रुपये का यह नियम है कि पास रहने से व्यय करने को तबियत चाहती है, वासनाएँ भड़कती हैं। तबियत मचलती है अतः उसे उतना ही पास रखिये जिसकी नितान्त आवश्यकता हो। गरीबी से रहिये। बचे हुए रुपये को पोस्ट आफिस के सेविंग्स बैंक में रखिये।
उत्तम तो यह है कि मासिक वेतन का सभी रुपया प्रारम्भ में बैंक में डाल दिया जाये और प्रति सप्ताह हफ्ते के खर्च के लिए एक निश्चित रकम निकाल ली जाया करे। बीमारी, विपत्ति, वृद्धावस्था और विश्रान्ति के समय यह रुपया बड़ा काम देता है। घर खर्च मात्र के लिए रुपया हाथ में रख कर शेष को अवश्य बचाइये। बचा हुआ रुपया ही आपकी कमाई है। जो आया और गया, वह आपके लिए कुछ नहीं। जो रह गया, बच गया और आपके पास सुरक्षित है, वही आपका है।
यदि प्रतिमास 10 प्रतिशत जोड़ते रहें, प्रारम्भ ही में किसी ऐसी जगह डाल दें कि वहाँ से न निकले, तो आपको उतना रुपया बचाने की आदत पड़ जायगी। लोग लालच में आकर कुछ न कुछ अनावश्यक चीजें खरीद लेते हैं, मास के अन्त में हाथ में कुछ भी नहीं रहता, तो रोते पछताते हैं। वह स्थिति अत्यन्त दयनीय है। बचत का विधान तो प्रारम्भ ही में हो जाना उचित है। बचत भी एक प्रकार का खर्च ही है। यदि आप मासिक खर्च के खाते में ही उसे डाल लें, तो रुपया अवश्य बचेगा जो आदमी कुछ नहीं बचाता सब खर्च देता है, वह बड़ा पाप करता है। वह अनिश्चित भविष्य के लिए कुछ भी नहीं कर रहा है। यदि आमदनी कम है, तो कोई हर्ज नहीं। अपनी आमदनी कम है, तो अपनी आवश्यकताओं को कम कर दीजिये पर कुछ न कुछ बचना अवश्य चाहिये।
पोस्ट आफिस सेविंग्स बैंक-
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी स्थिति के विचार से बचे हुए रुपये को रखने का प्रबन्ध करना चाहिए। किसी महाजन, संस्था, या व्यापारी के पास रुपया रखना खतरनाक हो सकता है। वे समय पर आपको कुछ भी न दे सकेंगे। अतः बैंक सबसे उत्तम है। छोटी बचत को डाकखाने सेविंग्स बैंक में रखना उचित है। सरकार इस रुपये की जिम्मेदारी लेती है, जमा करने और निकालने की सुविधा रहती है, मरने पर मनुष्य के कुटुम्ब वालों को तुरन्त रुपया प्राप्त हो सकता है, सेविंग्स बैंक में जो रुपया रहेगा, उसे गुप्त रक्खा जाता है, कोई जानने नहीं पाता।
बीमा पॉलिसी :-
जो व्यक्ति प्रतिमास रु. से ऊपर बचा कसते हैं, उनके लिए जीवन का बीमा कराना श्रेष्ठ उपाय है। इसमें हमें निश्चित रूप से कुछ न कुछ देना होता है अन्यथा सब रुपये के डूबने का भय होता है। मरने पर निश्चित अवधि पूर्ण होने पर पूरा रुपया मिल जाता है। बाल बच्चों और पत्नी के लिए यह बड़े काम की चीज है।
कंपनी के चुनाव में स्वामित्व, प्राचीनता, पूँजी, और व्यवस्था के विषय में जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। यद्यपि रुपया लगा कर एक दम बीमे से कोई लाभ नहीं होता, आगे चल कर बुढ़ापे में, और मृत्यु के पश्चात् बच्चों और पत्नी को इस रुपये से बड़ा लाभ होता है। बीमा करा लेने से रुपया एकत्र हो जाता है। बैंक तथा अन्य महकमें के बाबुओं, छोटे व्यापारियों को बीमा अवश्य कराना चाहिए।
बैंक में रुपया रखिये :-
ऊपर सरकारी पोस्ट ऑफिस में रुपया रखने की सलाह दी गई है। बड़ी रकम के लिए आपको किसी बड़े बैंक की तलाश करनी होगी। बैंक कभी-कभी फेल हो जाता है। इसलिए अपना रुपया अच्छी बैंक देख कर ही रखना चाहिए। अच्छी बैंकें सूद कुछ कम देती हैं पर रुपया सुरक्षित रहता है। बैंक में रक्खा हुआ रुपया निकालना न चाहिये। इन्द्रिय निग्रह जितना अधिक हो सके करना चाहिये। जितने अधिक खाने वाले हों, उतनी ही अधिक सावधानी की आवश्यकता है। अधिक से अधिक रुपया जमा करने की आदत से मनुष्य विलासिता, नाच, सिनेमा, मिठाइयों, शौकीनी और फिजूल की कृत्रिम आवश्यकताओं से बचा रहता है।
कंपनियों के शेयर खरीदना-
शेयर खरीदना अच्छा है, पर इसमें अपटूडेट ज्ञान, सतर्कता और कुशलता की नितान्त आवश्यकता है। कौन सी कम्पनी के शेयर आप ले रहे हैं, इसके विषय में खूब जाँच पड़ताल कर लेनी चाहिए। साधारण कम्पनियों के शेयर का भाव गिरते ही रुपया डूब जाता है। कम्पनियों के एजेन्ट शेयर बेचते समय बड़े सब्ज बाग दिखलाते हैं पर उनके फन्दे में न आना चाहिए। भारी लाभ के बदले थोड़े लाभ से भी वंचित क्यों होते हैं? अधिक ब्याज का लालच करना मानों पूँजी को भी डुबोना है।
साहूकारी-
दूसरों को रुपया उधार देने में, या ब्याज पर गहना गिरवी रखने में कई बातों का ध्यान रखिये। कही माल खोटा न हो, किसी का चुराया हुआ न हो, या कम मूल्य का न हो। इस प्रकार के स्वतन्त्र व्यवसाय में खतरा बहुत है। जिन्हें आप रुपया उधार देते हैं, वे रुपया मार लेने की फिराक में होते हैं। यदि काफी सिक्योरिटी न हुई तो या तो रुपया मारा जायगा, या मुकदमेबाजी करनी पड़ेगी। मानसिक अशान्ति का अलग शिकार होना पड़ेगा। अक्सर डाकू लोग साहूकारों के यहाँ ही डाका मारते हैं।
आभूषण बनवाना-
आभूषणों में कुछ रुपया अवश्य बच जाता है किन्तु उनकी रक्षा के लिए मनुष्य को बड़ी फिक्र रखनी पड़ती है। जो लोग पैसे को किसी प्रकार नहीं बचा सकते, उन्हें थोड़ी-2 बचत कर आभूषणों के रूप में कुछ द्रव्य अपने पास रखना चाहिये। आभूषण में निम्न हानियाँ हैं। (1) सुनार खोट कर देता है और सोना बिगाड़ डालता है (2) व्यवहार में लाने में बोझ कम होता जाता है (3) बाजार में बेचने में पैसा कम मिलता है। (4) जो पैसा आभूषणों में लगता है वह कम होता जाता है। इसके विपरीत व्यापार में या बैंक में कुछ सूद मिलता है (5) हिन्दू स्त्रियों को आभूषणों के कारण पराये व्यक्तियों द्वारा बेइज्जत होना पड़ता है। बच्चे चुरा लिये जाते हैं। चोर डाकुओं और गुँडों का भय बना रहता है। (6) गहने प्रायः स्त्रियों की असावधानी से खो जाते हैं।
अन्य साधन
शेयर, जमीन मोल ले लेना, मकान खरीदना, सरकारी कागज, बैंक का ‘फिक्सड डिपॉजिट, चीजों को गिरवी रखना इत्यादि रुपये को अटकाये रखने के अनेक उपाय हैं। जिनके पास आवश्यकता से बहुत अधिक धन है, उन्हें समझदारी से इनमें व्यय करना चाहिये। इनमें लगा हुआ रुपया अटका रहता है। यकायक आवश्यकता पड़ने पर नहीं मिल पाता। चतुर व्यक्ति को डाकखाना सेविग्सं बैंक में (400-500) रुपये तैयार सदैव रखने चाहिये। बीमारी मृत्यु, यात्रा, विवाह, भोज-इत्यादि के समय डाकखाने की संचित सामग्री ही काम आती है, वृद्धावस्था में बीमा पॉलिसी की रकम एक बड़ा सहारा होती है। सर्व साधारण को इन दो उपायों से लाभ उठाना चाहिये।