आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत।

January 1950

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आप आर्थिक रूप से सफल होना चाहते हैं, तो समृद्धि के विचारों को बहुतायत से मनोमंदिर में प्रविष्ट होने दीजिये। यह मत समझिये कि आपका सरोकार दरिद्रता, क्षुद्रता, नीचता से है। संसार में यदि कोई चीज सबसे निकृष्ट है तो वह विचार-दारिद्रय ही है। जिस मनुष्य के विचारों में दरिद्रता प्रविष्ट हो जाती है, वह रुपया पैसा होते हुए भी सदैव भाग्य का रोना रोया करता है। दरिद्रता के अनिष्टकारी विचार हमें समृद्धिशाली होने से रोकते हैं, दरिद्री ही बनाये रखते हैं।

आप दरिद्र, गरीब या अनाथ जैसे हीन अवस्था में रहने के हेतु पृथ्वी पर नहीं जन्मे हैं। आप केवल मुट्ठी भर अनाज या वस्त्र के लिए दासवृत्ति करते रहने को उत्पन्न नहीं हुए हैं।

गरीब क्यों सदैव दीनावस्था में रहता है? इसका प्रधान कारण यह है कि वह उच्च आकाँक्षा, उत्तम पवित्र कल्पनाओं, स्वास्थ्यदायक स्फूर्तिदायक विचारों को नष्ट कर देता है, आलस्य और अविवेक में डूब जाता है, हृदय को संकुचित, क्षुद्र, प्रेमविहीन और निराश बना लेता है। सीमाक्रान्त दरिद्रता आने पर जीवन ठहर सा जाता है, प्रगति अवरुद्ध हो जाती है, मनुष्य ऋण से दब कर निष्प्रभ हो जाता है, उसे अपने गौरव, स्वाभिमान को भी सुरक्षित रखना दुष्कर प्रतीत होता है। दरिद्री विचार वाले असमय में ही वृद्ध होते देखे गये हैं। जो बच्चे दरिद्रों के घरों में जन्म लेते हैं, उनके गुप्त मन में दरिद्रता की गुप्त मानसिक ग्रन्थियाँ इतनी जटिल हो जाती हैं, कि वे जीवन में कुछ भी उच्चता या श्रेष्ठता प्राप्त नहीं कर सकते। दरिद्रता कमल के समान तरोताजा चेहरों को मुर्झा देती है, सर्वोत्कृष्ट इच्छाओं का नाश हो जाता है। यह दुःखद मानसिक दरिद्रता मनुष्य को पीस देने वाली है। सैकड़ों मनुष्य इसी क्षुद्रता के गर्त में डूबे हुए हैं।

आर्थिक सफलता के लिए भी एक मानसिक परिस्थिति, योग्यता एवं प्रयत्नशीलता की आवश्यकता है। लक्ष्मी का आवाह्न करने के हेतु भी मानसिक दृष्टि से आपको कुछ पूजा का समान एकत्रित करना होता है।

दीपावली के लक्ष्मी पूजन के अवसर पर आप घर झाड़ते, लीपते, पोतते, सजाते हैं। नई-नई तसवीरें, कलात्मक वस्तुओं से घर को चित्रित करते हैं, अपने शरीर पर सुन्दर सुन्दर वस्त्र और आभूषण धारण करते हैं। इसी भाँति मानसिक पूजा भी किया कीजिये। अर्थात् मन के कोने-कोने से दरिद्रता, गरीबी, क्षुद्रता, संकुचितता, ऋण, के जाले विवेक की झाडू से साफ कर दीजिये, मानसिक पटल को आशावादिता की सफेदी से पोत लीजिये। मानसिक घर में आनन्द, आशा, उत्साह, प्रसन्नता, हास्य, उत्फुल्लता, खुशमिजाजी के मनोरम चित्र लगा लीजिये। फिर श्रम और मितव्ययिता के नियमों के अनुसार लक्ष्मीदेवी की साधना कीजिये। आर्थिक सफलता आपकी होगी। सब विद्याओं में शिरोमणि वह विद्या है जो हमें कुत्सित और निकृष्ट विचारों से मन को साफ करना सिखाती है।

परमपिता परमात्मा की कभी यह इच्छा नहीं कि हम आर्थिक दृष्टि से भी दूसरों के गुलाम बने रहें। हमें उन्होंने विवेक दिया है, जिसे धारण कर हम उचित अनुचित खर्चों का अन्तर समझ सकते हैं, विषय वासना और नशीली वस्तुओं से मुक्त हो सकते हैं, अपने अनुचित खर्चे, विलासिता और फैशन में कमी कर सकते हैं, घर में होने वाले नाना प्रकार के अपव्यय रोक सकते हैं। अपनी आय वृद्धि करना हमारे हाथ की बात है। जितना हम परिश्रम करेंगे, योग्यताओं को बटायेंगे, अपनी विद्या में सर्वोत्कृष्टता, मान्यता, निपुणता प्राप्त करेंगे, उसी अनुपात में हमारी आय भी बढ़ती चली जायेगी। संसार में अन्याय नहीं है। सबको अपनी अपनी योग्यता और निपुणता के अनुसार धन प्राप्त होता है। फिर क्यों न हम अपनी योग्यता बढ़ाये और संघर्ष में अपने आपको हर प्रकार से योग्य प्रमाणित करें।

श्री ओरिसन मॉर्डन ने अपनी पुस्तक ‘शान्ति शक्ति और समृद्धि’ में कई आवश्यक तत्वों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा है-

“विश्व के अनेक दरिद्र लोगों के कारण को खोजो तो पता लगेगा कि उन्हें आत्म विश्वास नहीं है, उन्हें यह विश्वास नहीं है कि वे दरिद्रता से छुटकारा पा सकते हैं। हम गरीबों को बताना चाहते हैं कि वे ऐसी कठोर स्थिति से भी अपने आप को उन्नत बना सकते हैं। सैकड़ों नहीं प्रत्युत हजारों ऐसी स्थिति में उन्नत-धनवान बने हैं और इसलिए हम कहते हैं कि इन गरीबों के लिए भी आशा है। वे दुर्धर्ष परिस्थिति को बदल सकते हैं। संसार में आत्म विश्वास ही ऐसी कुँजी है कि सफलता का द्वार खोल देती है।

प्रकृति ने मनुष्य को ऊपर देखने की आशा प्रदान की है, नीचे की ओर नहीं। मानव जन्म ऊपर चढ़ने के लिए हुआ है, नीचे गिरने के लिए नहीं।

दरिद्रता वास्तव में एक मानसिक रोग है। इस रोग से प्रयत्न करने पर प्रत्येक व्यक्ति छुटकारा पा सकता है। एक गरीब युवक ने अमीर बनने के लिए अपनी आत्मा और योग्यता पर भरोसा करना आरम्भ किया। उसने निश्चय किया कि उसके अन्दर वह योग्यता-शक्ति विद्यमान है जिसके द्वारा मनुष्य संसार में नामांकित होते हैं। वह निरन्तर अपनी शुभ कल्पनाओं को साकार रूप देता गया। और सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुँच गया। हिम्मत और सतत उद्योग के उत्पादक और उत्साही वातावरण में रहने से प्रत्येक मनुष्य समृद्धिशाली बन सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles