(श्री विद्यावती मिश्र)
भगवान पतित मानव को इतना वर दो।
मानव का शुचि सम्मान अमर हो जावे,
मानव का शुचि उत्थान अमर हो जावे।
जो प्राप्त न हो पाया पीड़ित मानव को-
वह कल्पवृक्ष कल्याण अमर हो जावे।
निर्बलता का आधार सबल तुम कर दो।
भगवान पतित मानव को इतना वर दो॥
वह वैभव जिसमें हो न तनिक उजियाली,
विश्वास न जिसमें हो आशा मतवाली,
जो बिना छुये तम प्राची का छू लेती-
दे पाओ तो दे दो ऐसी वैकाली।
ऐसी गति, ऐसी संस्कृति जग में भर दो।
भगवान पतित मानव को इतना वर दो॥
शिव, सत्य, सुन्दरं लिये हुये हो माया,
अमरत्व लिये हो नर की नश्वर काया,
आहों की झंझा-बात रोक लेने को-
काँटे करते हैं वन-कुसुमों की छाया।
मेरे जीवन शशि से मृगाँक तुम हर दो।
भगवान पतित मानव को इतना वर दो॥