शिक्षाक्रम का एक भाग प्रारंभ

January 1948

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गत मास की अखंड ज्योति में शिक्षा संस्थान का आयोजन शीर्षक लेख छपा था। उसके पाँचवें नियम के अनुसार एक वर्ष की शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक विद्यार्थियों के ढेरों प्रार्थना पत्र हमारे पास आये हैं। विद्यालय की व्यवस्था करने में हम शक्तिभर प्रयत्न रहे हैं। परिस्थितियों की कठिनाई के कारण सर्वांगीण विद्यालय की विशाल योजना के कार्यान्वित होने में विलम्ब हो सकता है। तब तक शिक्षार्थी बन्धु धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करें। व्यवस्था होते ही उन्हें बुलाने के लिए लिखेंगे।

विद्यालय के एक अंक का प्रारंभ इसी मास से किया जा रहा है। बड़ी आयु के कार्य व्यस्त सज्जनों के कितने ही पत्र हमारे पास आते रहते हैं कि वे थोड़े समय अखंड ज्योति के साथ रह कर आत्मशान्ति, मनोबल और प्रेरणा प्राप्त करना चाहते हैं, परन्तु वे अपने व्यस्त कार्यक्रम में से नौकरी व्यापार, खेती या अन्य उत्तरदायित्वों से इतना समय उन्हें नहीं मिल सकता कि कोई महीने या वर्ष दिन तक वे यहाँ ठहर सकें। इस प्रकार के सज्जन अपनी आन्तरिक व्यथाओं के उपचार के निमित्त हमारे साथ रहना चाहते हैं, पर अब तक उसके लिए भी कोई समुचित व्यवस्था यहाँ न थी।

सर्वप्रथम ऐसे लोगों के लिए शिक्षा व्यवस्था करते हुए विद्यालय के एक भाग का उद्घाटन किया जा रहा है। क्रमशः अन्य भागों का विस्तार होता चलेगा। इस प्रारंभिक रक्षा के लिए प्रायः दो सप्ताह का अवकाश आगन्तुक शिक्षार्थियों को प्राप्त करना ही चाहिए।

बहुत दिनों से सामर्थ्य से अधिक कार्य करते करते जिनका चित्त ऊबने लगा है, थकान अनुभव करने लगा है, वे थोड़े समय तक यहाँ आकर अपनी थकान एवं उदासी दूर कर सकते हैं। हानि, वियोग, मृत्युशोक, विश्वासघात, अपमान, आपत्ति, असफलता, प्रतिकूलता आदि के कारण जिनके हृदय पर चोट पड़ी है, जिन्हें अपना भविष्य अन्धकारमय, निराशाजनक दिखाई पड़ता है वे अपनी चिन्ता, आशंका, अशान्ति, भय, निराशा, व्यथा वेदना एवं पीड़ा को यहाँ छोड़ जाने के लिए आ सकते हैं। उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने के लिए, यहाँ आने पर उन्हें उचित, व्यवहारिक एवं हितकर प्रकाश प्राप्त हो सकता है।

कोई कठिनाई, उलझन या थकान होने पर भी अपने में सद्गुणों की वृद्धि करने एवं आशा, उत्साह, स्फूर्ति, साहस, निर्भयता, दृढ़ता, विवेक, कर्म कौशल एवं स्पष्ट दृष्टिकोण प्राप्त करने के लिए यहाँ आया जा सकता है। जिन्होंने हमारी परकाया प्रवेश, मानवीय विद्युत के चमत्कार, प्राणचिकित्सा विज्ञान, मैस्मरेजम की अनुभव पूर्ण शिक्षा आदि पुस्तकें पढ़ी हैं वे जानते हैं कि आत्मबलशाली व्यक्तियों का दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। उस विज्ञान की सत्यता का प्रत्यक्ष अनुभव यहाँ आने वालों को भली प्रकार हो सकता है। इस थोड़े समय में ही शिक्षार्थी के मानसिक संस्थान के संशोधन, परिमार्जन, परिवर्तन और अभिवर्धन करने का समुचित प्रबन्ध होगा।

शिक्षार्थी को नौ दिन बराबर हमारे सान्निध्य में उसी प्रकार रहना होगा जिस प्रकार नौ मास माता के गर्भ में रहते हैं। 3 दिन बृजभूमि के प्रसिद्ध तीर्थ गोकुल, वृन्दावन और गोवर्धन देखने में लगाये जा सकते हैं। दो तीन रोज मथुरा आने जाने में लग जायेंगे। इस प्रकार करीब 14-15 दिन का अवकाश अपने काम से निकालना होता है। इन थोड़े दिनों में कोई एक शिक्षाक्रम किसी पर थोपा न जायगा वरन् आगन्तुक की स्थिति एवं आवश्यकताओं के अनुसार उसके साथ संभाषण, मंत्रणा, विचार परिवर्तन, आध्यात्मिक प्रयोग, आदि उपायों द्वारा वही तत्व बढ़ाने का प्रबन्ध किया जायगा जिसकी कि उसे आवश्यकता है।

नियम कोई विशेष नहीं हैं। अपने घर की तरह मथुरा चले आवें और अपने कुटुम्ब में जिस प्रकार रहते हैं उसी प्रकार हमारे घर, हमारे साथ रहें, भोजन करें और शिक्षा प्राप्त करें। इसके बदले किसी प्रकार की आर्थिक शर्तबन्दी नहीं है। सीमित व्यक्तियों को एक साथ यहाँ रहने की व्यवस्था हो सकती है इसलिए अपने आने की तिथि के बारे में पहले स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए। महीने की पहली या सोलह तारीख को यहाँ आना चाहिए। इस योजना से वे ही सज्जन लाभ उठाने के इच्छुक सज्जनों को अपना पूरा परिचय और आने का खास प्रयोजन सविस्तार लिखकर भेजना चाहिए और स्वीकृति प्राप्त हो जाने पर तब मथुरा पधारना चाहिए। एकाएक बिना सूचना या बिना स्वीकृति के चले आने वालों की शिक्षा या व्यवस्था का उत्तरदायित्व हमारे ऊपर न होगा।

-अखंड ज्योति सम्पादक


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