चोटी क्यों रखावें?

January 1948

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(1) मस्तिष्क व हृदय की सुरक्षा

मस्तक विद्या में आचार्यों का कथन है कि शिखा स्थान मस्तिष्क की नाभि है। दूसरे शब्दों में इसे मस्तिष्क का हृदय भी कह सकते हैं। इस केन्द्र से उन सूक्ष्म तन्तुओं का संचालन होता है जिनका प्रसार समस्त मस्तिष्क में हो रहा है और जिनके बल पर अनेकों मानसिक शक्तियों का पोषण तथा विकास होता है।

इस केन्द्र स्थान से सम्बन्धित चार दिशाओं में पाँच शक्तियाँ रहती हैं (1) विवेक शक्ति (2) दृढ़ता शक्ति (3) दूरदर्शिता शक्ति (4) प्रेम शक्ति (5) संयम शक्ति। इन पाँचों की जड़ शिखा मूल में है। मस्तिष्क का हृदय होने तथा पाँच महत्वपूर्ण शक्तियों का केन्द्र होने के कारण इस स्थान का महत्व शरीर के सब स्थानों से अधिक है।

ऐसे मर्म स्थान की सब प्रकार रक्षा की जानी चाहिए। इस स्थान को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखने का सर्वोत्तम तरीका ‘केशाच्छादित’ रखना है। उस जगह पर बड़े बड़े बाल रहने से उसी प्रकार सुरक्षा हो जाती है जैसे छप्पर या वृक्ष की छाया के नीचे हम सर्दी गर्मी आदि से अपनी रक्षा कर लेते हैं। बालों में बाहरी प्रभाव को रोकने की शक्ति है। ऊनी कम्बल में लपेट देने पर बर्फ बहुत कम गलती है, बाहर की गर्मी को बर्फ तक जाने से रोकती है। इसी प्रकार कम्बल बाहर की सर्दी को रोक कर जाड़े के दिनों में हमारे शरीर को गरम रखता है। इसी प्रकार शिखा स्थान पर बाल रहने से बाहरी अनावश्यक सर्दी, गर्मी का प्रभाव नहीं होता और उसकी सुरक्षा सदा बनी रहती है जिससे उस मर्म स्थान में कोई विकार उत्पन्न नहीं हो पाता।

(2) मानसिक शक्तियाँ का पोषण

बाल एक नियत मर्यादा तक बढ़ते हैं, इसके बाद उनका बढ़ना बन्द हो जाता है। बाल कटने पर केशों की जड़े अपने निकट वर्ती स्थान से रक्त लेकर उसके द्वारा बाल बढ़ाती हैं। इस दृष्टि से बाल काटने का अर्थ हुआ उस स्थान के रक्त का खर्च। यह सर्व विदित बात है कि जब एक वस्तु को दो भागों में बाँटा जायगा तो प्रत्येक भाग कम हो जायगा। किन्तु जब बाल काटे नहीं जाते तो एक नियत सीमा पर पहुँच कर उनका बढ़ना बन्द हो जाता है। जब बढ़ना बन्द हो गया तो केशों की जड़ों को बाल बढ़ाने के लिए रक्त लेकर खर्च करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। फलस्वरूप वह बचा हुआ रक्त उन पाँचों शक्तियों का पोषण करने में खर्च होता है। जिससे उनका पोषण और विकास भली प्रकार होता है। इससे मनुष्य विवेकशील, दृढ़ स्वभाव, दूरदर्शी, प्रेमी एवं संयमी बनता है। विचार पूर्वक देखा जाय तो यह लाभ अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है।

(3) वासना की कमी

शिखा स्थान के बाल कटवाने से मस्तिष्क की जड़ों में एक प्रकार की हलचल मचती है, यह एक प्रकार सूक्ष्म खुजली होती है, यह खुजली मस्तिष्क से सम्बद्ध वासना तन्तुओं में उतर जाती है फलस्वरूप काम वासना भड़क उठती है। इस अनिष्ट से परिचित होने के कारण ऋषि, मुनि पंच केश रखते थे। सिर पर जटा, दाढ़ी मूँछ, बगल तथा गुप्त स्थानों के बाल वे लोग रखाते थे। जिससे इन्द्रियों पर काबू पाने में बड़ी सहायता मिलती है। ब्रह्मचारी भी इसी उपाय का अवलम्बन करते हैं। आजकल दाढ़ी मूँछ मुड़ाने तथा जल्दी-2 बाल कटाने का फैशन चल पड़ा है इससे इन्द्रिय विकार भड़कते हैं और लोग भोग विलास के मार्ग में अवांछनीय उत्तेजना के साथ प्रवृत्त होते हैं।

आयुर्वेद के ज्ञाता जानते हैं कि नपुँसकों की चिकित्सा में गुप्त स्थान के बालों को जल्दी-2 बनाते रहने का विधान है जिससे उत्तेजना की वृद्धि हो। मस्तिष्क में भी बाल काटने से ऐसी ही उत्तेजना होती है। इसलिये अच्छा तो यह है कि सिर के सभी बाल रखाये जावें पर शिखा स्थान के बाल तो विशेष रूप से रक्षणीय हैं क्योंकि वह मस्तिष्क का हृदय होने से वासना का केन्द्र भी है। शिखा रखाने से काम वासना संयम में रहती है।

(4) तेज की वृद्धि

स्त्रियाँ लम्बे बाल रखती हैं उनके चेहरे पर एक लावण्य एवं चमक दृष्टिगोचर होती है। पूर्वकाल में महापुरुषों एवं देवताओं के चित्र देखने से पता चलता है उस समय में पुरुष बाल रखाया करते थे और वे तेजस्वी होते थे। अब भी दाढ़ी मूँछ वाले मनुष्यों के चेहरे पर अपेक्षाकृत अधिक तेज दिखाई पड़ता है। यों तो सभी स्थानों के बालों का इस तेज वृद्धि से संबंध है पर शिखा स्थान के बालों का संबंध तो विशेष रूप से है। इसलिए तेजस्विता एवं सौंदर्य को स्थिर रखने के इच्छुकों को शिखा तो अवश्य ही रखनी चाहिये।

(5) शक्ति का प्रतिनिधित्व

शक्ति मार्गी साधकों ने अपने अध्यात्मिक अनुभवों से बताया है कि ब्रह्मरन्ध्र के, शिव हृदय के, ऊपर अवस्थित शिखा कृष्णवर्ण भगवती कालिका की प्रतिनिधि है। चाणक्य ने शिखा को हाथ में लेकर अर्थात् दुर्गा को साक्षी बनाकर नन्द वंश के नाश की प्रतिज्ञा की थी और वह पूरी हुई। शिखा स्पर्श से शक्ति का संचार होता है। ओझा लोग भूत प्रेत भगाने में शिखा शिवा की सहायता प्राप्त करते हैं। शाक्त ग्रन्थों में ऐसे अभिवचन भी प्राप्त होते है । जैसे-

चिद्रुपिणी महामाये, दिव्य तेजः समन्विते। तिष्ठ देवि शिखा मध्ये तेजो वृद्धिं कुरुष्व में ।।

दीर्घायुष्टवाय बलात बच से शक्तै शिखाये वषट्।।

इन वचनों में शिखा को शक्ति रूपिणी बताया है। ज्वालामुखी पर्वत के सबसे ऊंचे शिखर पर जैसे भगवती ज्वालाजी की अग्नि शिखा के दर्शन होते हैं वैसे ही शरीर पर्वत के सर्वोच्च स्थान पर शिखा ऊपर की ओर उठ रही है। शक्ति रूपी शिखा को श्रद्धापूर्वक धारण करने से मनुष्य शक्ति संपन्न बनता है।

(6) धर्म की पूजा

जैसे राष्ट्र का एक ध्वज-झंडा होता है वैसा ही शरीर राष्ट्र का भी एक ध्वज है जिसे शिखा कहते हैं। यह शिखा किले के सबसे ऊपरी भाग पर सदैव फहराती है। हर किले पर झंडा उड़ता है जीवात्मा के सुदृढ़ किले ब्रह्मरंध्र के ऊपर भी शिखा ध्वज फहराती रहनी चाहिए। हिन्दू धर्म की, हिन्दू राष्ट्र की, हिन्दू संस्कृति की ध्वजा मस्तक पर स्थायी रूप से धारण करना हिन्दुत्व का गौरव है। उस गौरव की रक्षा करना हर हिन्दू का धर्म कर्तव्य है। हम सबको शिखा रखनी चाहिए और उसकी साँस्कृतिक महानता में श्रद्धा करनी चाहिए।

(7) केन्द्रीय सत्ता की रक्षा

हर चीज का एक केन्द्र होता है। यह उसका मर्मस्थान कहलाता है। इस केन्द्र की बनावट चक्करदार होती है। पृथ्वी का केन्द्र उत्तरी ध्रुव है, फल जिस स्थान पर डंठल से जुड़ा होता है वह उसका केन्द्र है, बालक और माता के शरीर को जोड़ने वाला नाल मूल नाभि केन्द्र होता है। जड़ और चैतन्य सभी का एक केन्द्र होता है और उसी के ऊपर उसकी सत्ता निर्भर रहती है। मस्तिष्क का केन्द्र शिखास्थल है इस पर चक्कर जैसी आकृति स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। यह केन्द्र अदृश्य सत्ताओं के साथ व्यक्ति की चेतना को उसी प्रकार संबंधित करता है जैसे फल और डंठल का संबंध रहता है। इस केन्द्रीय सत्ता को किसी प्रकार चोट, सर्दी, गर्मी आदि के कारण हानि न पहुंचे इसलिए शिखा रखाना आवश्यक है।

(8) आत्मा का निवास स्थान

योगी लोग बताते है कि आत्मा की अखंड ज्योति का प्रधान स्थान मस्तिष्क केन्द्र में है। स्थान को सहस्र दल कमल एवं ब्रह्मरंध्र कहते हैं। अनाहत ध्वनि इसी स्थान से उत्पन्न होती है। इस्लाम धर्म की पुस्तकों में खुदा का निवास सातवें आसमान पर बताया है। शरीर में सबसे ऊपर सातवां स्थान यह शिखा केन्द्र ही है। सर्वव्यापी परमात्मा का मनुष्य शरीर में जो प्रधान स्थान है वह शिखामूल ही है। इस स्थान पर शिखा रूपी मंदिर बनाना ईश्वर प्राप्ति में सहायक होता है।

(9) आकाश से जीवन ग्रहण करना

पेड़ में लगी हुई पत्तियाँ हवा में से प्राण वायु खींचती हैं। बरगद की जटाएं उसे दिन दिन परिपुष्ट बनाती हैं। इसी प्रकार मनुष्य शरीर पर जो बाल हैं वे छिद्र युक्त हैं और आकाश में से प्राण वायु खींचते हैं जिसमें मस्तिष्क चैतन्य, पुष्ट और निरोग रहता है। पशु पक्षी अपने शरीर के बालों को खुले और सुरक्षित रखते हैं फलस्वरूप वे बीमार नहीं पड़ते । मनुष्य अधिक कपड़े लाद कर बालों को शुद्ध वायु खींचने से रोकता है फलस्वरूप बीमार पड़ता है। शरीर में अन्य स्थानों की अपेक्षा सिर के बालों का महत्व अधिक है क्योंकि वे मस्तिष्क का पोषण अधिक आवश्यक है। उचित तो यही है कि सारे सिर के बालों को रखाया जाय पर यदि यह न हो सके तो उस केन्द्र स्थान पर जो अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। शिखा अवश्य रखनी चाहिये।

(10) मनोबल की वृद्धि

अनुष्ठान काल में क्षौर कर्म वर्जित है। किसी प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिये बाल रखाने की प्रथा है। इसके सूक्ष्म कारणों पर विचार करने से विदित होता है कि बाल रखाने से मनोबल की वृद्धि होती है और दृढ़ता आती है। उस दृढ़ता के कारण अनुष्ठान करने वाले साधक अपने कार्यक्रम पर दृढ़ रहते हैं और उसे निर्विघ्न पूरी कर लेते हैं। प्रतिज्ञा पालन या किसी को पूरा करने के संकल्प स्वरूप जब बाल रखाये जाते हैं तो मनोबल सतेज रहता है जिसके कारण संकल्प पूरा होने का मार्ग सुगम हो जाता है। श्राद्ध पक्ष में धार्मिक वृत्तियाँ विशेष रूप से दृढ़ रहें इसलिए उन दिनों क्षौर नहीं बनाया जाता। शिखा केशों का केन्द्र बिन्दु है। मनोबल की निरन्तर वृद्धि के लिए कम से कम शिखा स्थान के बाल तो रखाने चाहिये।

(11) अवसाद से बचाव

प्राचीन समय में जिसे तिरष्कृत लज्जित, अपमानित करना होता था, उस अपराधी का सिर मुड़ा कर घुमाया जाता था। सिर मुड़ा देने से अध्यात्म शास्त्र के अनुसार मन गिर जाता है, जोश ठंडा हो जाता है, नाड़ी तन्तु शिथिल हो जाते हैं। ऐसा होने से अपराधी का उत्साह ठंडा होकर मन गिर जाता है जिससे भविष्य में वैसा करने को उसका जी नहीं करता। प्रायश्चित में सिर मुंड़ाने का विधान हैं। किसी स्वजन की मृत्यु हो जाने पर मुँडन कराया जाता है। इसका अर्थ मन को शिथिल करके, पाप, अपराध, शोक आदि की भावनाओं की ढीला करना है। यदि अकारण मुँडन कराया जाय तो उत्साह, स्फूर्ति, काम में रुचि आदि की कमी हो जाती है और आलस्य आ घेरता है। केशों के केन्द्र शिखा को मुंड़ाने से तो यह दोष विशेष रूप से पैदा होते हैं इसलिये अवसाद से बचने के लिये हमें शिखा रखानी चाहिए।

(12) शिखा प्रधान सिख धर्म

सिख लोग स्वभावतः वीर होते हैं, उनका स्वास्थ्य और शौर्य प्रसिद्ध है। सिखों के धर्म में पंच शिखाएं रखाना कर्तव्य है। कुछ लोग कहते है शिष्य का अपभ्रंश सिख है। पर कुछ लोगों का कथन है कि उनके धर्म में शिखा का महत्व बहुत अधिक है इसलिए ‘सिखा’ नाम रखा गया है। जो भी हो, गुरु नानक तथा अन्य गुरुओं ने अपने आध्यात्म बल से शिक्षा के असाधारण लाभों की समझ कर अपने सम्प्रदाय वालों की पंच शिखाएं-पाँचों स्थान के बाल रखाने का आदेश दिया है।

(13) ब्रह्मरन्ध्र की रक्षा

योगशास्त्र के सिद्धान्त के अनुसार बीच सिर में ब्रह्मरन्ध्र है और ब्रह्मरन्ध्र के बराबर सहस्रदल कमल में आत्मा का केन्द्र स्थान है। यहाँ उच्च सात्विक आध्यात्मिक शक्तियाँ निवास करती हैं। उनकी रक्षा करने के लिये गौ खुर की बराबर बाल (शिखा) रखना योगशास्त्र की दृष्टि से आवश्यक है। इससे आत्मिक उन्नति तथा परमात्मा की प्राप्ति में सहायता मिलती है।

(14) धार्मिकता एवं आस्तिकता

शिखा को सिर पर स्थान देने का अर्थ धार्मिकता को स्वीकार करना है। आस्तिकता का धर्म भावना से प्रधान संबंध है। जब कि मनुष्य धर्म या आस्तिकता को स्वीकार नहीं करता तब तक उसे शिखा पर श्रद्धा नहीं होती, किन्हीं विश्वासों और भावनाओं को स्वीकार कर लेने से लोग उसी समूह में प्रविष्ट होते हैं। हिन्दू संस्कृति हिन्दू धर्म और हिन्दू आस्तिकता को स्वीकार करके उसकी दीक्षा एवं स्वीकृति स्वरूप शिखा को धारण किया जाता है। एक विश्वास कायम कर लेने पर ही उस मार्ग पर श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा की बुद्धि से ही मनुष्य सच्चा धार्मिक और आस्तिक बनाता है। इस प्रकार शिखा हमें धार्मिक एवं आस्तिक बनने में सहायता करती है।

(15) अनिष्ट कर प्रभावों से रक्षा

बड़ी इमारतों के ऊपरी भाग पर एक लोहे की छड़ खड़ी की जाती है, ताकि आकाश की बिजली गिर कर मकान को हानि न पहुँचावे, वरन् उस छड़ में होकर नीचे जमीन में चली जावे। शिखा भी उसी प्रकार की एक आध्यात्मिक छड़ है, जिसके द्वारा ग्रह नक्षत्रों के तथा अन्य अदृश्य शक्तियों के अनिष्ट कर प्रभाव नीचे उतर जाते हैं और शरीर तथा मन को नुकसान नहीं पहुँचाते।

(16) दैवी संदेशों की प्राप्ति

जहाँ रेडियो यंत्र लगाया जाता है उस घर के ऊपर एक खम्भा खड़ा करते हैं। यह खम्भा आकाश में प्रवाहित होने वाली रेडियो तरंगों को पकड़ कर रेडियो यन्त्र में पहुँचाता है वहाँ सब बातें सुनाई पड़ती हैं। ईश्वरीय संदेश दैवी प्रेरणायें अदृश्य संकेत शिखा के स्तम्भ द्वारा आते हैं और मस्तिष्क रूपी ब्रह्मरन्ध्र में पहुँचाये जाते हैं। इस प्रकार शिखाधारी मनुष्य दैवी शुभ संदेशों को प्राप्त करता है और धार्मिक मार्ग पर अग्रसर होता जाता है। एवं ईश्वरीय सन्निकटता सुगमता पूर्वक प्राप्त कर लेता है।

(17) सद्गति

ईश्वर न करे किसी को कहीं अपरिचित स्थान में दुर्घटना में या किसी अन्य कारण से शरीर त्याग का अवसर आ जाय तो शिखा देख कर उसे हिन्दू पहचान लिया जायगा और या तो उदार हिन्दू समाज की ओर से उसकी अन्त्येष्टि कर दी जायगी अथवा सरकारी कानून के अनुसार पुलिस भी उस लावारिस लाश का हिन्दू पद्धति से दाह संस्कार करावेगी। इस प्रकार शिखा रखाने का एक लाभ यह भी है कि जीवन भर जिन सिद्धान्तों पर विश्वास किया है उन्हीं के अनुसार अन्त समय में उसकी अन्त्येष्टि भी हो सकती है।

इन सब बातों पर विचार करते हुए हर एक विवेकशील व्यक्ति को सिर पर शिखा अवश्य रखानी चाहिये।

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