर्ष में दो बार- आश्विन और चैत्र में शीत और ग्रीष्म की मिलन वेला में- ऋतु संध्याएं नवरात्रियाँ आती हैं। इनमें उपासना करने से वर्ष के अन्य समयों की अपेक्षा अनेक गुना अधिक सत्परिणाम निकलता है। गायत्री परिवार के सदस्य सदा ही नवरात्रियों में अपनी स्थिति के अनुसार साधना अनुष्ठान आदि करते हैं। यह वर्ष अधिक महत्वपूर्ण होने के कारण नवरात्रियों में और भी अधिक सामूहिक उपासना की जानी चाहिए।

चैत्र सुदी 1 चन्द्रवार ता.9 को वह पूर्ण होगी। उसी दिन राम नवमी भी है। इन नौ दिनों में (1) ब्रह्मचर्य (2) अस्वाद व्रत (3) उपवास (4) भूमिशयन (5) दूसरों से अपने शरीर की कम से कम सेवा लेना (6) चर्म निर्मित वस्तुओं का त्याग (7) कुछ समय मौन आदि की जो विशेष तपस्याएँ बन पड़े तो अपनी स्थिति एवं सुविधा के अनुसार करनी चाहिए। 9 दिन में 24 हजार अनुष्ठान करने में प्रतिदिन 26 मालायें करनी पड़ती हैं जिनमें प्रायः 211 घण्टा लगता हैं। प्रातःकाल एक ही समय या सुबह शाम दोनों समय मिलाकर यह जप संख्या पूरी की जा सकती है। शताँश हवन 240 आहुतियों का एक दिन या 26 आहुति नित्य करके पूरा कर लेना चाहिए। जिन्हें असुविधा हो उनके लिए यह हवन तपोभूमि में भी कराया जा सकता है। हवन करने वालों का परिश्रम छोड़ दिया जाय तो हवन सामग्री, घी, समिधा आदि में बहुत खर्च नहीं पड़ता ब्राह्मण भोजन का भी अनुष्ठान में विधान है। पर यह प्रश्न बहुत ही विचारणीय है जिन ब्राह्मणों को खिलाने से वस्तुतः पुण्य होता है वैसे ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्म परायण, अपरिग्रही, लोक सेवी, ब्राह्मण कहीं ढूँढ़े नहीं मिलते। अन्य वर्णों की तरह सामान्य व्यवसाय-प्रधान जीवन व्यतीत करने वाले लोगों को भोजन कराने से लकीर ही भले ही पीट ली जाय वस्तुतः पुण्य कुछ नहीं होता। ऐसी दशा में ब्राह्मण भोजन के स्थान पर “ब्रह्मभोज” ज्ञान दान किया जाय तो उत्तम है। गायत्री संबंधी सस्ती पुस्तकें एवं गायत्री चालीसा, माता के चित्र आदि प्रसाद स्वरूप अनेक व्यक्तियों को देकर सच्चे अर्थों में ‘ब्रह्मभोज’ हो सकता है। अन्न दान से ज्ञान दान का पुण्य वैसे भी सौ गुना अधिक माना गया है।

नवरात्री में जप तो कई लोग कर लेते हैं, हवन को कुछ लोग भूलते हैं, ब्रह्मभोज में कुछ खर्च देख कर तो और भी अधिक लोग चुप हो जाते हैं। अनुष्ठान का यह आवश्यक अंग सर्वथा त्यागा न जाना चाहिए।

इस बार सूक्ष्म आकाश में उद्वेग की मात्रा अत्यधिक होने के कारण पिछले वर्षों की भाँति शाँतिपूर्वक स्थिर चित्त से अनुष्ठान बहुत कम लोगों के हो सकेंगे। चित्त में चंचलता, वासना की तीव्रता आदि के कारण उपजी सफलता जपात्मक अनुष्ठानों में न मिलेगी। जो करते आ रहे हैं वे तो करें ही, मन न लगने पर भी एक उत्तम परम्परा को छोड़ें नहीं पर जिन्हें नया ही अनुष्ठान करना हो या असुविधा हो वे गायत्री चालीसा का अनुष्ठान करें। यह अत्यधिक सरल है। इसमें ब्रह्मचर्य उपवास आदि का कोई प्रतिबंध नहीं है। स्नान करके साधारण रीति से एक बार में या दो बार में-दिन में या रात में- किसी भी समय एक सवा घंटा लगाकर 27 पाठ कर लेने चाहिए। इस प्रकार 9 दिन में 240 पाठ पूरे हो जाते हैं। हवन एवं ब्रह्मभोज के स्थान पर 240 गायत्री चालीसा वितरण कर देने चाहिए। यों 1) प्रति के हिसाब से इतने चालीसा 15)के होते हैं, पर अनुष्ठान प्राप्त करने वाले एवं धर्मार्थ वितरण करने वालों को वे डाक खर्च समेत 6) में दिये जा रहे हैं छोटे बालक या आर्थिक अभाव ग्रस्त व्यक्ति इतना खर्च न कर सकें तो मिल कर 240 चालीसा मँगा ले 16) से कम की वी.पी. नहीं भेजी जाती। शाखायें रेल द्वारा अधिक संख्या में गायत्री चालीसा मँगा लें तो थोड़े-थोड़े वितरण करने वालों को वहाँ से लेने में सुविधा रहेगी।

गायत्री परिवार की शाखाएं प्रयत्न करें कि अलग-अलग उपासना करने की अपेक्षा सदस्यगण एक स्थान पर, एक समय, उपासना, हवन आदि के सामूहिक आयोजन में सम्मिलित हों गायत्री चालीसा का पाठ बाजे आदि पर हो। इसके लिये एक सुसज्जित पंडाल बना लिया जाय, बैठने की, माला पाठ के लिये चालीसा, पंचपात्र, धूपबत्ती, पुष्प, अक्षत चन्दन आदि की व्यवस्था रहे। गायत्री माता के मंत्र लेखन के लिये कापी, दवात, कलम आदि उपलब्ध रहें धार्मिक चित्रों एवं शिक्षाप्रद वाक्यों से नवरात्रि का उपासना स्थान सजाया जाय, जौ बो दिये जायं, कलश एवं माता की प्रतिमा स्थापित रहे। कीर्तन प्रवचन, हवन आदि की व्यवस्था रहे इस प्रकार एक सुन्दर एवं प्रभावशाली कार्यक्रम बन सकता है। गायत्री चालीसा का कीर्तन बाजे पर मधुर स्वर से करने में बड़ा सुँदर मालूम पड़ता है। एक सी वेषभूषा में पीले वस्त्र पहन कर पीले दुपट्टे डाले हुए साधक एक लाइन में बैठे हुए बहुत ही शोभायमान लगते हैं। ऐसे दृश्य देखकर नये व्यक्तियों के मन में भी साधना की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। इसलिए जहाँ बन पड़े वहाँ सामूहिक आयोजनों का पूरा प्रयत्न किया जाय। रामायण पाठ, गीता पाठ आदि के कोई कार्यक्रम साथ-साथ चलते हों तो वह भी उत्तम है। रामायण पाठ वाली संस्थाओं का जहाँ सहयोग प्राप्त होता हो वहाँ गायत्री तथा रामायण का मिला−जुला कार्यक्रम भी बनाया जा सकता है। अपनी स्थानीय स्थिति के अनुसार शाखाओं को अपने यहाँ इस प्रकार के आयोजन के लिए अभी से तैयारी करनी चाहिए। जहाँ संभव हो वहाँ अन्त में शोभा यात्रा-वेदमाता की सवारी के जुलूस भी निकाले जायं। सच्चे ब्राह्मण गुण कर्म, स्वभाव के ब्राह्मण न मिलने पर कुमारी कन्याओं को भोजन कराने की व्यवस्था की जा सकती है।

24 हजार जप, 240 गायत्री चालीसा पाठ की तरह 2400 मंत्र लिखने का भी अनुष्ठान होता है। प्रतिदिन 267 मंत्र लिखने से भी एक लेखन अनुष्ठान पूरा हो जाता है। इसमें प्रायः 3 घण्टे लगते हैं। तीनों प्रकार के अनुष्ठानों में से जो भी करना हो या दो या तीनों एक साथ करने हों वे अपनी साधना की सूचना आदि मथुरा दे देंगे तो उनकी साधना में रही हुई त्रुटियों का दोष परिमार्जन तथा संरक्षण यहाँ होता रहेगा

अ.भा. गायत्री परिवार सम्मेलन

गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्त्ताओं को वर्ष में एक बार गायत्री जयन्ती के अवसर पर गायत्री तपोभूमि मथुरा में बुलाते रहने का निश्चय किया गया है। अब तक नवरात्रियों में गायत्री उपासक मथुरा आया करते थे और अनुष्ठान, हवन, तीर्थयात्रा, प्रवचन आदि का लाभ उठाते थे। अब नवरात्रियाँ सर्वत्र अपने-अपने यहाँ मनाई जायं यह नीति निर्धारित कर दी गई हैं। वर्ष में एक बार जेष्ठ सुदी 10 गायत्री जयन्ती से लेकर पूर्णिमा तक 6 दिन का सम्मेलन करते रहने का निश्चय किया गया है। इस वर्ष इन तिथियों में 7,8,9,10,11,12 जून पड़ेगी।

गत वर्ष चैत्र की पूर्णाहुति के अवसर पर गायत्री परिवार के 6 हजार सदस्य आये थे। उतनी व्यवस्था हर बार बन पड़ना संभव नहीं। इसलिए 250 से लेकर 500 तक की सीमा में ही आने की स्वीकृति दी जा सकेगी। परिवार के कर्मठ व्रतधारी कार्य-कर्त्ताओं को ही इस बार आमंत्रित किया जा रहा है शाखाओं के संचालक एवं प्रमुख कार्यकर्ताओं को ही इसमें आना चाहिए। तीर्थ यात्रा के उद्देश्य से आने वाली भीड़-भाड़ से यहाँ भी असुविधा होती है और उन यात्रियों को भी अड़चन पड़ती है, इसी प्रकार छोटे बच्चों वाली महिलाएं उस जेष्ठ की तपती गर्मी में परेशान होती है। अतएव तीर्थ यात्रियों, छोटे बच्चे वाली महिलाओं को स्वीकृतियाँ नहीं दी जायगी।

सम्मेलन के उद्देश्य यह हैं (1) गायत्री परिवार के कार्यकर्ता एक दूसरे को जान सकें आपस में घनिष्ठ संबंध स्थापित कर सकें। (2) अपनी उपासना संबंधी प्रगति, गतिविधि, शंका, कठिनाई एवं आगामी कदम के सम्बन्ध में आवश्यक परामर्श प्राप्त कर सकें (3) ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की गतिविधि एवं परिस्थिति विचार विनिमय (4) गायत्री परिवार की शाखा संस्थाओं की प्रगति तथा भावी योजनाओं का निर्धारण (5) साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना के लिए आगामी वर्ष की रूप रेखा (6) परिजनों के व्यवहारिक जीवन में उपस्थित समस्याओं पर आवश्यक मार्गदर्शन (7) विश्व की, मानव जाति की, वर्तमान स्थिति को समझना आदि।

उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए छहों दिन परिवार के लोग परस्पर गम्भीर विचार विनिमय करके प्रकाश प्राप्त करेंगे। वर्तमान काल के अनेक सभा सम्मेलनों के नाना विधि मनोरंजन करने जैसा “चों चों का मुरब्बा” इस सम्मेलन को नहीं बनाया जायगा। वरन् एक सुव्यवस्थित पार्लमेन्ट की भाँति-देश के कोने-कोने से आये हुए प्रतिनिधिगण विश्व के आध्यात्मिक, मानसिक, बौद्धिक क्षेत्र को विकृतियों से बचाने और श्रेयस्कर दिशा में लगाने का गम्भीर विचार मंथन करेंगे। गायत्री परिवार बातुनी जमा खर्च करने वालों की भीड़ नहीं-राष्ट्र का, युग का निर्माण करने वाली एक संगठित एवं महत्वपूर्ण शक्ति है। उसे अपने कर्तव्य और उत्तरदायित्व का गम्भीरतापूर्वक पालन करना है। इसलिए इस सम्मेलन में सीमित संख्या में ही लोगों को बुलाया जा रहा है।

यह लेख ही निमंत्रण पत्र है। जिन्हें उस अवसर पर आना संभव हो वे अपनी आने की सूचना अभी से देने की कृपा करके स्वीकृति प्राप्त कर लें। स्वीकृति पत्र प्राप्त सज्जनों के लिए ही ठहरने भोजन आदि की व्यवस्था हो सकेगी। सूचना पत्र में आने वालों का (1) पूरा नाम (2) पूरा पता (3) आयु (4)जाति (5) शिक्षा (6) व्यवसाय (7)स्वास्थ्य का विवरण लिखना आवश्यक है यह प्राप्त होने पर स्वीकृति पत्र के साथ-2 आवश्यक नियम, प्रतिबंध, ज्ञातव्य, कार्यक्रम आदि की विवरण पत्रिकाएं भी दी जाएंगी।

ऐसा सोचा जा रहा है कि स्थान-स्थान पर क्षेत्रीय सम्मेलन हर वर्ष होते रहे, उनमें मथुरा से भी सब लोग पहुँचे। इस प्रकार जो लोग इतनी दूर खर्च कर के नहीं आ सकते। वे अपने समीप ही एकत्रित हो कर सम्मेलन के उद्देश्यों का सरलतापूर्वक लाभ उठा सकेंगे।

साँस्कृतिक शिक्षण शिविर

साँस्कृतिक विद्यालय की नियमावली अखण्ड-ज्योति में छापी जा चुकी है। उसका पूरा पाठ्यक्रम एक वर्ष का है। विद्यार्थी श्रेणी के लोग तो उतने समय रह सकते हैं और लगभग 20 की संख्या में अभी भी तपोभूमि में रह कर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, पर इतना समय दे सकना कार्य व्यस्त लोगों के लिए संभव नहीं। इसलिए अब ऐसा सोचा गया है कि तीन-तीन महीने की एक अतिरिक्त शिक्षा योजना भी चला करे, जिसमें निर्धारित विषयों को जितना अधिक संभव हो सके सिखा दिया जाय और शिक्षार्थियों को इस योग्य बना दिया जाय कि वे सभी निर्धारित विषयों की काम चलाऊ जानकारी प्राप्त करके धर्म प्रचार के कार्य में सफलतापूर्वक प्रवृत्त हो सकें।

जेष्ठ महीना सभी वर्गों के लिए छुट्टी का रहता है। किसान, व्यापारी, विद्यार्थी, अध्यापक, कचहरियों के कर्मचारी आदि प्रायः इस एक महीने छुट्टी में रहते है। उन्हें संस्कृति विद्यालय के निर्धारित कार्यक्रम में से जितना अधिक से अधिक सीख सकें उतना सीखने तथा व्यक्तिगत जीवन में विकसित होने की महत्वपूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देने होने की व्यवस्था की गई है। जो लोग आना चाहें अपना पूरा परिचय लिखते हुए आने की स्वीकृति प्राप्त कर लें। इस मास के शिविर में केवल 50 व्यक्तियों को आने की स्वीकृति दी जाएगी।

संस्कृति विद्यालय का निर्धारित पाठ्यक्रम निम्न विषयों का है। शिक्षार्थी इन में से जिन विषयों को अधिक महत्व देंगे उन्हीं शिक्षाओं की उनके लिए विशेष व्यवस्था रहेगी। विषय-

1. स्वाध्याय- मानव जीवन की अनेक समस्याओं को सुलझाने वाले उच्चकोटि के मनीषियों के लिखे हुए ग्रन्थों का अध्ययन।

2. सत्संग- प्रवचन, परामर्श, विचार विनिमय द्वारा जीवन को सुव्यवस्थित बनाने वाला मार्ग दर्शन।

3. संगीत- कीर्तन, भजन तथा रामायण गा सकने योग्य हारमोनियम, तम्बूरा आदि बजाने का साधारण संगीत ज्ञान।

4. प्रवचन- रामायण, गीता, एवं ऐतिहासिक उपाख्यानों द्वारा नैतिकता एवं सदाचार संबंधी धर्म प्रवचन तथा भाषण कला की विशिष्ट बातें।

5. गायत्री विज्ञान- गायत्री उपासना तथा उसके 24 अक्षरों में सन्निहित शिक्षाओं की जानकारी।

6. यज्ञ विधान-छोटे और बड़े रूप में अनेकों प्रकार के यज्ञ कराने का व्यवहारिक ज्ञान।

7. वैदिक मंत्र विद्या- विविध प्रयोजनों के लिए काम आने वाले शक्ति सम्पन्न वेदमंत्रों का साधनात्मक उपयोग।

8. संस्कार पद्धति- यज्ञोपवीत, विवाह आदि सब संस्कारों को करने तथा अवसरों पर देने योग्य महत्वपूर्ण शिक्षाओं का ज्ञान।

9. आरोग्य शिक्षा- सूर्य नमस्कार, प्राणायाम आदि योगिक व्यायामों की पद्धतियाँ स्वस्थ रहने की सावधानी तथा विधि व्यवस्था, सभी रोगों की सरल चिकित्सा तथा परिचर्या।

10. यज्ञोपवीत निर्माण- स्वयं शुद्ध यज्ञोपवीत बनाकर पहनने तथा इस गृह उद्योग द्वारा कुछ आजीविका कमा लेने का भी मार्ग खोलना।


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