खर्च की कमी कैसे पड़ जाती है?

January 1950

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आप 100 रु॰ मासिक कमाते हैं, पास पड़ोस वाले आपको आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न समझते हैं, आपके हाथ में रुपये आते जाते हैं, किन्तु आपको यह देख कर अत्यन्त दुःख होता है कि आपका वेतन महीने की 20 तारीख को ही समाप्त हो जाता है। अन्तिम दस दिन खींच तान, कर्ज, तंगी और कठिनाई से कटते हैं। आप बाजार से उधार लाते हैं, जीवन-रक्षा के पदार्थ भी आप नहीं खरीद पाते। आपके नौकर, बच्चे, पत्नी आपसे पैसे माँगते हैं, बाजार वाले तगादे भेजते हैं आप किसी प्रकार अपना मुँह छिपाये टालमटोल करते रहते हैं और बड़ी उत्सुकता से महीने की पहली तारीख की प्रतीक्षा करते हैं। वर्ष के बारहों महीने यह क्रम चलता है। कुछ बचत नहीं होती वृद्धावस्था में दूसरों के आश्रित रहते हैं, बच्चों के विवाह तक नहीं कर पाते, पुत्रों को उच्चशिक्षा या अपनी महत्वाकाँक्षाएं पूर्ण नहीं कर पाते। लेकिन क्यों?

अपव्यय और आदत के गुलाम-

कभी आपने सोचा है कि आपका वेतन क्यों 20 तारीख को समाप्त हो जाता है? आप असंतुष्ट झुँझलाये से क्यों रहते हैं?

अच्छा अपने घर के समीप वाली जो पान सिगरेट की दुकान है, उसका बिल लीजिये। महीने में कितने रुपये आप पान सिगरेट में व्यय करते हैं? प्रतिदिन कम से कम से कम 6 सिगरेट और दो चार पान आप प्रयोग में लेते हैं। बढ़िया सिगरेट या बीड़ी माचिस आपकी जेब में पड़ी रहती हैं। यदि चार पाँच आने रोज भी आपने इसमें व्यय किये तो महीने के आठ दस रुपये सिगरेट में फुँक गये। सिगरेट वाले का यह तो न्यूनतम व्यय है। प्रायः होता यह 14 से 20 रुपये प्रतिमास तक है।

चाट पकौड़ी चाय वाला, काफी हाऊस, रेस्तराँ, चुसकी, शरबत, सोडा आइसक्रीम, लाइटरिफ्रे शमेन्ट वालो से पूछिये कि वे आपकी कमाई का कितना हिस्सा ले लेते हैं? यदि अकेले गये तो ॥) या ॥।) आने अन्यथा 1)-1।) का बिल मित्रों के साथ जाने पर बन जाता है। एक प्याली चाय ( या अप्रत्यक्ष विष?) खरीद कर आप अपने पसीने की कमाई व्यर्थ गंवाते हैं। चुसकी, शरबत, सोडा क्षण भर की चटोरी आदतों की तृप्ति करते हैं। इच्छा फिर भी अतृप्त रहती है। मिठाई से न ताकत आती है, न कोई स्थायी लाभ होता है, उलटे पेट में भारी विकार उत्पन्न होते हैं।

घृणित आदतें-

सिनेमा हाउस का टिकट बेचने वाला और गेट कीपर आपको पहचानता है। आपको देख कर वह मुस्करा उठता है? हँस कर दो बातें करता है। फिल्म अभिनेत्रियों की तारीफ के पुल बाँध देते हैं। आप यह फिल्म देखते हैं, साथ ही दूसरे का नमूना देख कर दूसरी को देखने के बीज मन में ले आते हैं। एक के पश्चात् दूसरी फिर तीसरी फिल्म को देखने की धुन सवार रहती है। और रुपया व्यय कर, आप सिनेमा से लाते हैं वासनाओं का ताँडव, कुत्सित कल्पना के वासनामय चित्र, गन्दे गीत, रोमांटिक भावनाएँ, शरारत से भरी आदतें। साथ ही अपनी नेत्र ज्योति भी बरबाद करते हैं। गुप्त रूप से वासनापूर्ति के नाना उपाय सोचते, दिमागी ऐयाशी करते और रोग ग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। काम रूपी शेर हमारा शोषण कर लेता है। भगवान् ने कहा है-“नरक के तीन प्रचण्ड महाद्वार रात दिन खुले हुए हैं। सबसे पहला द्वार काम का है, जिसमें कि विषय वासनाओं के गुलाम बलात् खींचे और ठूंसे जाते हैं।” सिनेमा ही वह प्रथम द्वार है। महीने में 14 से 20 रु॰ हम खुशी खुशी सिनेमा में भेंट करते हैं और सिनेमा सम्बन्धी सस्ती, बेकार, अश्लील पत्रिकाएँ खरीदते हैं।

बीमारियों में आप मास में 8 से 10 रु. व्यय करते हैं, किसी को बुखार है, तो किसी को खाँसी, जुकाम, सरदर्द, या टाँसिल। पत्नी प्रदर या मासिकधर्म के रोगों से दुःखी है। आप स्वयं कब्ज या अन्य किसी गुप्त रोग के शिकार हैं, तब तो कहने की बात ही क्या है। कभी इन्जेक्शन, तो कभी किसी को ताकत की दवाई चलती ही रहती है। कुछ बीमारियों ऐसी भी हैं जिन्हें आपने स्वयं पाल पोस कर बड़ा किया है। आप दाँत साफ नहीं करते, फिर आये दिन नये दाँत लगवाते या उन्हीं का इलाज कराया करते हैं। दंत डॉक्टर आपकी लापरवाही और आलस्य पर पलते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि आपके शहर में दवाइयों की इतनी दुकानें क्यों बढ़ती चली जा रही हैं? मुहल्ले-मुहल्ले में डॉक्टर, वैद्यराज, हकीम ओर गुप्तरोगों को ठीक करने वाले संख्या में निरन्तर बढ़ रहे हैं। अधर्मी अपना पैसा रोगों के शिकार होकर इन्हें देते हैं और पालते हैं।

विवाह, झूठा दिखावा, धनी पड़ोसी का प्रतियोगिता, सैर सपाटा, यात्राएँ, उत्सवों, दान इत्यादि में आप प्रायः इतना व्यय कर डालते हैं कि कई महीनों तक सम्भल नहीं पाते। पत्नी ने गहने, साड़ी या किसी अन्य कीमती चीज की जिद की, तो आप अपनी जेब देखने के स्थान पर केवल उसे प्रसन्न करने मात्र के लिए तुरन्त कुछ भी शौक की चीज खरीद लेते हैं। हमने स्वयं अपने एक मित्र को अपनी पत्नी के लिए एक कीमती घड़ी खरीद कर देते हुए देखा जब कि पत्नी घड़ी देखना भी ठीक तरह न जानती थीं। फाउन्टेन पेन प्रायः इतने कीमती खरीदे जाते हैं, जो आभूषण की भाँति सम्भाल कर रखने पड़ते है। फिर भी भय बना रहता है कि कोई उचाट न ले, या गिर न जाय। प्रेमचन्द जी ने अपने उपन्यास ‘गबन’ में एक ऐसे पति का वृत्तान्त लिखा है जिसने पत्नी से अपनी असली हालत छुपाये रक्खी और अन्त में बड़े कष्ट झेले। उसके आभूषण बनाने के लिए सरकारी रुपया गबन किया। अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण न रखने और प्रलोभनों द्वारा परास्त हो जाने से प्रायः हम अपना दिवाला निकाल लेते हैं।

आप दिन में एक रुपया कमाते हैं, पर भोजन, वस्त्र या मकान अच्छे से अच्छा रखना चाहते है। फैशन में भी अन्तर नहीं करते, आराम और विलासिता की वस्तुएँ-क्रीम, पाउडर, शेविंग, सिनेमा, रेशमी कपड़ा, सूट-बूट, सुगंधित तेल, सिगरेट भी कम करना नहीं चाहते। फिर बताइये कर्जदार क्यों कर न बनें?

आपका धोबी महीने में 10 रु॰ आपसे कमा लेता है। आप दो दिन तक एक धुली हुई कमीज नहीं पहनते। पैन्ट की क्रीज, रंग, एक दिन में खराब कर डालते हैं, हर सप्ताह हेयर कटिंग के लिए जाते हैं, प्रतिदिन जूते पर पालिश करते हैं, बिजली के पंखे और रेडियो के बिना आपका काम नहीं चलता। पैसे पास नहीं, फिर भी आप अखबार खरीदते हैं, मित्रों को घर पर बुलाकर कुछ न कुछ चटाया करते हैं। रिक्शा, ट्राम, साइकिल की सवारी में आपके काफी रुपये नष्ट होते हैं।

तीन बातें ऐसी हैं, जिन्होंने सबसे अधिक आदमियों को गरीब और कर्जदार बनाया है। इन तीनों के द्वारा ग्रसित व्यक्ति कभी नहीं पनपता। ये हैं-नशेबाजी व्यभिचार, और मुकदमेबाजी। सावधान ।

हमारी कृत्रिम आवश्यकताएँ-

ज्यों-ज्यों आपकी आवश्यकताएँ बढ़ेंगी, त्यों-त्यों आपको खर्च की तंगी का अनुभव होगा। आजकल कृत्रिम आवश्यकताएँ वृद्धि पर हैं। ऐश, आराम, दिखावट, मिथ्या गर्व प्रदर्शन, विलासिता, शौक, मेले, तमाशे फैशन, मादक द्रव्यों पर फिजूलखर्ची खूब की जा रही है। ये सब क्षणिक आनन्द की वस्तुएँ हैं। कृत्रिम आवश्यकताएं हमें गुलाम बनाती हैं। इन्हीं के कारण हम महंगाई और तंगी अनुभव करते हैं। चूँकि कृत्रिम आवश्यकताओं में हम अधिकाँश आमदनी व्यय कर देते हैं, हमें जीवन रक्षक और आवश्यक पदार्थ खरीदते हुए महंगाई प्रतीत होती है। साधारण, सरल और स्वस्थ जीवन के लिए निपुणता-दायक पदार्थ अपेक्षाकृत अब भी सस्ते हैं। जीवन रक्षा के पदार्थ-अन्न, वस्त्र, मकान, इत्यादि साधारण दर्जे के भी हो सकते हैं। मजे में आप निर्वाह कर सकते हैं। अतः जैसे-जैसे जीवन रक्षक पदार्थों का मूल्य बढ़ता जाये, वैसे-वैसे आपको विलासिता और ऐशो-आराम की वस्तुएं त्यागते रहना चाहिए। आप केवल आवश्यक पदार्थों पर दृष्टि रखिये, वे चाहे जिस मूल्य पर मिलें खरीदिये किन्तु विलासिता और फिजूलखर्ची से बचिये। बनावटी, अस्वाभाविक रूप से दूसरों को भ्रम में डालने के लिए या आकर्षण में फंसाने के लिए जो मायाचार चल रहा है, उसे त्याग दीजिये। भड़कीली पोशाक के दम से मुक्ति पाकर आप सज्जन कहलायेंगे।

उपभोग की वस्तुओं का वर्गीकरण-

आप पूछेंगे कि आवश्यकताओं, आराम की वस्तुओं और विलासिता की चीजों में क्या अन्तर है? मनुष्य को सबसे मूल्यवान उसका शरीर लगता है। शरीर में उसका सम्पूर्ण कुटुम्ब भी सम्मिलित है। वह अपना और अपने परिवार का शरीर (स्वास्थ और अधिकतम सुख) बनाये रखने की फिक्र में है। उपभोग के आवश्यक पदार्थ वे हैं, जो शरीर और स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं। ये ही मनुष्य के लिए महत्व के हैं।

(1)-जीवन रक्षक पदार्थों के अंतर्गत तीन चीजें प्रमुख है-(1) भोजन (2) वस्त्र (3) मकान। भोजन मिले, शरीर ढकने के लिए वस्त्र हो और सर्दी गर्मी बरसात से रक्षा के निमित्त मकान हो। यह वस्तुएं ठीक हैं, तो जीवन रक्षा और निर्वाह चलता रहता है। जीवन की रक्षा के लिए ये वस्तुएं अनिवार्य हैं।

यदि इन्हीं पदार्थों की किस्म अच्छी है तो शरीर रक्षा के साथ-साथ निपुणता भी प्राप्त होगी। कार्य शक्ति, स्फूर्ति बल और उत्साह में वृद्धि होगी, शरीर निरोग रहेगा और मनुष्य दीर्घजीवी रहेगा। ये निपुणता दायक पदार्थ क्या हैं? अच्छा पौष्टिक भोजन जिसमें अन्न फल, दूध, तरकारियाँ, घृत, इत्यादि प्रचुर मात्रा में हों, टिकाऊ वस्त्र, जो सर्दी से रक्षा कर सकें, हवादार स्वस्थ वातावरण में खड़ा हुआ मकान जो शरीर को धूप, हवा, जल इत्यादि प्रदान कर सके। प्रथम श्रेणी के अंतर्गत साधारण भोजन करने फटा पुराना वस्त्र पहनने तथा टूटी फूटी झोंपड़ी में रहने से भी मनुष्य जीवित तो रह सकेगा, पर उसमें कुशलता, स्फूर्ति, ताजगी, तन्दुरुस्ती न आ सकेगी। संभव है सब तत्व न मिलने के कारण शरीर रोगी और निर्बल हो जावे, कार्य शक्ति क्षीण हो जावे, शरीर का पूर्ण विकास न हो। इसीलिए यह निपुणता दायक वस्तुएं आवश्यक हैं।

आराम की वस्तुएँ-

यदि आपकी आमदनी इतनी है कि निपुणता दायक चीज (अच्छा अन्न, घी, दूध, फल हवादार मकान, स्वच्छ वस्त्र, कुछ मनोरंजन) खरीद सकते हैं, तो आराम की चीजों को अवश्य लीजिये। इनसे आप की कार्य-कुशलता तो बढ़ेगी, पर उस अनुपात में नहीं जिस अनुपात में आप खर्च करते हैं।

आराम की वस्तुएं ये हैं-कोट, बूट, साइकिल, घड़ी, फाउन्टेन पेन, पक्का मकान, कुर्सियाँ मेज-बढ़िया बिछौने, पुस्तकालय, अधिक घी और दूध, कभी-कभी मिठाई, तेल मालिश, अखबार, धोबी की सेवाएँ, छोटे नौकर जैसे बरतन साफ करने वाली महरी, पानी भरने वाला कहार, मेहतर इत्यादि। घर में गाय, भैंस, बकरी पालना, बगीचा लगाना, मनोरंजन के साधारण सामान। यदि कोई घर रेडियो खरीद सकता है, तो इसमें वह भी सम्मिलित किया जा सकता है। कुछ आवश्यक पुस्तकें, बच्चों के लिए मास्टरों की ट्यूशन, छोटी-2 पिकनिक या बाहर की वार्षिक यात्रा, घर को सजाने का मामूली सामान। जन्मोत्सव तथा विवाह में साधारण व्यय।

उपरोक्त वस्तुओं से शरीर को सुख और आराम तो मिलता ही है किन्तु निपुणता भी बढ़ जाती है। लेकिन जितना खर्च इन पर होता है, उस अनुपात में कार्य कुशलता नहीं बढ़ती है।

विलासिता की वस्तुएँ-

इनसे खर्च की अपेक्षा निपुणता और कार्य कुशलता कम प्राप्त होती है। कभी-2 कार्य कुशलता का ह्रास तक हो जाता है। मनुष्य आलसी और विलासी बन जाता है, काम नहीं करना चाहता। रुपया बहुत खर्च होता है, लाभ न्यून मिलता है।

इस श्रेणी में ये वस्तुएं हैं-आलीशान कोठियाँ, रेशम या जरी के बढ़िया कीमती भड़कीले वस्त्र, मिष्ठान मेवे, चाट पकौड़ी शराब, चाय, तरह-2 के आचार मुरब्बे, माँस भक्षण, फैशनेबल चीजें, मोटर, तम्बाकू, पान, गहने, जन्मोत्सव और विवाह में अनाप शनाप व्यय, रोज दिन में दो बार बदले जाने वाले कपड़े, साड़ियाँ, अत्यधिक सजावट, नौकर चाकर, मनोरंजन के कीमती सामान, घोड़ागाड़ी, बढ़िया फाउन्टेन पेन, सोने की घड़ियाँ, होटल रेस्तराँ में खाना, सिनेमा, सिगरेट, पान, वेश्यागमन, नाच रंग, व्यभिचार, शृंगारिक पुस्तकें, कीमती सिनेमा की पत्र पत्रिकाएं, तस्वीरें अपनी हैसियत से अधिक दान, हवा खोरी, सफर, यात्राएँ, बढ़िया रेडियो, भड़कीली पोशाक, क्रीम, पाउडर, इत्र आदि ।

उपरोक्त वस्तुएं जीवन रक्षा या कार्य कुशलता के लिए आवश्यक नहीं है किन्तु रुपये की अधिकता से आदत पड़ जाने से आदमी अनाप शनाप व्यय करता है और इन की भी जरूरत अनुभव करने लगता है। इन्हीं वस्तुओं पर सब से अधिक टैक्स लगते हैं कीमत भी बढ़ती है। ये कृत्रिम आवश्यकताओं से पनपते हैं। इनसे सावधान रहिये।

हम देखते हैं कि लोग विवाह, शादी, त्यौहार, उत्सव, प्रीतिभोज आदि के अवसर पर दूसरे लोगों के सामने अपनी हैसियत प्रकट करने के लिए अन्धाधुन्ध व्यय करते हैं। भूखों मरने वाले लोग भी कर्ज लेकर अपना प्रदर्शन इस धूम-धाम से करते हैं मानों कोई बड़े भारी अमीर हो। इस धूम-धाम में उन्हें अपनी नाक उठती हुई और न करने में कटती हुई दिखाई पड़ती है।

भारत में गरीबी है, पर गरीबी से कहीं अधिक मूढ़ता, अन्धविश्वास, रूढ़िवादिता, मिथ्या प्रदर्शन, घमंड, धर्म का तोड़ मरोड़ दिखावा और अशिक्षा है। हमारे देशवासियों की औसत आय तीन चार आने प्रतिदिन से अधिक नहीं। इसी में हमें भोजन, वस्त्र, मकान, तथा विवाह शादियों के लिए बचत करनी होती है। पैसे की कमी के कारण हमारे देशवासी मुश्किल से दूध, घी, फल, इत्यादि खा सकते हैं। अधिक संख्या में तो वे स्वच्छ मकानों में भी नहीं रह पाते, अच्छे वस्त्र प्राप्त नहीं कर पाते, बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दिला पाते, बीमारी में उच्च प्रकार की चिकित्सा नहीं करा सकते, यात्रा, अध्ययन, मनोरंजनों के साधनों से वंचित रह जाते हैं। फिर भी शोक का विषय है कि वे विवाह के अवसर पर सब कुछ भूल जाते हैं, मृतक भोज कर्ज लेकर करते हैं, मुकदमेबाजी में हजारों रुपया फूंक देते हैं। इस उपक्रम के लिए उन्हें वर्षों पेट काट कर एक एक कौड़ी जोड़नी पड़ती है, कर्ज लेना पड़ता है, या और कोई अनीति मूलक पेशा करना पड़ता है।

आमतौर पर मध्यम वर्ग के खोखले व्यक्ति झूठमूठ अमीरी का नाटक किया करते हैं। अहंकार का यह स्वरूप नितान्त अनुचित है।


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