श्रमदान किया कीजिये।

October 1954

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(प्रो. मोहनलाल वर्मा बी. ए., एल. एल. बी.)

मनुष्य का अधिकाँश जीवन परिश्रम का जीवन है। जैसे बिना भोजन तथा वायु के जीवन असम्भव है, बिना श्रम के जीवन नीरस और शिथिल है। प्रत्येक मानव विशेषण से विभूषित होने वाले व्यक्ति में “परिश्रम” वह दिव्य गुण है जिसके द्वारा वह संसार में विकसित होता है, अपने शरीर, मस्तिष्क तथा आत्मा के गुणों की वृद्धि करता है। परिश्रम हर प्रकार, हर स्थिति तथा वर्ग के व्यक्ति के लिए एक आवश्यक तत्व है।

जब संसार के सब जीव श्रम द्वारा शक्ति का अर्जन कर रहे हैं, तो आप कैसे निष्क्रिय रह सकते हैं? बिना श्रम के कोई भला क्योंकर अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा, सम्मान तथा उत्तरदायित्व की रक्षा कर सका हैं?

परिश्रम सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। इसके द्वारा हमारा सम्बन्ध अन्य व्यक्तियों तथा वस्तुओं से होता है। यदि हम जीवन चरित्रों का अध्ययन करें, तो हमें विदित होगा कि सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति प्रायः कठिन श्रम करने के अभ्यस्त रहे हैं, अपने आविष्कारों में सतत् लगनशील और उत्तरदायित्वों में वीर और दृढ़ रहे हैं। संसार में आप जिन कार्यों से चमत्कृत होते हैं, वे मानव हाथों या मस्तिष्क के श्रम के अद्भुत चमत्कार हैं। उनमें श्रम का सौंदर्य और स्थायित्व है। श्रम प्रगति का चिन्ह है।

बफून कहा करते थे, “प्रतिभाशाली व्यक्तियों की प्रतिभा का मूल मंत्र उनके धैर्य में है। वे किसी विरोध से भी हिम्मत पस्त न होते थे, न थकते ही थे। वे प्रत्येक मिनट का उचित उपयोग करते थे। अपेलीज प्रत्येक दिन कुछ न कुछ अवश्य लिखते थे। न्यूटन निरन्तर धैर्य और सतर्कता से प्रकृति का निरीक्षण किया करते थे। वाट कहा करते थे, “हमें यह जानना चाहिये कि किस बात से काम चलेगा, किससे नहीं।” वास्तव में जो व्यक्ति धैर्य के साथ निरीक्षण करने की बुद्धि विकसित कर लेता है, वह अच्छा श्रम कर पाता है। वह सत्यता और सही रूप में प्रत्येक तथ्य को देखता है। एक बार न्यूटन ने कहा था कि उन्होंने जिस गुण के विकास में सबसे अधिक ध्यान दिया था, वह यह था कि वे किसी समस्या को अपने मानव चक्षुओं के सम्मुख बहुत देर तक रख सकते थे और जीवन के अनुभवों से उनकी सत्यता मालूम करते रहते थे, यहाँ तक कि उन्हें समस्या का हल प्राप्त हो जाता था।

आपके कार्य में अनेक विघ्न बाधाएं प्रतिरोध एवं प्रतिकूलताएं पड़ेंगी, लेकिन ये कठिनाइयाँ वास्तव में हमारी सहायक शक्तियाँ हैं, जो पग-पग पर हमारी शक्तियों की परीक्षा करती हैं और हमें दृढ़वर बनाती हैं। वे हमें अनुभव देती हैं और अध्यवसायी बनाती हैं।

हरकूलीज नायक यूनानी वीर का सिर शेर की खाल से ढ़का होता था और शेर के पंजे उसके गले के नीचे चुभते रहते थे, जिसका तात्पर्य यह था कि जब कठिनाइयों पर विजय प्राप्त हो जाती है, तो वे हमारी सहायक शक्तियाँ बन जाती हैं।

घटनाएं परिस्थितियों से सम्बन्धित रहती हैं। उनका फल हमारे चरित्र पर निर्भर रहता है। आप किसी घटना के प्रति वैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं, यही कसौटी है। एक प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिये असफलता सफलता का सोपान हो सकता है, जबकि एक कमजोर व्यक्ति के लिए वही एक खन्दक बन सकता है, जिसमें से निकलना असम्भव हो। सब कुछ हमारी इच्छा शक्ति और संकल्प पर निर्भर है। जहाँ चाह है वहाँ राह अवश्य निकल आती है।

जिस वस्तु या जिन वस्तुओं को आप मूल्यवान समझते हैं, उसका मूल्य श्रम ही हैं। श्रम के बिना उसकी प्राप्ति असम्भव थी। महान पुरुषों की सफलता का गुर निरन्तर अनवरत श्रम है। उन्होंने जो कार्य हाथ में पकड़ा, वे लगातार उसी को आगे लेकर बढ़ते रहे हैं। हम यह मानते हैं कि उनमें जन्मजात प्रतिभा, बुद्धि तीव्रता रही होगी किन्तु उनमें जिस गुण का आधिक्य था, वह परिश्रम था। श्रम को सजा मत मानिये प्रत्युत आशा और उत्साह का सम्मिश्रण कीजिये।

सेन्ट अगस्टाइन कहा करते थे, “आलस्य में बिना कुछ किये निष्क्रिय पड़े रहना सबसे कठिन कार्य है। वह व्यक्ति धन्य है जो अपना जीवन और शक्तियाँ उत्तम कार्यों की सिद्धि में लगाता है और अपनी योजनाएं पर्याप्त सोच समझ कर निर्मित करता है। न केवल बड़ी योजनाओं में, छोटी तथा मामूली योजनाओं तक में श्रम की अतीव आवश्यकता पड़ती है। आलस्य में सम्पत्ति अर्जित करने में लगे हुए समय से आधे समय में ही नष्ट हो जाती हैं।”

एक संस्कृत कहावत का सार है- लक्ष्मी उस नर शिरोमणि के साथ रहती है, जो सर्वाधिक श्रम करता है। वे व्यक्ति दुर्बल हैं, जो भाग्य को ही निर्माण करने वाली शक्ति माने बैठे हैं।

इस देश के नवयुवकों का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है। बेकारों की संख्या बढ़ाने वाले कुछ व्यक्ति तो वास्तव में काम न मिलने से परेशान हैं, किन्तु अधिकाँश में उनसे ऐसी संख्या वाले अधिक हैं जो आलसी, बेकार, निठल्ले और मुफ्त में सब कुछ चाहने वाले हैं। जो पेशे अधिक परिश्रम चाहते हैं, उनमें वे दिलचस्पी नहीं लेते। उन नौकरियों की ओर दौड़ते हैं जिनमें कम मेहनत करनी पड़ती है। काम न करके, वे आलस्य में अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं किया जाता, वे अन्ततः नष्ट हो जाती हैं। शारीरिक और मानसिक शक्तियों के प्रति आलस्य भावना अनर्थकारी है। आलस्य ने उन्हें पतित और कमजोर बना दिया है। कुछ दिनों तो मनुष्य को आलस्य में कुछ आकर्षण प्रतीत होता है, किन्तु बाद में खाली बैठे ठाले रहना भी बेमजे हो जाता है। आलस्य में आनन्द मनाने, प्रसन्न रहने की शक्ति मारी जाती है। जिस व्यक्ति के जीवन में सदा छुट्टी ही रहती हो, वह छुट्टी के आनन्द को क्या समझ सकता हैं। बिस्तर पर पड़े रहने वालों ने कब क्या किया है? उन्हें अपने सोने से ही कुछ फुरसत मिली है? बड़े-बड़े अवसर निकले चले जाते हैं, और वे सोये पड़े रहते हैं। जिसे हम आलस्य कहते हैं, वह हमारी शक्तियों के पंगु होने की एक निशानी है।

आलस्य जीवित व्यक्ति की समाधि की तरह हैं। आलसी व्यक्ति न अपनी उन्नति, सेवा, या प्रगति कर सकता है, न समाज, देश अथवा परमेश्वर के ही काम आ सकता है। वह तो चूहे खटमल या मक्खी मच्छरों की तरह व्यर्थ ही इस सृष्टि के अन्त को नष्ट करता है। जब उनके मरने का समय आता है, तो वे गाय, भैंस या अन्य पशुओं की तरह नष्ट हो जाते हैं। वे जो कुछ करते हैं वह बंजर भूमि की तरह व्यर्थ है। आलस्य समय की बरबादी है।

पुराने यूनानी लोग कार्य को एक सामाजिक आवश्यकता समझते थे। सोलन कहते है कि जो व्यक्ति काम नहीं करता था अथवा उससे जी चुराता था, वह कोर्ट के सुपुर्द कर दिया जाता था। एक दूसरे यूनानी वेत्ता का कथन है कि “जो व्यक्ति काम से जी चुराता है, वह चोर डाकू है।” श्रम करने वाले व्यक्ति अपराधी नहीं होते। उनकी वृत्तियाँ शुभ कार्यों में लगती हैं। वे ऊंचाई की ओर चढ़ते हैं। आलसी व्यक्ति का दिमाग झगड़ों की जड़ है। उसमें रह रह कर शरारत और खुराफातें उठा करती हैं। खाली बेकार बैठ कर हम पाप की ओर प्रवृत्त होते हैं। जो व्यक्ति अपने को कार्य से मुक्त समझता हैं वह दया का पात्र है साथ ही सजा का हकदार है। यदि आप अशिक्षित हैं तो थोड़े से श्रम से शिक्षित बन सकते हैं, यदि पिछड़े हुए हैं तो मेहनत से त्याग कर आगे निकल सकते हैं, यदि दुर्बल हैं तो सशक्त और साहसी हृष्ट पुष्ट बन सकते हैं और प्रतिष्ठा का जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

प्रलोभन आलस्य की शक्ल में आता है और हमें कर्म मार्ग से च्युत करता है। “तनिक विश्राम कर लें”- ऐसा विचार मन में आते ही, वह अपनी शक्तियों को समेट लेता है। इस “तनिक” से उसकी शक्तियों को पूरा काम नहीं मिल पाता। फलतः वह अपनी सृजनात्मक शक्तियाँ खो बैठता है।

अरस्तु ने कहा है, “आनन्द एक शक्ति है। दैनिक पर्यवेक्षण से आपको विदित होगा कि आनन्द और स्वास्थ्य की आलस्य से पुरानी शत्रुता है। अनेक व्यक्तियों के जीवन में असंख्य अवसर आते हैं, उनकी प्रसन्नता की प्राप्ति के बहुत से साधन हो सकते हैं। समय का सदुपयोग कर ये व्यक्ति कहीं के कहीं पहुँच सकते हैं। फालतू वक्त में अपनी गुप्त शक्तियाँ बढ़ा कर ये अपने आपका आमूल परिवर्तन कर सकते हैं और इन्हीं आलसियों में ऐसे अनेक व्यक्ति निकल सकते हैं जो शानदार फल प्राप्त कर सकते हैं, पर शोक! ये अपनी मोह निद्रा में सोये पड़े रहते हैं। इन सदा के लिये अपने हाथ से भागते हुए मिनटों, घण्टों, दिनों, और सप्ताहों को मजबूती से नहीं पकड़ते। इन्हें व्यर्थ मत क्षय होने दीजिये वरन् अपने कार्य से स्थायी बनाइये।”

यौवन का समय स्वर्ण युग है। जीवन के ये बहुमूल्य क्षण मनुष्य को किसी विशेष दिशा में मोहने के लिये समर्थ हैं। आपकी शक्तियाँ अपने पूरे उभार पर रहती हैं और उनसे खूब परिश्रम लिया जा सकता है। प्रौढ़ हो जाने पर ये शक्तियाँ चाँदी की तरह हैं। चाँदी के जिस प्रकार अनेक उच्च उपयोग हो सकते हैं उसी प्रकार प्रौढ़ जीवन के समय से भी प्रचुर लाभ उठाया जा सकता हैं। वृद्धावस्था का युग सीसे की तरह है, जिसके उपयोग हैं पर बड़े नहीं। फिर भी अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार उसका भी कुछ न कुछ उपयोग हो ही सकता है।

यदि कार्य करें, लेकिन देर से झिका कर दुख देकर करें, तो क्या लाभ? कार्य तो वही उत्तम है, जो उचित समय पर समयानुकूल ही कर दिया जाय जब समय निकल गया, तो उसे करने से न लाभ हो सकता है न प्रशंसा ही प्राप्त हो सकती है। नियम पूर्वक ठीक समय पर कार्य पूर्ण कर देना परमेश्वर का एक आशीर्वाद है। टालने या देर से करने के कारण, अनेक बड़े व्यक्तियों का पतन हुआ है।

कुछ व्यक्तियों का असफल होने के कारण क्रम तथा व्यवस्था की कमी है। वे काम खूब करते हैं किन्तु सब अव्यवस्थित, टूटा फूटा, बेतरतीब, विशृंखल। जब तक ठीक योजना न बनाई जाय, और अपने कार्य को क्रमानुसार पूर्ण न किया जाय, तब तक स्थायी लाभ प्राप्त नहीं होता, प्रत्युत कार्य अधूरा सा ही रह जाता है।

क्रम तथा सुव्यवस्था सर्वत्र लाभदायक है। घर हो, या आफिस, दुकान या और कोई अस्पताल, सुव्यवस्था अमित फल देने वाली है। व्यवस्थित व्यक्ति थोड़े से श्रम से बहुत काम निकाल सकता है, थोड़ी वस्तुओं से बहुत सा लाभ प्राप्त कर सकता है तथा रुपया भी बना सकता है। आपके घर, दुकान या आफिस की प्रत्येक वस्तु का एक नियत स्थान होना चाहिए। प्रत्येक सदस्य वस्तु को उसी नियत स्थान पर रखे, इधर-उधर न फैलायें। जो वस्तु जहाँ से उठाई जाय वहीं रखी जाय, जो पुस्तक अलमारी के जिस स्थान पर रखी है, वहीं रखी जाय। घर में आपका चाकू, दियासलाई, लिखने पढ़ने की वस्तुएं, कपड़े, कुर्सी, मेज, कंघा, शीशा इत्यादि का जो स्थान नियत हो चुका है वहीं पहुँचना चाहिये। लिखने-पढ़ने, हिसाब-किताब, ऋण या मिलने-जुलने में भी समय और क्रम का ध्यान रखें। पहले सबसे महत्वपूर्ण कार्य हाथ में लें, फिर कम महत्वपूर्ण, फिर अन्य साधारण काम। प्रायः लोग मामूली कामों को पहले हाथ में ले लेते हैं जबकि महत्वपूर्ण कार्य यों ही पड़े रह जाते हैं।

काम में समय की पाबन्दी का सतर्कता से ध्यान रखें। बिना समय की पाबन्दी के मनुष्य चिन्तित रहता है, तथा काम को पर्वत की तरह भारी ओर दुरूह कष्ट साध्य बनाता है। नियत समय पर कार्य करने का गुण सर्वत्र प्रशंसित होता है। ऐसे व्यक्ति पर सब विश्वास करते हैं और जिम्मेदारी के कार्य प्रदान करते हैं।

जीवन एक प्रगति है। यह उन्नति और श्रेष्ठता की ओर बढ़ना है। हम आशामय प्रयत्नों से निरन्तर आगे बढ़ते चलते हैं। प्रायः कठिनाई सत्य प्राप्ति में एक गुरु का कार्य करती है। विरोध हमारी गुप्त शक्तियों को जागृत करता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करता है। अधिक कठिनाइयाँ पड़ने पर हमारा आत्म विश्वास बढ़ता है, विनम्रता आती है और सहिष्णुता की शक्तियाँ बढ़ जाती हैं।

आपके जीवन बन्द पानी की तरह एक स्थान पर बंधा हुआ सड़ता गलता नहीं होना चाहिए। यदि आप उसे आगे नहीं बढ़ायेंगे, जीवन में प्रवाह नहीं लायेंगे, तो वह पीछे की ओर (पतन, आलस्य और मृत्यु) चलने लगेगा। जहाँ हमें कठिनाइयाँ मिलें, उनकी परवाह न करते हुए हमें आगे बढ़ जाना चाहिए। सर फिलिप सिडनी का मूल मन्त्र हमें प्रेरणा देने वाला है-”मैं सफलता और कार्य सिद्धि का मार्ग मालूम कर लूँगा। यदि न मिला, तो स्वयं निर्माण कर लूँगा।” यदि आपको अपना मार्ग नहीं मिलता, तो अपनी मौलिकता, बुद्धि, तथा अध्यवसाय से उसे मालूम क्यों नहीं कर लेते।

आराम तथा विलास में रहने से मनुष्य जीवन भर बच्चा ही बना रहता है, कठिनाइयों और विरोधों में रहने से उसमें पुरुषोचित शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि होती है।

बड़े बनने वाले व्यक्तियों के जीवन का अध्ययन करने से विदित होता है कि उनमें कुछ अपूर्णताएं, त्रुटियाँ या प्रकृति की ओर से कुछ कमजोरियाँ थीं। इन कमजोरियों को दूर करने की प्रतिक्रिया ने उन्हें ऊंचा उठाकर आसमान तक चढ़ाया था। चरित्र की दृढ़ता या कमजोरी की सच्ची परीक्षा तब ही होती है जब बाह्य परिस्थितियों में कोई असाधारण परिवर्तन होता है, या कोई विरोध उत्पन्न होता है। विरोध से मनुष्य को अपनी सब शक्तियों के सामूहिक बल पर अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करनी होती है। अनेक छुपी हुई शक्तियों का विकास होता है। कठिनता एक भारी हल है। उसे चलाने के लिए लोहे से सख्त हाथों की आवश्यकता है।

आपका श्रम चाहे शारीरिक हो, अथवा मानसिक, आपको चाहिए कि आप पूरी शक्तियों और एकाग्रता से उसमें संलग्न हो जायें तन्मयता पूर्वक उसे सम्पन्न करते रहें और जब तक उसे पूरा न कर डालें कदापि न छोड़ें। अपने पसीने की आय से हमें समुन्नत होना चाहिए।

धन की त्रुटियाँ बताते हुए प्रायः कहा जाता है कि इससे हमारी नैतिकता को धक्का लगता है, सहानुभूति, दया, करुणा का लोप होने लगता है, लेकिन गरीबी इससे भी बुरी है, निंद्य है। गरीबी से मनुष्य का साहस और उत्साह मारा जाता है, सच्चा और प्रतिष्ठित होना कठिन हो जाता है। अतः श्रम द्वारा अपनी गरीबी को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।

श्रम के साथ विश्राम और मनोरंजन का भी उचित सम्मिश्रण होना अपेक्षित है। आप परिश्रम करें और थकने पर पर्याप्त विश्राम करें। मनोरंजन द्वारा मन का भार दूर करें जिससे नया उत्साह और शक्ति प्राप्त हो सके।

अपने कार्य में निरंतर संलग्न रहना, मन उचाट न कर उसमें समृद्धिशील बनने का प्रयत्न करते रहना मनुष्य के लिए सबसे स्वस्थ शिक्षा है। जो अपनी शक्तियों का सुचारु उपयोग श्रम में करता चलता है, वह कठिन कार्यों में भी सफलता प्राप्त करता जाता है। समृद्धि उसके साथ चलती है।

श्रमशील व्यक्ति तड़के उठता है और अपने काम पर यथा समय जाता है। वह एक सेकिंड भी व्यर्थ नष्ट नहीं करता। वह सतर्क और जागरुक बना रहता है, अवसरों को व्यर्थ नहीं जाने देता। आपने पर्याप्त समझ बूझ कर अपना जो भी कार्यक्रम उद्देश्य या मूल काम निश्चित किया हो, उसमें दृढ़ता से लग जाइये अपने निश्चयों के प्रति सच्चे रहिए। ध्यान रखिए कि आलस्य, तन्द्रा, विलास, या बीमारी की केंचुली आपके इर्द गिर्द चिपटी न रह जाय।


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