आमदनी खर्च करने की कला।

January 1950

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आमदनी की न्यूनाधिकता पर मनुष्य के घर गृहस्थी के सुख की न्यूनाधिकता अवलम्बित नहीं है प्रत्युत अपनी आमदनी को ठीक प्रबन्ध और शास्त्रीय नियमानुसार संयम और मनोनिग्रह द्वारा खर्च करने पर सम्पूर्ण सुख अवलम्बित रहता है।

अपने रुपये को बुद्धिमानी से व्यय करना एक कला है, जिसको न जानने के कारण हमारे परिवार दुःखी हैं। अनेक व्यक्ति आवश्यक खर्चे छोड़ देते हैं किन्तु आराम और विलासिता पर व्यय करते हैं। जीवन रक्षक पदार्थ खरीदते हुए महंगाई की शिकायत करते हैं, पर विलासिता की वस्तुओं, उदाहरणार्थ-चाय, तम्बाकू, सिगरेट, पान, सिनेमा, शराब, फैशन, भड़कीले वस्त्र, नेकटाई, टोप-को खरीदते समय महंगाई का अनुभव नहीं करते।

अनिश्चित व्यय वाले व्यक्ति-

आमदनी का सम्बन्ध हमारी प्रकृति, आदतों, फैशन, रहन सहन का ढंग, जलवायु, देशकाल, आवश्यकताओं, घर के सदस्यों की संख्या, रीति रस्म, आचार व्यवहार पर निर्भर है। इनमें से प्रत्येक का ध्यान हमें रखना पड़ता है। उपभोक्ताओं की परिस्थितियों के अनुसार आमदनी की कमी या अधिकता बदलती रहती है। प्रायः देखा जाता है कि आदत पड़ जाने पर मनुष्य विलासिता पर व्यय करना आवश्यकताओं पर व्यय करने से अधिक उत्तम समझता है। जिस व्यक्ति को शराब, चाय, सिनेमा, वेश्यागमन, तम्बाकू, गाँजा, चरस का व्यसन लग जाता है, वे दूध, दही, मक्खन, हवादार मकान इत्यादि जीवन रक्षण और निपुणता - दायक पदार्थों में व्यय करना पसन्द नहीं करते। फैशन परस्त लोग घर की गरीबी न देखते हुए भी बाहरी टीपटाप, मिथ्या प्रदर्शन में फंसे रहते हैं। निर्धन लोग थोड़ी सी वाहवाही के लिए कर्ज लेकर विवाह, जनेऊ या दान इत्यादि में व्यय कर देते हैं। गरीब मजदूर भी पान, बीड़ी, सिनेमा, चाय, जुआ, सट्टा, शराब इत्यादि व्यसनों में व्यय करते हुए नहीं डरते। भिक्षुक तक चाय या बीड़ी पीना दूध रोटी से अधिक पसन्द करते हैं।

एक अमीर व्यक्ति के लिए आलीशान महल, बिजली के पंखे, लैम्प, मोटर, फाउन्टेन पेन, भड़कीले वस्त्र, सजावट की वस्तुएँ आराम की वस्तुएँ समझी जायेंगी, किन्तु एक गरीब किसान, या क्लर्क, मामूली दुकानदार नौकरी पेशा के लिए ये ही वस्तुएँ विलासिता की चीजें मानी जावेंगी।

सदा अपनी आमदनी पर दृष्टि रखिये। आमदनी से अधिक व्यय करना नितान्त मूर्खता और दिवालियापन की निशानी है। जैसे-2 आमदनी कम होती जाये, वैसे-2 व्यय भी उसी अनुपात में कम करते जाइये। व्यय में से विलासिता और आराम की वस्तुओं को क्रमशः हटाते चलिये, व्यसन छोड़ दीजिये, सस्ता खाइये, एक समय खाइये, सस्ता पहनिये। मामूली मकान में रह जाइये, नौकरों को छुड़ाकर स्वयं काम किया कीजिये, धोबी का काम खुद कर लीजिये, चाहे बर्तन तक खुद साफ कर लीजिये किन्तु आमदनी के बाहर पाँव न रखिये।

कभी उधार न लीजिये-

उधार एक ऐसी बला है, जो मनुष्य की सब शक्तियों को क्षीण कर डालती है। उसे सबके सामने नीचा देखना पड़ता है, हाथ तंग रहता है। श्री संतोष नारायण नौटियाल का अनुभव तथा सीख याद रखिये-

“उधार लेने की आदत कैसी है, इस पर दो राये नहीं हो सकतीं। इसका तो एक ही उत्तर है-आदत बहुत बुरी है। उधार लेते समय तो चाहे वह रुपया हो या और कोई चीज कुछ पता नहीं चलता, परन्तु देते समय दशा बिगड़ जाती है। ऐसा लगता है, जैसे पैसे फेंक रहे हैं। धीरे-2 यह आदत इतनी जोर पकड़ती है कि उधार की चीज या पैसा लौटाने को मन नहीं होता और फल यह होता है-मित्रों का कन्नी काटना, समाज में निरादर, बदनामी आदि। फिर वह “भेड़िया आया” वाली बात होती है। यदि कभी वास्तविक आवश्यकता पड़ी भी तो पैसा नहीं मिलता। इसलिए निश्चय करना चाहिए कि कभी कोई चीज या रुपया उधार नहीं लेंगे।”

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ऋण के चार प्रमुख कारण बतलाये हैं-कपड़े-लत्ते, जूता, तड़क भड़क और आमोद-प्रमोद। ऋण पर ऋण बढ़ता है और उसका तार जीवन भर नहीं छूटता। शुक्ल जी लिखते हैं-“ऋण एक नाले के समान है, जो ज्यों ज्यों आगे चलता है, त्यों त्यों बढ़ता है। सबसे बुरी बात ऋण में यह है कि जिसे ऋण का अभ्यास पड़ जाता है, उसकी घडक खुल जाती है, उसे आगम का भय नहीं रहता और जब तक उसका नाश नहीं होता, तब तक वह विष का घूँट बराबर पिये जाता है। यदि उसका चित्त ऐसा हुआ कि जिसमें लतें जल्दी लगती हो, तो वह निर्द्वन्द्व न रह सकेगा, ऋण के बराबर बढ़ते हुए बोझ से दब कर वह छटपटाया करेगा।

आमदनी और खर्च के ऊपर तीखी दृष्टि रखिये। व्यय से पूर्व आमदनी खर्च का एक चिट्ठा-बजट-तैयार कर लीजिये। जो बुद्धिमान व्यक्ति अपने रुपये से अधिकतम लाभ और उपयोगिता प्राप्त करना चाहता है, कर्ज से बच कर सज्जन नागरिक का प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत करना चाहता है, उसे बजट बनाना आवश्यक है। बजट हमें फिजूलखर्ची से सावधान करता है। सब व्यय तथा आमदनी नक्शे की तरह हमारे समाने रहती है। टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च होता है, विलासिता से मुक्ति होती है।

क्या आप कर्जदार हैं?

क्या आप कर्जदार है? यदि ऐसा है तो आपकी आत्मा को शान्ति नहीं मिल सकती। उन धनी मानी व्यक्तियों के उदाहरण अपने सन्मुख रखिये जो आजन्म ऋण के बोझ से दबे रहे। हमारे ग्रामीण तो 80 प्रतिशत कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं। गोल्डस्मिथ, बालजाक, मार्क टवैन, वेबस्टर, लार्ड वायरन, सर वाल्टर स्काट सब कर्जदार रहे। वाल्टरस्काट आजन्म कर्ज चुकाते रहे। रूसी लेखक डास्टाएन्सकी कर्ज में डूबा रहा। उसकी इच्छा थी कि कर्ज से मुक्त हो जावे किन्तु न हो सका। गोल्डस्मिथ इतना फिजूल खर्च रहा कि जौनसन साहब की सहायता करने पर भी ऋण मुक्त न हो सका। कथाकार बालजाक अपने महाजनों से डरा-2 फिरा करता था। मार्क स्वेन का 300,000 रु॰ व्यापार में नष्ट हो गया था। लार्ड वायरन जैसे कवि का घर कई बार नीलाम होते होते बचा सुविख्यात चित्रकार व्हिरलय तथा हेडेन का जीवन सदैव दुःख में रहा।

श्री योगेन्द्र बिहारी लाल ऋण ग्रस्त व्यक्तियों के उदाहरण देते हुए लिखते हैं-“सौ वर्ष पहले ल्योब्रमेल इंग्लैंड का फैशन ‘सम्राट् कहा जाता था। उसके कपड़े पहनने का ढंग ही फैशन हो जाता था पर ऋण के कारण उसका सब कुछ बिक गया। जब नीलाम करने वाले उसके घर आते थे तो वह कपड़ों की अलमारियों के पीछे छिप जाता था। अन्त में वह पकड़ा गया। दरिद्रता के कारण उसे फटी कमीज पहननी पड़ती थी, और जनता उस भूतपूर्व फैशन सम्राट पर हंसती थी। विलियन पिट का विवाह कुमारी एडेन से होने जा रहा था, पर पिट के ऋण ग्रस्त होने से विवाह न हो सका था।”

अब्राहमलिंकन ने किसी से शराब की दुकान में साझीदार के मरने पर लिंकन ग्यारह वर्ष तक ऋण चुकाता रहा।

खर्च के विषय में बेखबर रहने से मनुष्य की पूरी आयु नष्ट हो जाती है। इसी के सदुपयोग से जीवन सरस बनता है, समाज में आदर और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। कौटिल्य ने कहा है-“केवल धन के द्वारा मनुष्य गुण, आनन्द एवं मोक्ष की प्राप्ति करता है।” वास्तव में आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न रहने से मनुष्य नैतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति भी सरलता से कर सकता है। रुपया पास होने से सूर्योदय और गुलाब भी हमें सुन्दर लगते हैं। एक कवि ने लिखा है-

“जब जेब में पैसा होता है,

जब पेट में रोटी होती है।

तब हर एक जर्रा हीरा है,

तब हर एक शबनम मोती होती है॥

इस उक्ति में एक शाश्वत सत्य अंतर्निहित है।

आमदनी खर्च करने का उद्देश्य क्या हो?

आप यह उद्देश्य सामने रखिये कि परिवार के प्रत्येक सदस्य को जीवनरक्षक पदार्थ और निपुणता दायक वस्तुएँ पर्याप्त परिणाम में प्राप्त होती रहें। जब तक ये चीजें न आ जावें, तब तक किसी प्रकार की आराम या विलासिता की वस्तुओं से बचे रहिये। यदि किसी का स्वास्थ्य खराब है, तो पहले उसकी चिकित्सा होनी चाहिए। यदि किसी विद्यार्थी का अध्ययन चल रहा है, तो उसके लिए सभी को थोड़ा बहुत त्याग करना चाहिए। कृत्रिम आवश्यकताओं को दूर करने का सब को प्रयत्न करना चाहिए। शिक्षा, त्याग और पारस्परिक सद्भाव से सभी सामूहिक परिवार के लिए प्रयत्नशील हो।

प्रत्येक व्यक्ति की अपने खर्च पर गंभीरता से विचार कर कृत्रिम आवश्यकताओं, व्यसनों, फैशन, मिथ्या प्रदर्शन, फिजूल खर्ची कम करनी चाहिए। आदतों को सुधारना ही श्रेष्ठ और स्थायी है। ऐश आराम और विलासिता के खर्चो को कम करके बचे हुए रुपये को जीवन रक्षक अथवा निपुणता दायक या किसी टिकाऊ खर्च पर व्यय करना चाहिए। बचत का रुपया बैंक में भविष्य के आकस्मिक खर्चों, विवाह शादियों, मकान, या बीमारियों के लिए रखना चाहिए। प्रत्येक पैसा समझदारी से जागरुक रह कर भविष्य पर विश्वास न करते हुए खर्च करने से प्रत्येक व्यक्ति को अधिकतम संतोष और सुख होगा।

कमाई और आमदनी से नहीं, आपकी आर्थिक स्थिति आपके खर्च से नापी जाती है। यदि खर्च आमदनी से अधिक हुआ तो बड़ी आय से क्या लाभ?

हम एक प्रिंसिपल महोदय को जानते हैं जिन्हें 800 रु. मासिक आमदनी होती थी। किन्तु वे 200 रु. माह बार घर से और खर्चे के लिए मंगवाते थे। सदैव हाथ तंग रखते और वेतन के कम होने का रोना रोया करते थे।

दूरदर्शी व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं और खर्चों का पहले से ही बजट तैयार करता है। उसकी आय वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति में ही व्यय नहीं होती प्रत्युत वह भविष्य के लिए, बच्चों की शिक्षा, विवाह, बुढ़ापे के लिए धन एकत्रित रखता है। अपनी परिस्थिति के अनुसार कुछ न कुछ अवश्य बचाता है।

किसी कवि ने कहा है-

कौडी कौडी जोड़ि कै, निधन होत धनवान।

अक्षर अक्षर के पढ़े, मूरख होत सुजान॥

आप बचत कर सकते हैं?

बचत का प्रश्न प्रत्येक का व्यक्तिगत प्रश्न है। यह मनुष्य की आवश्यकताओं की कमी, दूरदर्शिता, मितव्ययिता पर निर्भर है। मनुष्य को बजट में 10 प्रतिशत बचत सदा रखनी चाहिए। यह न्यूनतम है। जो जितनी मितव्ययिता, से काम लेगा, उसे उतनी ही अधिक बचत होगी। बचत के लिए दो काम कीजिए-(1) अपनी आय बढ़ाइये (2) खर्चों के ऊपर नियंत्रण रखिये। खर्च जितना कम होगा, बचत उतनी ही अधिक होगी। सोच समझ कर आत्मनिग्रह पूर्वक व्यय करने से कुछ बचत अवश्य होगी।

प्रायः देखा जाता है कि लोगों की नीयत बचाने की होती ही नहीं। जितना आया, व्यय कर डाला। शिक्षा के अभाव और व्यसन के पंजे में फंसे रहने से बहुत से व्यक्ति मृत्यु, बीमारी, शादी, शिक्षा आदि के लिए भी कुछ नहीं बचाते, बुढ़ापे की तो बात ही दूर है। यदि कोई दैवी घटना संयोगवश आ जाती है, तो वे दूसरों के सम्मुख हाथ फैलाते हैं। ऐश आराम, या विलासिता की वस्तुओं के पंजे में फंसे रहने से खर्च बढ़ता है, और बचत कम होती है। दुराचार, व्यसन, व्यभिचार, बीमारियाँ, ठाट-बाट, झूठा दिखावा, विवाह, दान में अधिक अपव्यय , मकान बनाना, व्यापार के लिए कर्ज लेकर न चुका सकना, बेकारी, उद्योगहीनता बहुत ही निन्दनीय हैं। इनमें फंस कर आमदनी क्षीण होती और पूरी आयु नष्ट होती है।

बजट में बचत का विधान रखिये-

रुपये का यह नियम है कि हाथ में आते ही व्यय होने लगता है। छिपी हुई कृत्रिम आवश्यकताएँ, प्रलोभन और विलासिता की वस्तुएँ खरीदने को मन कर आता है। यदि आप रुपया अपनी जेब में रखेंगे, तो वह अवश्य खर्च होगा। रुपया जेब में रख कर मितव्ययिता का अभ्यास कठिन ही नहीं नितान्त असंभव है।

जब आप बाजार जाय तो केवल उतना ही रुपया ले जाय जितना आपको जरूरत हो, जो वस्तुएँ खरीदनी हों, उनकी एक सूची साथ रक्खें। अधिक रक्खा हुआ पैसा बाजार से वापस कदापि नहीं लौटेगा। आप प्रलोभन के सामने झुक जायेंगे और पैसे जेब से निकल जायेंगे।

घर में इतना ही रुपया रखिये, जितना मास के लिए आवश्यक हो। शेष को डाकखाना सेविंग्स बैंक, या बीमा कम्पनी में डाल दिया कीजिये। भविष्य में अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए दत्तचित्त रहिये जब तक आय न बढ़े, तब तक दैनिक आवश्यकताओं पर नियंत्रण रख कर खर्च कम करने का पूरा प्रयत्न करते रहिये।

बचत में से भी हम निकालने के आदी होते हैं। क्षणिक आवेश में आकर अपनी संचित आमदनी व्यय कर डालते हैं। इस लिए बचत के वे उपाय श्रेष्ठ हैं जिनमें से रुपया आसानी से नहीं निकल सकता। ऐसे उपायों में बीमा कम्पनी में जमा करना, जायदाद खरीदना, या बैंक के स्थायी डिपॉजिट में रुपया रखना बड़ा अच्छा है। गहनों के रूप में भी रुपया रक्षित रहता है। गहने बेचते हुए प्रायः हम हिचकते हैं। परिमित व्यय करने वाला थोड़ा बहुत अवश्य बचा सकता है। केवल मन पर नियंत्रण, कृत्रिम आवश्यकताओं का दमन और संयम की आवश्यकता है।

पारिवारिक बजट-

हम नीचे एक बजट की रूप रेखा देते हैं जिससे बचत के ऊपर प्रकाश पड़ता है-

1-भोजन पर व्यय-25 प्रतिशत

2-वस्त्र इत्यादि पर व्यय-10 प्रतिशत

3-किराया मकान पर व्यय-20 प्रतिशत

4-बचत-15 प्रतिशत

5-आत्मसुधार पर व्यय-10 प्रतिशत

6-आकस्मिक व्यय के लिए-15 प्रतिशत

7-विलासिता और मनोरंजन-5 प्रतिशत

बजट का नियम स्मरण रखिये कि जो कम आमदनी वाले गरीब और अधिक सदस्यों वाला परिवार होगा, उसकी आय का अधिक भाग जीवन रक्षण में खर्च होना चाहिये। निपुणता तथा आराम की वस्तुओं के लिए उसके पास उसी अनुपात में पैसा कम बचेगा। किन्तु आमदनी में वृद्धि के साथ-2 जीवन रक्षक पदार्थों में कम अनुपात में खर्च होगा और आराम और विलासिता की चीजों पर अपेक्षाकृत अधिक व्यय होगा।

उपरोक्त बजट से हम इन निष्कर्षों पर पहुँचे हैं

(1) जिन परिवारों की आमदनी कम है वे जीवन निर्वाह की वस्तुओं पर अधिक खर्च करते हैं। (2) वस्त्रों पर मजदूर तथा निम्न श्रेणी के अलावा मध्यम और सम्पन्न परिवार लगभग एक सा ही खर्च करते हैं। (3) किराया मकान में गरीबों को कुछ लाभ रहता है। अधिक आमदनी वाले प्रायः शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, परिचर्या इत्यादि में ज्यादा खर्च करते हैं।

निम्न श्रेणी के व्यक्ति प्रायः मादक वस्तुओं में बहुत व्यय कर डालते हैं। शहर के बाबू लोग फुटकर खर्चों-सजावट, डॉक्टर की फीस बीड़ी चाय, कर्ज का सूद, सामाजिक व्यय, टैक्स, मनोरंजन, सिनेमा, पान मिठाई धोबी, पोस्टेज साबुन, शेविंग-में व्यय करते हैं। यह अनुचित है। यदि ये फुटकर चीजों पर नियंत्रण करे, तो मजे में जीवन काट सकते हैं। सुधार की बहुत गुंजाइश रहती है केवल नियंत्रण और संयम की आवश्यकता है।

रहन सहन ऊँचा करने के लिए संयम और इन्द्रिय निग्रह चाहिए। दूसरा तत्व शिक्षा है। सद्बुद्धि और अर्थशास्त्र की शिक्षा से वे कृत्रिम आवश्यकताओं से बच सकेंगे, यदि हम अपनी शक्तियों का विकास करें। अच्छे आदमियों के रहन सहन का अनुकरण करें, आय वृद्धि करें। दूसरे शहरों में काम तलाश करें, तो बहुत अधिक अच्छी तरह रह सकते हैं। किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि हम पहले जीवन रक्षक पदार्थ खरीदें, फिर निपुणता दायक पदार्थों का अधिक उपयोग करें और अन्त में आराम के लिए पदार्थों का उपभोग कर सकते हैं।

किस कुटुम्ब में कितना व्यय हो, इसका ठीक अनुमान कठिन है। कोई कुछ, तो कोई कुछ व्यय करता है। फिर भी कुछ आदेश दिये जा सकते हैं। पं. लक्ष्मीधर वाजपेयी ने 20) रु. की आमदनी के व्यय का ब्योरा इस प्रकार दिया है-

भोजन 12), घर का भाड़ा, 1), वस्त्र 3), नाई धोबी तथा फुटकर खर्च 1), बच्चों की पढ़ाई लिखाई 1), आकस्मिक खर्च 1), बचत 1)। इसमें प्रत्येक कम आमदनी पाने वाला व्यक्ति इच्छानुसार न्यूनाधिक कर सकता है।

इन बातों को स्मरण रखिये-

पारिवारिक व्यय करते समय सब खर्चों का खूब अनुमान लगा लीजिये। जो स्थायी व्यय हैं, उन्हें मास के प्रारम्भ ही में कर डालिये, भोजन और स्थायी खर्च प्रारम्भ में कर लेने से मास के अन्त तक आनन्द रहता है। यदि आप प्रति दिन दूध खरीदते हैं, तो दूध वाले को रुपया अग्रिम ही दे देना उचित है, अन्यथा इस मास का भार दूसरे मास पर पड़ेगा। अर्थात् यह रुपया एक प्रकार का कर्ज सा बना रहेगा। चीजें नकद लेने की आदत डालिये क्योंकि उधार आप भूल जायेंगे और फिर माँगने वाले किसी ऐसे समय आकर आपको तंग करेंगे, जब आप का हाथ तंग होगा। उधार या कर्ज ऐसी नंगी तलवार है जो आप पर सदैव लटकती रहती है। प्रायः दुकानदार उधार वाले को चीजें भी महंगी देते हैं।

त्यौहार, उत्सव, और धर्मादय में फिजूल खर्ची से बचना चाहिए। प्रायः मुसलमान तथा हिन्दू निर्धन व्यक्ति कर्ज लेकर त्यौहार मनाते हैं। कर्ज का एक पैसा खाना भी पाप है। उधार की एक कौड़ी भी भार स्वरूप है। जो स्थिति परमेश्वर ने आपको दी है, उसी के अनुकूल त्यौहार और उत्सव मनाइये। आत्मनिग्रह और संयम आपकी सहायता करेंगे। विवाह तक में जमाने की परवाह न कर अपनी हैसियत के अनुकूल व्यय करना चाहिए।

तीर्थ यात्रा, ब्राह्मण भोजन, रूढ़ियों, बिरादरी को प्रसन्न करने में विश्वास छोड़ दीजिये। इसी प्रकार अतिथि सेवा आपका धर्म है पर कर्ज लेकर मेहमानदारी करना एक मूर्खता है। बाहरी टीपटाप से बचिये। नाना प्रकार के गन्दे व्यक्ति साधु संन्यासियों का वेश बनाकर अनुचित लाभ उठाते हैं।

साधारण गृहस्थी के खर्च विभाग :-

तीन लम्बे लिफाफे लीजिये और उन पर यह लिखिये (1) चालू खर्च का रुपया (2) अचानक खर्च (3) प्रासंगिक खर्च। अपनी आमदनी के हिसाब से इन तीनों मदों में पृथक् 2 रुपया डालिये। चालू खर्च में सब से अधिक व्यय होगा पर प्रतिमास आपको 5-5 प्रतिशत अन्य दोनों मदों में भी व्यय करना होगा। यहाँ हम तीनों खर्चों की पूरी सूची देते हैं-

चालू व्यय-यह व्यय प्रतिमास व्यय करना होगा। इसमें कमी नहीं हो सकती। इसमें भोजन का बजट, किराया मकान, बच्चों की फीस, नौकरों का खर्चा, वस्त्रों का व्यय, चिरागबत्ती, धोबी, साइकिल का व्यय, बीमा पॉलिसी, गाय भैंस का खर्च, सूद इत्यादि, टैक्स, टायलेट (तेल, साबुन, बाल काटना) पोस्टेज, चाय, लकड़ी कोयला इत्यादि मसाले, चन्दा, लाइब्रेरी, पानी, बिजली का खर्च, साबुन कपड़ा धोने के लिए, बच्चों को पाकेट का खर्च, कर्जे की अदायगी, ताँगा खर्च।

अचानक व्यय-दैनिक स्थायी व्यय के अतिरिक्त कुछ ऐसी बातें भी है जिनमें मनुष्य को व्यय करना होता है। ये खर्चें अचानक मनुष्य पर टूट पड़ते हैं। यदि हमारे पास इस मद में रुपया न हो तो कर्जे की नौबत आ सकती है। इस मद में निम्न लिखित व्यय हैं-बीमारी, मेहमानदारी, अचानक कहीं जाना पड़े तब उस यात्रा का खर्च, कोई अन्य आपत्ति आ पड़े जैसे मुकदमेबाजी, किसी को कर्ज देना पड़े, या किसी की मृत्यु हो जाय, उसका व्यय, मकान गिर पड़े उसकी मरम्मत इत्यादि के लिए, घर में चोरी हो जाय उसके लिए व्यय। इसके अतिरिक्त जीवन की अनेक दुर्घटनाएँ हैं जिनके लिए आपको रुपये की जरूरत पड़ सकती है।

प्रासंगिक खर्च तथा बचत-तिथि त्यौहार, भोज, मानता, श्राद्ध, शादी-विवाह, दान, यात्राएं, उत्सव, धर्मदाय, आभूषण इत्यादि बनवाना।

अपनी आमदनी को इन तीनों विभागों में बाँट कर बचत करनी चाहिए जिसके पास बचा हुआ रुपया जमा नहीं है, वह कभी सुख की नींद नहीं सो सकेगा चाहे थोड़ी ही सही, बचत के मद में कुछ न कुछ अवश्य रखना बुद्धिमानी है। बचत को सदैव नकद रुपयों के रूप में ही रखना चाहिए। चाहे एक समय भूखे रहें, साधारण पोशाक और मकान में रहें किन्तु कुछ न कुछ अवश्य बचाकर अपने पास रक्खें।

संकट के समय में-संकट के समय में, ज्यों-ज्यों आमदनी कम हो त्यों-त्यों अपने खर्चे कम करने के लिए प्रस्तुत रहिये। अपनी आदतें बनाना आपके हाथ की बात है। अपनी कृत्रिम आवश्यकताओं, मनोरंजनों, आमोद-प्रमोद वासनाओं की तृप्ति, जिव्हा के स्वाद, फैशनपरस्ती, दान, यात्राएं कम आमदनी होने पर काट देने के लिये आपको तैयार रहना चाहिये।

सब से पहले अपने मनोरंजन कम कीजिये। किसी क्लब के मेम्बर हों, तो छोड़ दीजिये, सिनेमा जाना बन्द कर दीजिये, स्वाद के लिए चाट पकौड़ी, फल, सिगरेट, मद्य, पान, सुपारी, छोड़ दीजिये, फैशन में कमी कीजिये। यदि फिर भी बजट ठीक न बैठे तो फुटकर खर्चों को कम कीजिये, नौकर छुड़ा कर स्वयं घर का काम कीजिये। यदि घर के आस-पास कुछ जमीन है, तो शारीरिक परिश्रम से उसमें शाक−भाजी इत्यादि उगाइये। बच्चों को स्वयं पढ़ाइये। वस्त्र स्वयं धो लिया कीजिये। रोशनी में कमी कर सकते हैं। दिन में काम कर लीजिये। जल्दी सोना ओर जल्दी जगना स्वास्थ्यप्रद है।

यदि फिर भी खर्च कम न हों, तो मकान बदल कर सस्ता मकान लेना होगा। लेकिन मकान हवादार और स्वच्छ स्थान पर होना चाहिये। बीमार न पड़ना होगा। बीमारी बड़ी महंगी बैठ जायेगी। वस्त्रों तथा जूते को सावधानी से रख कर अधिक से अधिक चलाना होगा। जितना ही आर्थिक संकट होगा, उतना ही मर्यादित और मितव्ययी आपको बनना होगा। मितव्यय, आत्म संयम, इंद्रिय निग्रह के समान सुख देने वाला कोई गुण संसार में नहीं है।

बीमारियों में हमें अनापशनाप व्यय करना होता है। पास पैसा नहीं होता तो ऋण लेकर व्यय करना होता है। बीमार पड़ना अत्यन्त महंगा है। चीजें इतनी महंगी नहीं हैं, जितनी बीमारियाँ। अतः आपको अधिक से अधिक अपने स्वास्थ्य की देख रेख करनी होगी। संकट में सबसे पूर्व अपने स्वास्थ्य की चिंता कीजिये। यदि बीमार पड़ियेगा, तो आपकी सारी मितव्ययिता और बजट रक्खी रह जायेगी। बजट तभी कम रहेगा, जब आपके सब घर वाले स्वस्थ और प्रसन्न हों, आत्म निग्रह और संयम कर सकें। बीमारियों से सावधान रहिये।


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