परिवार की आर्थिक सुव्यवस्था।

January 1950

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वह व्यक्ति धन्य है जिसकी आवश्यकताएँ परिमित हैं और उपभोग के लिए उसे अपना अधिक समय नष्ट नहीं करना पड़ता। उसका अधिक समय अध्ययन, चिंतन, उच्च विषयों के ध्यान तथा दूसरों की सहायता में व्यतीत होता है।

वह गृहस्थ धन्य है, जिसके यहाँ फैशन नहीं, झूठा दिखावा, थोथी टीपटाप, या फिजूलखर्ची नहीं। जहाँ प्रत्येक पैसे का उचित उपयोग होता है और पति-पत्नी बन्धु-बान्धव सभी उसमें सहयोग प्रदान करते हैं। पति कमा कर लाता है, पत्नी घर की दैनिक वस्तुओं का संग्रह, सदुपयोग, ओर वर्गीकरण करती है, सामान को नष्ट होने से बचाती है और पुत्र घर का हिसाब-किताब रखता है। यह हिसाब प्रत्येक मास खातों में डाला जाता है और फिर यह मालूम किया जाता है कि किस मद में कितना रुपया व्यय हुआ? कितना अधिक हुआ? उसका क्या कारण है? भविष्य में किस प्रकार व्यय रोका जा सकता है? मास के अन्त में जो आर्थिक कठिनाई हुई, उससे कैसे मुक्त हो सकते हैं?

जिसे आर्थिक सामर्थ्य का ज्ञान है, जो अपनी चादर देख कर पाँव फैलाता है, वह अधिक काल तक जीवित रहता है, और आन्तरिक शान्ति का उपभोग करता है।

नियंत्रण करना सीखिये। कुछ लोग कहा करते हैं कि हमें अपने आप पर नियंत्रण नहीं होता। इसका कारण यह है कि वे कृत्रिम या विलासिता की आवश्यकताओं की पूर्ति में लगे हैं। उन्होंने अपनी आदतें इतनी अधिक बढ़ा ली हैं कि उस आमदनी में उनका गुजारा नहीं होता। यदि आदमी अपने विवेक को जागृत करें और गंभीरता से सोचे कि मैं किन-किन खर्चों से बच सकता हूँ। कौन सी विलासिताओं में डूबा हुआ हूँ? तो वह नियंत्रण में सफल हो सकता है। नियंत्रण में प्रारम्भ में कुछ कठिनाई अवश्य होती है, किन्तु ज्यों-ज्यों विवेक बुद्धि और दुनियादारी जागृत होती है, त्यों-त्यों वह शक्ति, धन और जीवन, परहित साधन में लगाता है। अपव्यय से मुक्ति पाने का अमोघ उपाय एक मात्र विवेक जनित नियंत्रण है।

क्षणिक भोग विलास की पूर्ति के लिए, जिह्वा की तृप्ति के लिए, मिथ्या गौरव के प्रदर्शन के लिए कभी कर्ज न लीजिये। आप भारतीय हैं, भारतीय जनता सादगी पसन्द तथा निर्धन है। शादी, गर्मी, या नुकता-इत्यादि में अपव्यय हमारी मूर्खता का परिचायक है। चाहे आप जितना भी बढ़ चढ़ कर विवाह कीजिये। समय के प्रवाह के साथ जनता सब कुछ विस्मृत कर देती है। विवाह में जो कर्ज लेते हैं, वह तो पर्वत के समान हमारे ऊपर बोझ डालता रहता है, विवाहित जोड़ा सब कुछ विस्मृत कर देता है। घर का मकान तक बिक जाता है।

आभूषणों से सावधान । गृहणी का सच्चा आभूषण है उसका स्वास्थ्य, पारस्परिक प्रेम, सद्भावनाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य, योग्यता। वह युग गया जिसमें आभूषणों द्वारा ही बड़प्पन प्रतीत होता था।

क्या आपके घर में जूठन छोड़ी जाती है? क्या प्रत्येक थाली में दाल सब्जी छोड़ी जाती है? खाद्य पदार्थ चूहों के लिए खुले पड़े रहते हैं? भोग पदार्थ घर पर आने वाले अनेक फकीरनुमा आलसी व्यक्तियों को दिया जाता है? क्या आपके घर बासी रोटी रखने और उसे कुत्ते बिल्लियाँ को देने की प्रथा है? यदि ऐसा है, तो तुरन्त आपको गरीबी और तंगी के लिए तैयार हो जाना चाहिए। जो व्यक्ति रोटी का एक टुकड़ा भी फेंकता है, वह गरीब जनता के रक्त से अर्जित अनाज-राशि को नष्ट करता है। वह महापापी है।

धन को गाड़ कर रखना भी एक प्रकार से अपव्यय है। यदि धन है, तो उसका उचित उपयोग कीजिये। यदि आप बैंक में रखते हैं, तो एक तो वह सार्वजनिक काम में आता है दूसरे आपको उस पर ब्याज मिलता है। आपके हाथ से रुपया दूर रहने के कारण आप पर नियंत्रण रहता है।

वस्तुओं के उपभोग के सम्बन्ध में साधारणतः सरकार द्वारा नियंत्रण होना चाहिए। दाल, आटा, शक्कर, दियासलाई, मिट्टी का तेल इन सभी को प्रत्येक नागरिक को नाप-तोल कर मिलना चाहिए। इससे मनुष्यों को नियंत्रण की आदत सिखाई जा सकती है। मादक वस्तुओं पर तो इतना कड़ा नियंत्रण होना चाहिए कि कोई उसे बिना लाइसेंस के खरीद ही न सके।

मादक द्रव्यों-बीड़ी सिगरेट, चाय, तम्बाकू शराब, गाँजा, भाँग, चरस, अफीम-में आप जो रुपया व्यय करते हैं, उससे व्यक्तिगत हानि तो होती ही है, घर वालों पर भी दूषित प्रभाव पड़ता है। जिस रुपये का उपयोग-रोटी, दाल, सब्जी, दूध या अन्य पौष्टिक पदार्थों के खरीदने में होता, वह एक व्यक्ति की नशीली आदत में स्वाहा हो जाता है। मादक द्रव्यों की कीमत तथा उसका टैक्स इतना अधिक होना चाहिए कि साधारण व्यक्ति उधर जाने की कल्पना ही न करे।

आपके घर का रुपया व्यर्थ मादक द्रव्यों में तो बरबाद नहीं होता? कौन सिगरेट पान, इत्यादि लेते हैं? कहीं आपके पुत्र चुपचाप आप से छुप कर तो सिगरेट का प्रयोग नहीं करते? इन सभी प्रश्नों पर खूब सोचिये अपने आपको शैतान की इस माया से दूर रखिये।

फिजूल खर्च व्यक्ति सारे समाज को दूषित करता है। उसकी देखा-देखी साधारण आय वाले भी उसका अनुकरण करते हैं। कर्ज में फंस कर सब कुछ नष्ट कर देते हैं।

हिन्दु धर्म कहता है-“तुम अपनी जीवन यात्रा के लिए आवश्यक वस्तुओं का उपयोग करो। व्यक्तिगत सुखवाद अनर्थ की जड़ है। अनुचित, अप्राकृतिक, कृत्रिम विलासप्रियता से बचो। मर्यादा का ध्यान रक्खो। विलास प्रिय न बनो, उपयोग में त्याग भाव रक्खो, दूसरों के हित की अवहेलना न करो, किसी दूसरे के हिस्से की वस्तु के उपभोग की लालसा न करते हुए, केवल अपनी मर्यादा के भीतर रह कर ही संतुष्ट रहना सुखी रहने का उपाय है।” हमारे पुराने धर्म में संयम, नियंत्रण, और आत्म त्याग का बड़ा महत्व है। हम “खाओ, पीओ, मौज उड़ाओ”-वाले आदर्शों से सर्वथा दूर रहते आये हैं।

अपने ऊपर ही सबको आश्रित न रखिये वरन् घर के प्रत्येक व्यक्ति को कमाने योग्य अपने पावों पर खड़ा होने योग्य बनाने में सतत प्रयत्नशील रहिए। स्त्रियों की शिक्षा भी आवश्यक है। उन्हें औद्योगिक शिक्षा दीजिए। कताई, बुनाई, स्वेटर मोजे बुनना, काढ़ना, कपड़े सीना, चित्रकला, संगीत, अध्यापिका, नर्स, डॉक्टर के कार्य सिखाकर आपके योग्य कमा सकने लायक बना दीजिए। श्रीमती हीरादेवी ने लिखा है-“निम्न वर्ग की बहिनें खाली समय में कागज या मिट्टी के खिलौने बनाना, उन पर रंग करना, चीनी की रेवड़ियां बनाना रस्सी बटना आदि का काम कर सकती हैं। कुछ काम ऐसे हैं जो खाली समय में सभी वर्गों की बहिनें सरलता से कर सकती हैं-जैसे बरतनों पर कलई करना, तस्वीरों पर फ्रेम लगाना, किताबों की जिल्दसाजी करना, रुचि के अनुसार पापड़ और अचार घड़िया बनाना। रुचि और समय के अनुसार यदि हमारी बहिनें इनमें से कोई भी काम अपने फालतू समय में करने लगें, तो मुझे विश्वास है कि वे अपने परिवार को न केवल खर्च कम करने में सहायक होंगी, बल्कि पारिवारिक सुख में भी चार चाँद लगा सकेंगी।” शरणार्थी भाइयों के लिए जो महिला उद्योग शालाएँ खोली जा रही हैं, उनमें भी अनेक शिक्षित और परिश्रमी महिलाएँ कार्य कर सकती हैं।

प्रतिदिन एक ही प्रकार का कार्य करते रहने से जीवन में नीरसता आ जाती है। इससे कार्य कुशलता का ह्रास होता है। अतः चतुर गृहस्थ को भिन्न भिन्न प्रकार से धन प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।

जहाँ तक हो सके संतान निग्रह कीजिए। घर के कुटुम्बियों की संख्या न बढ़ने दीजिए। संयम, ब्रह्मचर्य इत्यादि इसके अमोघ उपाय है। अधिक कुटुम्बी होने से कुछ थोड़ी ऊँची योग्यता वाले व्यक्तियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, उन्नति, में बाधा पड़ती है।


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