चिड़चिड़ापन-एक अभिशाप

January 1948

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए.)

मानव स्वभाव के दुर्गुणों में चिड़चिड़ापन आन्तरिक मन की दुर्बलता का सूचक है। सहिष्णुता के अभाव में मनुष्य बात बात में चिढ़ने लगता है, नाक भौं सिकोड़ता है, प्रायः गाली गलौज देता है। मानसिक दुर्बलता के कारण वह समझता है कि दूसरे उसे जान बूझकर परेशान करना चाहते हैं, उसके दुर्गुणों को देखते है, उनका मजाक उड़ाते हैं। किसी पुरानी कटु अनुभूति के फलस्वरूप वह अत्यधिक संवेदनशील हो उठता है और उसकी भावना ग्रन्थियाँ उसकी गाली गलोज या बेढंगे व्यापारों में प्रकट होती हैं।

चिड़चिड़ेपन के रोगी में चिंता तथा शक शुवे की आदत प्रधान है। कभी-2 शारीरिक कमजोरी के कारण, कब्ज, परिश्रम से थकान, सिरदर्द, नपुँसकता के कारण आदमी तिनक उठता है। अपनी कठिनाइयों तथा समस्याओं को उद्दीप्त होकर देखते देखते उसे गहरी निराशा हो जाती है। चिड़चिड़ापन एक पेचीदा मानसिक रोग है। अतः प्रारम्भ से ही इसके विषय में हमें सावधान रहना चाहिए।

जिस व्यक्ति में चिड़चिड़ेपन की आदत है, वह सदा दूसरों के दोष ढूंढ़ता रहता है। वह व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की दृष्टि में तो बुरा होता ही है, स्वयं भी एक अव्यक्त मानसिक उद्वेग का शिकार रहता है। उसके मन में एक प्रकार का संघर्ष चला करता है। वह भ्रमित कल्पनाओं का शिकार रहता है। उसके संशय ज्ञान तन्तुओं पर तनाव डालते हैं। भ्रम बढ़ता रहता है और वह मन ही मन ईर्ष्या की अग्नि में दग्ध होता रहता है। वह क्रोधित, भ्रान्त, दुःखी सा नजर आता है। तनिक सी बात में उसकी उद्विग्नता का पारावार नहीं रहता। गुप्त मन पर प्रारंभ में जैसे संस्कार जम जाते हैं, उनके फलस्वरूप ऐसा होता है। यह आदत से पड़ने वाला एक संस्कार है।

रोग से मुक्ति के साधन

मन में दृढ़ निश्चय करना चाहिए कि चिड़चिड़ापन बुरा है। हम उसे अपने स्वभाव में से निकालना चाहते हैं। हम दूसरों के बोलने, हंसने, मजाक, या कामों से नहीं चिढ़ेंगे। हम उनकी परवा न करेंगे। अपने स्वभाव में मृदुता लायेंगे, सरल बनेंगे, सहिष्णु बनेंगे।

मनुष्य के मन में सत तथा असत् दोनों प्रकार के विचारों का क्रम चला करता है। हमें अपने दुर्बल विचारों के प्रति बड़ा सतर्क रहना चाहिए। जब कोई चिंता, या निराशाजनक बात मन में आवे, आप उसके प्रतिकूल भावना का उद्रेक कीजिये। चिड़चिड़ेपन के दमन के लिए मृदुता, प्रसन्नता, सहानुभूति की भावना अत्यन्त लाभदायक है। प्रबलता से मन में शुभ संकल्प जाग्रत कीजिए।

जब कभी आपको क्रोध आवे तो आप मन ही मन कहिए, “दूसरों से गलती हो ही जाती है। मुझे दूसरों की गलतियों पर क्रुद्ध नहीं होना चाहिए। यदि दूसरे गलती करते हैं, तो उसका यह मतलब नहीं कि मैं और भी बड़ी गलती कर उसका प्रतिशोध लूँ। मैं शुभ संकल्प वाला साधक हूँ। शुभ संकल्प के फलित होने के लिए उद्विग्न मन होना उचित नहीं। हम सहिष्णु बनेंगे। दूसरे स्वयं अपनी गलती का अनुभव करेंगे। हम धैर्य धारण करें।”

जितना ही आप विचारों को ऊपर लिखित भावनाओं पर एकाग्र करेंगे, उतना ही बल आपको मिलेगा। पुनः पुनः दृढ़ता से उन में रमण करने से स्वभाव बदल जायगा, प्रकृति मधुर बन जायगी। आवेश को रोकने से मन को बल मिलेगा।

अपने दैनिक व्यवहार में प्रेमी, सहानुभूतिपूर्ण, सौम्य और प्रसन्नमुद्रा से काम लीजिये। इस मधुर स्वभाव का प्रभाव आपके कुटुम्ब तथा समाज पर बहुत अच्छा पड़ेगा। सुख−शांति से जीवन व्यतीत करने के लिए मिष्ट भाषी और मधुर स्वभाव सर्वोत्तम तत्व हैं। मधुरता का प्रवाह तुम्हारे इर्द गिर्द वातावरण में फैल जायगा। चिड़चिड़ा होना आपकी एक बड़ी कमजोरी है, मधुरता से, सरसता और प्रसन्नता से उसे ठीक कर लीजिये। ऐसे मधुर वचन बोलिये कि छोटे बच्चे आपकी ओर आकर्षित होकर चले आयें, पत्नी प्रसन्न हो उठे, नौकर भी प्रसन्नता से आपकी आज्ञा बजा लायें। संकल्प की दृढ़ता, आवेश को रोकने तथा मधुर आदर्श सामने रखने से निश्चय ही आप चिड़चिड़ेपन से छुटकारा पा सकेंगे।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118