अमृत-वर्षा

January 1948

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(गोस्वामी श्री बिन्दुजी महाराज)

जिस प्रकार अबोध बालक अपनी हानि लाभ को न सोचता हुआ किसी नशीली मिठाई को खाना चाहता है और हठवश अपने माता पिता के मुख में भी उसे देने का प्रयत्न करता है, यदि माता पिता समझदार हैं तो, डाट डपटकर उस बालक को भी वह मिठाई खाने नहीं देते और खुद भी नहीं खाते। लेकिन यदि उस बालक के प्रेमवश माता पिता मिठाई खाने लगें और बालक को भी न रोके, तो कुछ दिनों बाद माता पिता और बालक तीनों ही पक्के नशेबाज बन जायेंगे।

इसी प्रकार यह मन अबोध बालक है,जो विषय रूपी नशीली मिठाई को खुद भी खाने के लिए दौड़ता है और अपने माता पिता बुद्धि एवं चित्त को भी खिलाने की कोशिश करता है, यदि बुद्धि और चित्त इसका दमन कर देते हैं, तब तो यह भी सुधरा रहता है और चित्त एवं बुद्धि भी बचे रहते हैं, लेकिन यदि मन के प्रेम-वश, बुद्धि और चित्त भी विषय सेवन करने लगें तो समझ लेना कि, कुछ दिन में मन बुद्धि और चित्त तीनों पक्के विषयी हो जायेंगे। इसी लिये चित्त और बुद्धि के द्वारा मन को विषयों की तरफ जाने से सदा रोकते रहें।

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