जो विपत्ति देता है, मंगल भी वही देता है। अतः उसके ऊपर अविश्वास न करके अवस्थानुसार जीवन व्यतीत करना ही प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।
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जो जानता है कि, भगवान “सर्वतश्चक्षु” (सब ओर देखने वाले ) हैं, वह कदापि पाप नहीं कर सकेगा।
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चित्त की शुद्धि न होने तक भगवान की उपलब्धि नहीं हो सकती।
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