विचार-बीथी

October 1954

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-आपत्तियाँ बहुधा आशीर्वाद होती हैं। जीती हुई कठिनाइयाँ न केवल हमें शिक्षा ही देती हैं, बल्कि वे प्रयत्नों में हमें साहसी बताती हैं।

-”क्या तुम्हें अपने जीवन से प्रेम हैं? तब समय को व्यर्थ नष्ट मत करो, क्योंकि जीवन उसी से बना है।”

-”जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार, जीवन की सबसे बड़ी दौलत समय है।”

-”संसार का संचालन करने के लिए हम बंधे हुए नहीं हैं, लेकिन ईश्वर ने हमारे लिए जो काम बताया है, उसे अपनी सारी शक्ति लगाकर पूरा करने के लिए हम बंधे हुए हैं।

-काम का चुनाव करते समय अपने हृदय से कभी मत पूछो कि कौन सा अव्यवसाय करके हम प्रसिद्धि या धन प्राप्त कर सकेंगे। उसी काम को चुनो जिसमें तुम अपनी मनुष्यता की सारी शक्ति लगा सकते हो और अपने को ऊंचा बना सकते हो। तुम्हारे लिए न तो धन की आवश्यकता है, न प्रसिद्धि की और न कीर्ति की-तुम्हें केवल महानता की जरूरत है।

-”यदि जीवन में बुद्धिमानी की कोई बात है तो वह एकाग्रता है, और यदि कोई खराब बात है तो वह है अपनी शक्तियों को बखेर देना। बहुचित्रता कैसी भी हो, इससे क्या? वह चीज अच्छी हैं जो सारे खिलवाड़ और क्रम की चीजों को दूर कर देती हैं और हमें हृदय से अपने काम करने के लिये भेजती हैं?”

-”जो व्यक्ति जीवन में केवल एक बात ढूँढ़ता है, वह आशा करता है कि जीवन समाप्त होने के पहले उसे वह प्राप्त हो जायगी।”

-” शिष्टाचार के द्वारा कोई भी मनुष्य संसार में अपनी उन्नति कर सकता है।”

-”तुम्हें क्या चाहिए? तुम्हें जो कुछ चाहिए उसे आनी मुस्कराहट से प्राप्त करो, न कि तलवार के जोर से? जीवन का तीन चौथाई अच्छा चाल चलन है।”

-”मनुष्य की सच्चाई का एकमात्र निर्णयात्मक प्रमाण यह है कि अपने सिद्धान्त के लिए वह अपना सब कुछ स्वाहा कर देने को तैयार रहे।”

-जब कभी आपको ऐसा मालूम हो कि चिन्ताजनक विचार आप पर अपना प्रभाव जमाना चाहते हैं, उदासी का आप पर आक्रमण होना चाहता है, तब आप स्थिर, शान्त ओर तन्मय होकर अपने हृदय केन्द्र से इस तरह के उद्गार निकालें मैं मनुष्य हूँ! मेरी आत्मा दिव्य है, निर्दोष है। अनन्त शक्तियाँ गुप्त रूप से उसमें विद्यमान है। वह सुख, शान्ति, आनन्द और पूर्णता का आगार है। भला ऐसी दशा में वहाँ दुःख, चिंता, रोग, शोक का क्या काम।”

-”यदि हम चाहते हैं कि हमारे मन मन्दिर से अंधकार निकल जाय तो हमें चाहिए कि अपने मन को प्रकाश से आलोकित कर लें। यदि हम चाहते हैं कि हमारे मन से विरोध भाव निकल जाये तो हमें चाहिये कि अपने मन को ऐक्य के विचारों से भर लें। यदि हम चाहते हैं कि हमारे मन से क्रूरता निकल जाय तो हमें चाहिये कि अपने मन को सौंदर्य के विचारों से पूर्ण कर लें।”

-”सारे विश्व में एक ही तत्व काम कर रहा है। एक ही जीवन, एक ही सत्य वर्तमान है। हम सब उस दैवी प्रभाव की ओर जा रहे हैं जो ईश्वर तक जाता है। इस तरह की मनोभावना रखने से हमें एक अलौकिक प्रोत्साहन प्राप्त हो जाता है, हमारे मन का भय नष्ट हो जाता है।”

-”यदि आप बड़े पदार्थों की आशा करते हैं और अपने मनोभावों को विशाल बनाये हुए हैं तो आपको बड़ी ही ऊँचे दर्जे की सफलता प्राप्त होगी।


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