शृंगार की वस्तुएँ ।

January 1950

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विज्ञापन द्वारा लूट-

जब आप एक आकर्षक विज्ञापन देखते हैं, तो उसी वस्तु की आवश्यकता अनुभव करने लगते हैं। तरह तरह के क्रीम, वैसलीन, साबुन, पाउडर, बाल बढ़ाने के तेल, इत्र, दाँत के मंजन भाँति 2 की दवाइयाँ आपको ठगने के लिए विज्ञापित किये जाते हैं। इन सब में मूल तत्व प्रायः एक से ही होते हैं। इनके विज्ञापन प्रायः इतने आकर्षक होते हैं, उनकी भाषा इतनी बनावटी, धोखे में डालने वाली होती है कि मूर्ख पाठक एकदम बहकावे में आ जाते हैं। अमेरिकन और अंग्रेजी पत्र पत्रिकाओं में 20-20 पृष्ठ विज्ञापनों से भरे रहते हैं। विज्ञापन लिखना भी एक कला है। वही व्यक्ति अच्छे विज्ञापन लिख सकते हैं जो दूसरों को धोखे में डाल सकते हैं। आकर्षक विज्ञापन से रद्दी, गिरा हुआ, सड़ा गला माल भी निकल जाता है। कुछ लोग केवल विज्ञापन छपाते हैं, आर्डर आने पर माल बाजार में खरीद लेते हैं और अपना कमीशन लगा लेते हैं। अनेक बार लिखा कुछ और, भेजा कुछ और जाता है। खरीदने वाला दूसरे शहर में होता है रद्दी माल को वापस नहीं लौटा सकता। उसे जैसा मिला उसी से संतुष्ट होना पड़ता है।

भिन्न-2 प्रकार के विज्ञापन

हमें कैसे बेवकूफ बनाते हैं?

दवाओं के विषय में विज्ञापन बहुत लुटते हैं। हाजमे के चूर्ण, दस्त रोकने और बन्द करने, ऐंठन मेटने, या खट्टी डकारों, भूख कम लगनी, उदर रोगों के लिए उपयुक्त हैं, बड़ी मात्रा में विज्ञापित की जाती है। पुरुषत्व बढ़ाने, वीर्य वर्द्धक स्तम्भन प्रदीप्त करने वाली मदन मंजरी रमणी विलासिनी गोलियों की भरमार है, सिरदर्द के बाम हजारों बिक रहे हैं। अनेक वैद्य कविराज नामर्दों, प्रसूत, गर्मी, बच्चा होने की दवायें ऊँचे मूल्य पर बेच कर जनता को लुट रहे हैं। स्त्रियों को लूटना और भी आसान है। विज्ञापन किसी स्त्री के नाम से दिया जाता है। स्त्रियाँ अनेक भयानक रोगों से परेशान रहती हैं। बेचारी चुपचाप से दवाइयाँ मंगाया करती हैं। संतान प्राप्ति के बहाने भारत में प्रतिवर्ष हजारों रुपया लूटा जाता है। समाज की गन्दगी पत्रिकाओं में वीर्य विकार, धातु क्षीणता, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, नपुँसकता, दमा, जीर्ण ज्वर, यक्ष्मा के विज्ञापनों से देखी जा सकती है। इन दवाइयों में प्रायः कुछ भी सत्यता नहीं होती। मामूली उत्तेजक पदार्थ होते हैं, जिनसे लाभ के स्थान पर हानि अधिक होती है।

कलुषित और अश्लील प्रवृत्तियों को उत्तेजना देने वाली कामशास्त्र के नाम पर बिकने वाली गन्दी पुस्तकों का व्यापार खूब चल रहा है। ये लोग काम शास्त्र (जो अपने सही रूप में बुरा नहीं है) के नाम पर समाज को गन्दे रास्ते पर ले जा रहे हैं। प्रायः नग्न स्त्रियों के फोटो, रंगीन आसन, अलबम, चुम्बनों के चित्र, गर्भनाशक औषधियाँ, बर्थ कन्ट्रोल की वस्तुओं के विज्ञापन बड़ी मात्रा में समाज को धोखे में डाल रहे हैं। इन पुस्तकों में काम का तथ्य बहुत कम और शैतानी की बातें बहुत रहती हैं। इनसे बड़े सावधान रहने की आवश्यकता है।

गोरे और खूबसूरत होने की दवाओं में वैसलीन या क्रम और खुशबूदार फलों का इत्र के अतिरिक्त कुछ नहीं होता। क्षणिक सुगन्ध के फेर में पड़ कर हम अपने पसीने की कमाई इन वस्तुओं में नष्ट करते हैं। न इनसे गाल के मुंहासे, दाग फुँसियाँ, खुजली दूर होती हैं, न त्वचा ही साफ निकलती है।

कुछ लोग खिजाव द्वारा अपने बालों को काला बनाने के बड़े शौकीन होते हैं। वे नौजवान होने का अभिनय करना चाहते हैं। यह नितान्त मूर्खता है। बाल एक दिन बाद फिर सफेद हो जाते हैं।

जिन जेवरों का विज्ञापन आप पढ़ते हैं, वह सोने का नहीं है। उसमें केवल सोने का झोल चढ़ा रहता है, जो कुछ दिन बाद साफ हो जाता है। अतः इनसे सावधान रहें।

कभी-2 माल बेचने के लिए लाटरी और इनामों का सहारा लिया जाता है। इनामी टिकट के लोभ से लोग उन वस्तुओं को खरीदते हैं, न कि उपयोगिता की दृष्टि से। यह इनाम भी खोखला होता है। प्रायः कोई सस्ती सी वस्तु दे दी जाती है।

वशीकरण मन्त्र, कवच, ऋद्धि−सिद्धि यन्त्र, जो आपकी दुष्ट ग्रहों, दुःख दारिद्रय से बचाते, या घर में अंधाधुन्ध धन दौलत फैलाते हैं, जिसे चाहो वश में करने का वायदा करते हैं, वे सब झूठा धन्धा करते हैं। भला सोचिये कि क्या बिना पुरुषार्थ किसी कवच मात्र से विद्या, बुद्धि, धन, ज्ञान, स्मरण शक्ति, की वृद्धि, या प्रतियोगिता में फस्ट आना, मुकदमें में जीत हो सकती है, पुरुष स्त्री को वशीभूत कर सकता है, कोई घमड़ी आपके वश में आ सकती है। यह नितान्त असंभव है, झूठ और फरेब है। कभी किसी यंत्र या कवच के, जादू की अंगूठी के चक्कर में न फसिये।

धोखे का एक और ढंग देखिये- विज्ञापन है- “दीपावली की खुशी में 3॥) रु. में 8 पुस्तकें- “हुक्मीइलाज, सुहागरात, तिलस्मी पिटारा, सौ रुपये की बात चुम्बन, गुप्त एलबम”। आप 3॥) रु॰ में पार्सल मंगा लेते हैं। आपको पार्सल खोलने पर आश्चर्य होता है क्योंकि वहाँ 10-15 पृष्ठों की बादामी कागज पर छपी हुई रद्दी पुस्तकें निकल जाती हैं इस प्रकार सैकड़ों लोग भोली जनता को धोखा दे देकर अमीर बन गये हैं। खेद है कि सरकार भी इस धोखे को प्रतिबन्ध द्वारा नहीं रोकती।

घड़ियों के विज्ञापनों में भी सार कम होता है। प्रायः देखा गया है कि ऐसी घड़ियाँ बिल्कुल नहीं चलतीं। न ठीक ही होती हैं। सस्ती घड़ियाँ खरीदने वाले रोते हैं।

आजकल सबसे अधिक विज्ञापन सिनेमा सम्बन्धी होते हैं। दो एक अभिनेत्रियों की तसवीरें, एक फड़कता हुआ गाना, और जनता को धोखे में डालने वाले वर्णन लिख-लिख कर लोगों को आकर्षित किया जाता है। प्रत्येक फिल्म में घुमा−फिरा कर वही प्रेम कहानी वासना को उद्दीप्त करने वाले गाने, रति चेष्टाएं, कुरुचिपूर्ण रुचि भ्रष्ट करने वाले दृश्य। इस निर्धन देश के युवक इस विषैले मनोरंजन से वेश्यागामी होते हैं, कुपथ पर चलते हैं और राग रंग में मस्त रहते हैं। हमारी फिल्मों का स्तर अभी तक ऊँचा नहीं उठ पाया है।

विज्ञापनों की मोहनी माया से दूर ही रहना श्रेष्ठ है। इनमें न कोई सार है, न लाभ। प्रत्येक व्यक्ति को माल स्वयं देख कर खरीदना चाहिये। यदि कोई वस्तु उपयोगी हो, तभी उसे खरीदने में लाभ है। केवल क्षणिक प्रलोभन के, आनन्द अथवा मनोरंजन के लिए रुपये की होली नहीं खेलनी चाहिये। नियंत्रण और आत्मसंयम ही हमारी सहायता कर सकते हैं। जब तक किसी वस्तु की नितान्त आवश्यकता ही अनुभव न करें, और जब कार्य आगे न चले, तभी इन वस्तुओं का क्रय करना उचित हैं।


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