प्रजातंत्र का अन्त, भोग विलासी स्वभाव की प्रजा से हो जाता है।
-मानेस्की
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पाँडित्य के दर्प को छोड़ कर बच्चे की तरह सरल रहने वाला ही ब्राह्मण है।
-उपनिषद्
मनुष्य की सेवा करना ही मनुष्य जन्म की सार्थकता है।