भूखे रह कर बीमारी को मारो

January 1948

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अमेरिका के सुप्रसिद्ध डॉक्टर चार्ल्स सी हस्केल अपने रोगियों को दवादारु के झमेले में न फंसा कर उन्हें लम्बे उपवास कराते हैं। उनकी उपवास पद्धति से कठिन रोग अच्छे हो जाते हैं। इस प्रकार अच्छे हुए रोगियों में से कुछ के पत्रों का अंश नीचे उद्धृत किया जाता है। जिससे पाठक उपहास का महत्व समझ सकें और “भूखे रहकर बीमारी को मार डालने” के महा सत्य से परिचित हो जावें।

मि. हेनरी रीटर पत्र-

“यहाँ जलोदर, गठिया, सिरदर्द, पेट और अंतड़ियां के दर्द, दम और कमजोरी के बीस रोग 45-42-18 और इनसे भी कम दिनों का उपवास करने से अच्छे हो गये हैं।”

मि. लियोनार्ड थोरस का पत्र

“मेरे जलोदर और दमा के रोग पचास दिन तक उपवास करने से बिल्कुल अच्छे हो गये हैं। मुझे किसी प्रकार की औषधि नहीं खानी पड़ी। पहले औषधियों से मुझे कुछ लाभ न हुआ था।”

मि. ए. स्टेला एफ कुनझेले का पत्र

“मेरे दाहिने अंग को लकवा मार गया था। वह औषधोपचार से अच्छा न हुआ, तथा मेरा स्वास्थ्य बिगड़ गया। परन्तु डॉ0 डयुई के प्राकृतिक और सत्य नियम स्वीकार करने से, और पैंतालीस दिनों तक उपवास करने से, बिना किसी औषधि के मेरा असाध्य रोग अच्छा हो गया।”

मि. एस. टी. पोटर का पत्र

“मुझे पच्चीस वर्ष की उमर में, दम का रोग शुरू हुआ था। मैंने भूखे रहकर चालीस दिन तक उपवास किया और मेरा रोग अच्छा हो गया। मैं बहुत खानेवाला था, परन्तु जब से मैंने प्रातः काल का भोजन (ब्रेकफास्ट) बन्द कर दिया और स्वाभाविक भूख लगने का प्राकृतिक नियम स्वीकार किया, तब से मेरा स्वास्थ्य बहुत सुधर गया है और दमा बिलकुल हट गया है।”

मि0 आलीवर एन॰ एन्डरसन का पत्र

“मुझे गले, फेफड़े और छाती तथा मूत्रापिड के रोग सब एक ही साथ थे। जीवन की आशा नहीं थी। बहुत दिनों तक औषधोपचार करने पर डाक्टरों ने मेरी आशा छोड़ दी थी। परन्तु डॉ0 डयुई के सत्य और प्राकृतिक नियमों का पालन करने से, मुझे आराम हो गया।”

मिसेज मेडील्टा एल॰ एम्ब्रीका पत्र

“मेरी पाँच वर्ष की पुत्री बहुत ही चिड़चिड़े स्वभाव की थी। डॉ0 डयुई के प्राकृतिक नियमों का अनुसरण करने से वह अच्छी हो गई है और हम छह मनुष्यों का स्वास्थ्य भी उन्हीं नियमों का पालन करने से अच्छा हो गया है।”

मिसेज एस॰ आर॰ हार्मन का पत्र

“मेरे जिगर, गुरदे और आमाशय में रोग था। मैंने प्राकृतिक नियम स्वीकार किये। मैंने प्रातःकाल का भोजन ‘ब्रेक-फास्ट’ छोड़ दिया तथा केवल दो पहर को स्वाभाविक भूख लगने पर, भोजन की आदत डाली। उससे मैं बिना औषधि के अच्छा हो गया हूँ। मेरी उमर लगभग सड़सठ वर्ष की है, परन्तु अब मैं दस वर्ष पहले से अधिक स्वस्थ हूँ। ”

मिसेज आईडा जे0 काल्कीन्स का पत्र

“मि. कालकीन्स बदहजमी और जिगर तथा गुरदे के रोगों से बहुत कष्ट पाते थे, तथा डाक्टरों की औषधियों का सेवन करते थे। वे स्वास्थ्य के सत्य नियमों के अनुसार चलने से अच्छे हो गये। मुझे भी बीस वर्ष का पुराना कब्ज रोग था वह अच्छा हो गया है।”

मि. सी. सी. शोल्टर का पत्र

“मेरा शरीर बहुत भद्दा था। मेरा वजन तीन मन चौबीस पौंड था परन्तु जब से मैंने स्वास्थ्य के नये और सत्य नियम पाले, तब से दो वर्षों में मेरा वजन एक मन उतर गया है, और पहले की अपेक्षा मेरी तबीयत अब बहुत अच्छी रहती है।”

रेवरेन्ड सी0बी0 बोमली का पत्र

“जब से मैंने प्रकृति के सत्य नियमों का अनुकरण किया है, तब से मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा है। मिसेज ब्रोमली को दारुण सिर दर्द रहता था। वह भी अच्छा हो गया है और उनका स्वास्थ्य अब ठीक है तथा वे घर का कामकाज आसानी से करती है।”

मि. एबेल ईस्टन का पत्र

“मुझे एक वर्ष से भी अधिक समय से चक्कर आते थे और मुझे मूत्र पिंड का रोग हुआ था। मैं इतना बेजान हो गया था कि मुझे मृत्यु अधिक पसन्द थी। परन्तु स्वास्थ्य के नये और सत्य नियम स्वीकार करने से मुझमें बहुत अन्तर हो गया है और मुझे विशेष लाभ हुआ है।”

रेडरेन्ड मि. डब्ल्यू. ई॰ रेम्बो का पत्र-

“हिंदुस्तान के मध्य प्रान्त का मैं पादरी था। उस समय 1896 ईस्वी के जुलाई मास में, मुझे ‘टाईफाईड बुखार’ (मोतीझरा) का कठिन रोग हुआ था। मैंने सब मिलाकर सात डाक्टरों का इलाज किया, परन्तु उससे मुझे कुछ लाभ न हुआ और मैं प्रतिदिन दुर्बल ही होता गया। ईश्वर की कृपा से मेरा ध्यान डॉ0 डयूई के स्वास्थ्य प्राप्त करने के प्राकृतिक नियमों पर गया और उनके अनुसार चलने से मेरा रोग दबा, और मैं अच्छा होने लगा। यह देख मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। दो माह में मेरे शरीर में तीस पाउण्ड वजन बढ़ गया।”


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