साँस्कृतिक योजना में आपको भी भाग लेना है।

October 1954

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अपने सुझाव और सहयोग की सूचना देना न भूलिए।

पिछले अंक में साँस्कृतिक पुनरुत्थान की योजना उपस्थित की जा चुकी है। अखण्ड-ज्योति और गायत्री परिवार के सदस्यों को इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करना है। समय की पुकार, कर्त्तव्य की चुनौती और ईश्वरीय प्रेरणा के आधार पर बनी हुई इस कार्यप्रणाली से मुख मोड़ना जागृत आत्माओं के लिए किसी भी प्रकार उचित न होगा। राष्ट्र निर्माण का, धर्म प्रसार का, प्राचीन भारतीय गौरव की प्रतिष्ठापना का, पुनीत कार्य ऐसा है जिसे व्यक्तिगत कठिनाइयों की उपेक्षा करके भी हमें पूरा करना चाहिये।

प्रस्तुत योजना ऐसी हैं जिसमें हर परिस्थिति के हर योग्यता के व्यक्ति अपने-अपने ढंग से भाग ले सकते हैं। जहाँ इच्छा और अभिरुचि होती है, वहाँ कोई न कोई मार्ग अवश्य निकल आता है। व्यस्त से व्यस्त, कठिनाइयों और उलझनों में फँसे हुए, रोगी अयोग्य व्यक्ति भी उस महान कार्यक्रम में किसी न किसी रूप में अवश्य भाग ले सकते हैं। हम चाहते हैं कि अपने परिवार का एक भी व्यक्ति ऐसा न रहे जो किसी न किसी रूप में इस महान कार्यक्रम में भागीदार बनने से वंचित रह जाय।

सितम्बर के अंक में प्रस्तुत योजना के सम्बन्ध में अखण्ड-ज्योति तथा गायत्री परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपने विचारों की अभिव्यक्ति हमें लिखनी चाहिये। हम अपने प्रत्येक परिजन से यह आशा करेंगे कि अक्टूबर मास में एक विस्तृत पत्र हमें भेजें जिसमें (1) प्रस्तुत योजना को सफल बनाने संबंधी अपने सुझाव तथा (2) उनमें अपने भाग लेने संबंधी सम्भावनाएं तथा दैनिक, साप्ताहिक तथा मासिक रूप से कुछ समय इनके कार्यों के लिए निकाल सकने की सम्भावना का उल्लेख करना चाहिए। यह पत्र आने पर आपसी परामर्श से कुछ न कुछ ऐसा कार्यक्रम अवश्य बन सकेगा जो वर्तमान स्थिति में भी आपके लिये सम्भव हो सके।

जो लोग पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके हैं और धर्म प्रसार के योग्य जिनमें भावना हैं उन्हें नरमेध के लिए प्रस्तुत होना चाहिए। जो ऊँची आध्यात्मिक भावना वाले हैं पर गृहस्थ की जिम्मेदारियों से छूटने की स्थिति में नहीं हैं, वे आत्म दान करके, परमार्थ बुद्धि से गृहस्थ को पालते हुए तथा लोक सेवा में भाग लेते हुए जीवन मुक्त की स्थिति तक पहुँच सकते हैं। साधारण काम काजी लोग अपने व्यस्त जीवन में भी थोड़ा बहुत बहुत साँस्कृतिक कार्यक्रम रखकर अपनी सेवा भावना को चरितार्थ कर सकते हैं। जिनके पास कुछ विशेष काम नहीं हैं, पर गृहस्थ की जिम्मेदारी हैं वे यदि प्रभु पूर्ण ढंग से बात चीत करने की योग्यता रखते और गायत्री ज्ञान प्रसार के लिए देश करना चाहते हों तो उसके परिवार के लिए भी कुछ व्यवस्था सोची जा सकती है। कुछ ऐसी शिथित महिलाओं की भी आवश्यकता है जो अखण्ड-ज्योति प्रेस की व्यवस्था तथा साहित्य निर्माण, सम्पादन आदि महत्वपूर्ण कार्यों में लग कर धर्म सेवा करती हुई, अपने जीवन को धन्य बना सके। इसी प्रकार हर व्यक्ति चाहे वह बीमार, वृद्ध, स्त्री, घर से बाहर जा सकने में भले ही असमर्थ हो-धर्म स्थापना के महान कार्य में किसी न किसी रूप में अवश्य भाग ले सकता है। किसके लिए क्या कार्य उपयुक्त रहेगा-यह व्यक्तिगत रूप से या पत्र व्यवहार द्वारा निश्चित किया जा सकता है।

अपने प्रत्येक आत्मीय परिजन, स्नेही, साथी तथा अनुयायी को हम इस महान अभियान में साथ चलने के लिए आमन्त्रित करते हैं। यह आमन्त्रण एक विशेष प्रेरणा के आधार पर दिया जा रहा है इसलिए दीखता है कि हमारे स्वजनों द्वारा उसकी उपेक्षा न की जा सकेगी।

विनीत-

श्री राम आचार्य।

वर्ष-14 संपादक-श्री राम शर्मा, आचार्य अंक-10


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