36 से 63 बन जाओ

January 1948

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(परमहंस श्री स्वामी अभयाँनदजी)

36 की संख्या में तीन और छह के अंकों का मुँह एक दूसरे से विपरीत है। दोनों एक दूसरे की ओर पीठ किये हुए हैं। इसी प्रकार अधिकाँश मनुष्य ईश्वर से विमुख रहते हैं। ईश्वर विरोधी, ईश्वरीय नियमों से प्रतिकूल कार्य करते हैं। ऐसी दशा में उन्हें ईश्वर की विमुखता का अनुभव होता है। असत मार्ग पर चलने वालों को समदर्शी परमात्मा अपने से रूठा हुआ क्रुद्ध दृष्टि गोचर हो जाता है। यह 36 की स्थिति मनुष्य के लिए दुखदायी और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

कल्याण चाहने वालों को चाहिए कि अपने को 36 की स्थिति से बचाकर 63 की अवस्था में ले जावें। 63 की संख्या में छह और तीन दोनों अंकों का मुख आमने सामने है, अनुकूल दिशा में है। मनुष्य जब अपनी मनोदशा ईश्वर की ओर अभिमुख करता है तो उसके अन्दर दैवी विचार और कार्यों की वृद्धि होने लगती है। सन्मार्ग पर चलने से उसे अनुभव होता है कि परमात्मा उस पर प्रसन्न है, अनुकूल है। वह पथ प्रदर्शन करता है, सहायता करता है और अग्नि में तपा कर जन्म जन्मान्तरों के पापों के भागों को थोड़े समय में पूरा करके सदा के लिए अनन्त आनंदमयी गोद में उठा लेता है।

36 से 63 बनने में एक साहसपूर्ण कदम उठाना पड़ता है। अपनी जीवन दिशा को एक दम एक ओर से बदल कर दूसरी ओर कर देना होता है। भौतिक भोगवादी दृष्टिकोण के स्थान पर आत्मिक त्याग प्रधान दृष्टि बनानी पड़ती है। जैसे 3-6 के अंकों को थोड़ा लौट पलट करके 36 से 63 बना देना पर हो जाता है। वैसा ही इससे हमारा वजन भी बढ़ जाता है। लोगों! कल्याण मार्ग पर चलो! 36 से 63 बन जाओ।

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