देखने में छोटी पर महान् ।

January 1950

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विद्वानों ने अपने अनुभव के बल पर अनेक उक्तियाँ लिखी हैं। इनमें बड़े पते की बाते बतलाई गई हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इन उक्तियों को स्मरण रखना चाहिए। कुछ अच्छी उक्तियाँ देखिये-

ऋण लेने वाले का मनोविज्ञान :-

झूठा मीठे वचन कहि, ऋण उधार ले जाय।

लेत परम सुख ऊपजै, लेके दियो न जाय॥

लैके दियो न जाय, ऊँच अरु नीच बनावै।

ऋण उधार की नीत, माँगते मारन घावै॥

कह गिरिधर कविराय, जानि रह मन में रुठा।

बहुत दिना है जात, कहै तेरा कागज झूठा॥

माया की अस्थिरता-

दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान।

चंचल जल दिन चारि को, ठाउँ न रहत निदान॥

ठाउँ न रहत निदान, जियत जग में यश लीजै।

मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै॥

कह गिरिधर कविराय, अरे यह सब घट तौलत।

पाहुन निसि दिन चार, रहत सब ही के दौलत॥

बिना विचारे फजूलखर्ची से हानि-

बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।

काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय॥

जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।

खान-पान सम्मान, राग-रंग मनहि न भावै॥

कह गिरिधर कविराय, दुःख कछु टरत न टारे।

खटकत है जिय माहिं, कियो जो बिना बिचारे॥

थोड़ा जोड़ने से धनवान् बनना-

कौड़ी कौड़ी जोड़ि कै, निधन होत धनवान।

अक्षर अक्षर के पढ़े, मूरख होत सुजान॥

रुपये के बिना जीवन धारण कठिन हैं-

नीतिकार का वचन है-

विभुक्षितैः व्याकरणं न भुज्यते।

पिपासितैः काव्य रसो न पोयते॥

अर्थात् “भूखे व्यक्ति का व्याकरण के भोजन से काम नहीं चलता और न प्यासे की तृप्ति काव्य रस पीने से होती है।” इस युग में अर्थ के बिना जीवन धारण किये रहना कठिन है।

खाली बोरी सीधी खड़ी नहीं होती-

बोरी अन्न शक्कर आदि से भरी हुई होगी तो सीधी खड़ी रहेगी, पर जिस बोरी में कुछ नहीं है, वह धरती पर गिर पड़ेगी। उसी मनुष्य की नैतिकता स्थिर रह सकती है, जिसके पास जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक धन मौजूद है। जो भूखा है, अभाव ग्रस्त है, दीन दरिद्र है, वह कब तक धर्म पर स्थिर रहेगा? उचित कार्य के लिए पास में पैसा नहीं होता तो परमार्थ की वृत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं। और मनुष्य चोरी, बेईमानी, धोखेबाजी, रिश्वत की ओर झुकता चला जाता है। समाज में रह कर सम्मान सहित जीवन बिताने लायक धन न हो तो चित्त में आत्मग्लानि अपमान, हीनता, दीनता, दुर्भाग्य, चिंता, ईर्ष्या, घृणा के विकार जागते रहते हैं।

भूखा आदमी क्या पाप नहीं करता !

संस्कृत में एक कहावत बड़े काम की है-

“विभुक्षितः किं न करोति पापम्”-भूखा आदमी क्या पाप नहीं करता। अर्थात् “जब आदमी दरिद्र हो जाता है, उसको खाने पहनने को नहीं मिलता, तब वह चोरी, डाका, घूस, बेईमानी जिस तरह भी होता है, धन प्राप्त कर अपना काम चलता है।

छोटी वस्तुओं का महत्व-

जो व्यक्ति दुराग्रह से छोटी वस्तुओं को बरबाद करता है, उनका उचित उपयोग नहीं करता उसे कभी उनकी आवश्यकता के लिए दुःखी होना पड़ता है।


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