मनोविनोद के लिये,हंसी हंसी में भी काम, क्रोध, झूठ आदि का आश्रय नहीं लेना चाहिये, कारण दो एक दिन वह कौतुक रूप में रहकर फिर अभ्यास में पड़ जायगा-उसका संस्कार जम जायगा।
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